सरना बिल्ली का मतलब ज्ञान के उस दीपक से है जो समाज में फैले अज्ञानता के अँधेरे को ज्योतिर्मय करता है और ज्ञान के प्रकाश को फैलता है I
15 अगस्त 2022
अभी नहीं तो फिर कभी नहीं
ऐसी होती हैं समस्याओं का multiplication
17 जुलाई 2022
सामाजिक पिछड़ेपन के कारण
पढ़ाई का बीच में छूट जाना
टेक्निकल नॉलेज पर ध्यान नहीं देना
सामाजिक नशाखोरी
सीखने की ललक का अभाव
हमेशा अपने आपको कमतर आंकते हैं
पैट्रिक संपति पर इतराना
सीखने में खर्च नहीं करते
लड़की बच्ची के पढ़ाई पर ध्यान नहीं देना
समाज का बुद्धिजीवी वर्ग
समाज के पिछड़ेपन का कारण हम ख़ुद हैं
कुरीतियों के जंजाल में फसा होना
- हमारे लोगों में रोजगार उन्मुखी कोर्स या वोकेशनल कोर्स नहीं करते।
- अधिकतर लोगों में कॉम्पिटिशन की भावना का अभाव होता है।
- देश दुनिया में घट रही घटनाओं की जानकारी नहीं रखते।
- बिजनेस करने के प्रति हमारे लोगों में उदासीनता हमारे समाज को पीछे खींच के ले जाता है।
- हम अपने बच्चों के पढ़ाई लिखाई के लिए अच्छा माहौल नहीं बना सकते।
- समाज से परे लोगों के साथ हमारा इंटरेक्शन बहुत ही कम होता है। इसीलिए संगठित समाज के अच्छी चीजों को नहीं सीख पाते।
- हम देश दुनिया तो घूमते हैं लेकिन देश दुनिया की अच्छी चीजों का अपने समाज में नहीं ला पाते।
- हमारे समाज में विजनरी लोगों की कमी होती हैं।
- हमारे जनप्रतिनिधि हमारे सवालों को जोरदार तरीके से सरकार के समक्ष नहीं उठा पाते। हमारे समाज में समस्याओं का अंबार होते हुए भी बेसिक फैसिलिटी नहीं दिला पाते।
- आदिवासी इलाकों के सरकारी स्कूल कॉलेज का खस्ता हाल होना है।
- आदिवासी समाज की सबसे बिकट स्थिति यह है कि हमारे माताएं एवम् बहनें ज्यादा काम करती हैं और पुरुष बैठकर टाइम पास करते हैं।
- बहुत बार देखा यह जाता है कि समाज के पिछड़ेपन के कारणों में अपने ही समाज के लोग होते है। अपना मतलब पूरा करने के लिए भीड़ का उपयोग करते हैं और मतलब सिद्ध हो जाने के बाद गायब हो जाते हैं। हमारे पास कई एक ऐसे उदाहरण है।
- ग़रीबी और अशिक्षा हमारे समाज के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण हैं। ये दोनों ऐसी स्थिति हैं जो कभी समाज को आगे नहीं बढ़ने देती।
- हमारे लोगों में लीड करने की भावना का अभाव होता है। आगे आना नहीं चाहते हैं।
- हमारे लोग संगठन में तो होते हैं लेकिन संगठन का उत्तरदायित्व को नहीं समझते। संगठन के ताकत के एहसास नहीं होता।
- सांस्कृतिक विरासत के इंपॉर्टेंट को नहीं समझते।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण नहीं करते।
- अपना लिविंग स्टैंडर्ड को नहीं सुधारते।
- हमारे अधिकांश लोग मुख्यधारा के साथ जुड़े हुए नहीं होते।
- लेखन जारी है
- समस्या प्रोग्रामिंग में होती है प्रिंटआउट में नहीं।
- अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें।
- अच्छे कामों को आसान और बूरे कामों मुश्किल बनाएं।
- पहला अध्याय:-नशााखोरी क्या है और इसकी शुरुवात कैसे होती हैं ?
- दूसरा अध्याय :- लत क्या है और इसकी पहचान कैसे होती हैं?
- तीसरा अध्याय:- सामाजिक नशाखोरी के दुष्प्रभाव ।
- जैसा जड़ वैसा फल।
- अपनी क्षमता खुद को ही पता नहीं।
- एक और एक कितने होते हैं।
- धीमे चले पर पिछड़े नहीं।
- परिवेश का असर
- एकता
- छोटे बदलाव का जादू।
- दोस्त हो तो अच्छी आदतों जैसा वरना हो ही ना।
- लक्ष्य प्राप्ति के प्रोसेस को याद रखें लक्ष्य को नहीं।
- विनती भजन और प्रार्थना की महिमा को समझें।
- स्वयं को जीतना दुनिया जीतने के बराबर।
- ASSRB
01 जुलाई 2022
समाज से परे रहना नामुमकिन
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
समाज से हम है या समाज हमसे हैं।
यूनिवर्सल समाज
कोरोना काल
- ऊपर जो बातें कही गई हैं वह सभी बातें सांसारिक लोगों के लिए है।
- वैराग्य की जीवन जीने वाले साधु संत जिन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दी हो । उन्हें समाज से परे रहने में कोई दिक्कत नहीं होती। क्योंकि उन्होंने अकेले रहना सीख लिया है।
- बेहतर जिंदगी की उम्मीद या किसी के बहकावे में आकर अपनी रास्ता बदल लेते हैं। शुरू में सब कुछ अच्छा लगता है। लेकिन टाइम के साथ यह एहसास होने लगता है कि जो मान सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिलता। अपनापन महसूस नहीं होता। रास्ता बदलने के कारण अपनी वास्तविक सांस्कृतिक पहचान खो बैठते हैं।
- आप जिस रास्ते में चल रहे हो उसी रास्ता में चले। अगर आपको लगता है कि यह गलत है तो उसको सुधारने की कोशिश करें। अपनों के बीच रहकर ही खुशियां तलाशने की कोशिश करें।
- बहुत सारे बगुलों के बीच कौवा आसानी से पहचाना जाता है।
- समस्या प्रोग्रामिंग में होती है प्रिंटआउट में नहीं।
- अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें।
- अच्छे कामों को आसान और बूरे कामों मुश्किल बनाएं।
- पहला अध्याय:-नशााखोरी क्या है और इसकी शुरुवात कैसे होती हैं ?
- दूसरा अध्याय :- लत क्या है और इसकी पहचान कैसे होती हैं?
- तीसरा अध्याय:- सामाजिक नशाखोरी के दुष्प्रभाव ।
- जैसा जड़ वैसा फल।
- अपनी क्षमता खुद को ही पता नहीं।
- एक और एक कितने होते हैं।
- धीमे चले पर पिछड़े नहीं।
- परिवेश का असर
- एकता
- छोटे बदलाव का जादू।
- दोस्त हो तो अच्छी आदतों जैसा वरना हो ही ना।
- लक्ष्य प्राप्ति के प्रोसेस को याद रखें लक्ष्य को नहीं।
- विनती भजन और प्रार्थना की महिमा को समझें।
- स्वयं को जीतना दुनिया जीतने के बराबर।
- ASSRB
26 जून 2022
अच्छे कामों को आसान और बुरे कामों को मुश्किल बनाएं
Past, वर्तमान का आधार होता है।
प्रत्येक मनुष्य का वर्तमान स्थिति उनके द्वारा जीवन में लिए गए सही या गलत फैसलों का समुच्चय होता है। हमारा भूतकाल वर्तमान का आधार होता है। हमारे जितनी भी फ़ैसले होते हैं सभी कहीं ना कहीं पहले किये गया कार्यों से प्रेरित होता है। हमारे द्वारा किये गए हर एक अच्छा काम नेक्स्ट अच्छा काम को कंटिन्यू करने को प्रेरित करता है। हमारे द्वारा किये गए बुरे काम बुरा काम को जारी रखने को प्रेरित करता है।मतलब साफ है ।आज अच्छा करोगे तो कल अच्छा होगा और आज बुरा करोगे तो कल बुरा होगा।
अगर कोई मनुष्य महीने का 10000 रुपए कमाता है। इसका मतलब है कि वह उतना ही कमाने के लायक है। अगर उसमें ज्यादा काबिलियत होगी तो वह अपना earnings को भी बढ़ा लेगा। otherwise fixed रहेगी या फिर कम होती जाएगी।हमारे द्वारा अर्जित धन हमारी काबिलियत का पैमाना होता है। हमारी वर्तमान स्थिति हमारी (past )भूतकाल की कार्य प्रणाली की जानकारी देता है। हमारी earnings भी हमारे योग्यता के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकता है। यह पूर्ण रूपेण हम पर निर्भर करता है।
चलिए इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए हम अमुक तारीख को अमुक जगह घूमने जाने का प्लान बनाया है। इसके लिए हमें सभी जरूरी चीजों का चेक लिस्ट बनाना पड़ेगा। जैसे कि ट्रैवल बैग, वाटर बोतल ,पावर बैंक, एयर फोन कैमरा ,मोबाइल फोन , Power Bank और भी बहुत कुछ। जिस दिन हमें घूमने जाना होगा जरूरत के सारी चीजें हमारे पास होंगी। हमें ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पूर्व प्लान सही नहीं होने से होगा क्या कि जिस दिन हमें घूमने जाना होगा उस दिन ना तो हमें अपना वॉलेट मिलेगा ना तो मोबाइल चार्जर मिलेगा ना चश्मा मिलेगा ना जूते मिलेंगे ना मोजे मिलेगा। मेन टाइम में ढूंढते ढूंढते परेशान हो जाएंगे और घूमने चले भी जाएं तो जरूरी सामान तो घर में ही रह गया फिर घूमने जाने का मजा ही किरकिरा हो जाएगा। कहने का मतलब है किसी भी कार्य को आसान बनाने के लिए पूर्व प्लानिंग बहुत जरूरी है। नहीं तो ऐन मौके पर बहुत सारी प्रोब्लेम्स का सामना करना पड़ता है।
जो चीजें हमें करनी है उसे हमें आसान बनाना चाहिए । तब काम करने में मजा आएगा। टाइम कंजूमिंग वाला काम से बोरियत होने लगती हैं।
मान लीजिए हमें गाजर का हलवा बनाना है। तो गाजर का हलवा बनाने से पहले गाजर बनाने में उपयोग होने वाले सभी सामग्रियों को एकत्रित करना पड़ेगा। ताकि हमें हलवा बनाने के समय में इजीली सभी सामान एक जगह हमें मिल सके।
कोई काम ऐसा है जो गलत है। जिसको कि हमें करना नहीं चाहिए। उस काम को अवरोधों से भर कर बहुत जटिल बना दो। व्यर्थ का टीवी देखना टाइम कंजूमिंग वाला काम है। टीवी को बेडरूम से हटा देना चाहिए। रिमोट का सेल को निकालकर कहीं ऐसा जगह रखना चाहिए ताकि मिले ना। जब कभी भी हमें टीवी देखने का मन करेगा तो हमें बहुत सारा काम करना पड़ेगा। और हमारा मानव मस्तिष्क मन ऐसा है कि जिस काम को करने में ज्यादा मेहनत लगता है उसे करने से बचता है। और हमें पता भी नहीं चलेगा कि टीवी देखने का टाइम कंजूमिंग वाला जो काम है वह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा।
मान लीजिए हमें शराब पीने की बुरी लत है। इससे हम छुटकारा कैसे पाएं। जैसे कि मै पहले ही बता चुंका हूं कि जो काम गलत है उसे अवरोधों से भर दो या मुश्किल बना दो। तो चलो समझते है। उस दुकान में जाना छोड़ दें जहां ये मिलता है। उन लोगों से दूरियां बना लें जिनसे आप प्रेरित होते हैं। उन लोगों से नजदीकियां बढ़ाएं जो शराब में लिप्त ना हों। अगर पीना ही है तो highest band ki शराब पियो जो की काफी costly होती हैं। ये सभी दुकानों में easily available नहीं होती। इसके लिए आपको दूर जाकर ज्यादा पैसा खर्च करके खरीदनी पड़ेगी। इसका सीधा असर आपके पॉकेट और समय पर पड़ेगा। मै आपको पहले ही बता चुका हूं कि मनुष्य मस्तिष्क की फितरत मुश्किल और पेचीदा कामों को लम्बे समय तक करने की नहीं होती। हमारा मस्तिष्क बड़ा कामचोर होता है। हमेशा आसान काम ही करना पसंद करता है। इस चक्कर में हमारी बुरी लत भी छूट जायेगी।
हम अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। लेकिन समय अभाव के कारण हम इसमें ध्यान नहीं दे पा रहें है। इसका सबसे अच्छा उपाय यह है कि हम उस एरिया की zym ज्वॉइन करें जो हमारे ऑफिस जाने वाले रास्ते में हों। इससे होगा क्या कि हमारे zym जाने की निरंतरता बनी रहे और हमे एक्स्ट्रा टाइम निकालने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।
इसी तरह हम ट्यूशन भी स्कूल कॉलेज वाले रास्ते में ही ढूंढे। इस तरह से हम अपने जरूरी काम को आसान बना सकते हैं।
अगर हमें स्मार्ट फोन use करने की बुरी लत है तो मोबाइल के पासवर्ड को बहुत कॉम्प्लिकेटेड बना दो। ज्यादा मेहनत वाला काम होगा तो अपने आप उपयोग करना कम होने लगेगा।
मान लीजिए कि आपको घूमने फिरने का बहुत ही ज्यादा शौक हैं। आप अपने इस आदत से परेशान हैं। आप चाह के भी अपने इस आदत से निजात नहीं पा रहे हैं। तो मै आपको एक उपाय बताता हूं। अगर कार में घूमने जाते हैं तो बाइक में जाएं। अगर बाइक में जाते हैं तो साइकिल में जाएं। साइकिल में जाते हैं तो पैदल ही चले जाएं। आपकी घूमने फिरने की आदत कब चली जाएगी पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि मै आपको को पहले ही बता चुका हूं कि हमारी मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग ऐसी हो रखी है कि मुश्किल वाला काम लगातार करना ही नहीं चाहता। ये बात proved है।
हम लोग सभी अभी डिजिटल एरा में रह रहे हैं। रोजमर्रा की सभी चीजें डिजिटल प्लेटफॉर्म में हो रहा है। शॉपिंग के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। ऑनलाइन ट्रांजैक्शन कैश के प्रचलन को बहुत कम कर दिया है। एटीएम के बाहर लंबी कतारें अब देखने को नहीं मिलती। आज के समय में कोई अपने पास कैश रखना पसंद नहीं करता। आज के समय में मैक्सिमम लोगों के पास स्मार्टफोन होता है। स्मार्ट फोन में गूगल पे, फोन पे ,पेटीएम जरूर इंस्टॉल होता है। पहले जब हम कैश के साथ शॉपिंग करने जाते थे तो लिमिट कैश के साथ शॉपिंग करते थे और जरूरत का ही सामान खरीदते थे। लेकिन अभी का स्थिति ये हैं कि कैश का झंझट तो है नहीं । जितना मर्जी शॉपिंग करो जब तक कैश ख़तम ना हों। वे सभी चीजें खरीदते हैं जिसका की फिलहाल जरूरी नहीं होता है। ईज़ी डिजिटल कैश फ्लो के कारण हम जरूरत से कहीं ज्यादा खर्च कर बैठते हैं। और हमारा महीने भर का बजट बिगड़ जाता है।फिजूलखर्ची को रोकने के लिए क्या करना चाहिए। मै ये नहीं कहता कि हमें ऑनलाइन ट्रांजैक्शन नहीं करना चाहिए। लेकिन लिमिट सेट जरूर करें।हो सके तो कैश में हीं शॉपिंग करें। कैश में शॉपिंग करना हमें मितव्ययई बनता है। कैश में शॉपिंग अनुपयोगी कैश फ्लो को रोकता है। क्योंकि आप चाह के भी अधिक कैश अपने पास नहीं रख सकते। आज के टाइम में कोई ज्यादा कैश लेकर नहीं चलता।
धन्यवाद
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28 मई 2022
सामाजिक नशाखोरी एक बुराई(III)
सामाजिक नशाखोरी के दुष्प्रभाव
उत्पादकता में कमी
चुकी लगातार नशीली पदार्थों के प्रयोग करने से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर इसका बूरा असर पड़ता है। कहा भी जाता है ना स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। सोचने समझने की शक्ति कम होने लगती है। हमारे क्रिएटिविटी का इस पर डायरेक्ट असर पड़ता है। जिस काम के लिए लोग हमें अप्रोच किया करते थे , दूर होते चले जाते हैं। क्योंकि उन्हें पता होता है कि एक शराबी आदमी कभी भी 100 परसेंट dedication और concentration के साथ में काम नहीं कर सकता। एक शराबी आदमी का कार्य करने का दायरा सीमित होने लगता है।
लड़ाई झगड़ा
एक शराबी व्यक्ति शराब पीने के बाद में एक अलग ही दुनिया में रहता है। बहुत ही ज्यादा सेंटिमेंटल(sentimental) और सेंसिटिव (sensitive)हो जाता है। हमारे साथ बीती हुई सभी घटनाएं आज के ही दिन याद आने लगती है। छोटी-छोटी बातों को लेकर बेवजह आवेशित होने लगते है।पारिवारिक कलह का सबसे बड़ा कारण नशापान करना होता है। बहुत बार नशाखोरी खुशनुमा माहौल को गंभीर माहौल में बदल देता है।
व्यापारिक असफलता
नशा पान में संलिप्तता के कारण व्यापारिक कार्यों से विमुख होने लगते हैं। समय अभाव के कारण व्यापारिक कार्यों में ful concentrate नहीं कर पाते । हमारे professionalism पर इसका असर पड़ता है । जिस कारण से हम अपना विश्वसनीयता खोने लगते हैं। व्यापारिक कार्य चुकी कस्टमर satisfaction का होता है। व्यापारिक कार्य पूरी तरह से वस्तु की गुणवत्ता, विश्वास और मधुर व्यवहार में टिकी हुई होती है। सेवा से संतुष्ट नहीं हो पाने के कारण हमारे पुराने कस्टमर हमसे दूर होते चले जाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि हम व्यापारिक घाटे के शिकार होने लग जाते हैं।
इज्जत का फालूदा
नशा पान में संलिप्तता का सबसे ज्यादा असर हमारे सामाजिक मान सम्मान और प्रतिष्ठा में पड़ता है। हम कितना भी प्रतिष्ठित व्यक्ति क्यों ना हो। नशे के हालात में बोली गई अच्छी से अच्छी बातों का लोगों में कोई असर नहीं पड़ता। पीठ पीछे हमारे बारे में लोग बोलेंगे, ये बेवड़ा कुछ भी बोलता है।
रिश्तों में खटास
नशा पान में संलिप्तता के कारण हमारे रिश्तों में कड़वाहट पैदा होने लगती है। हमारे जितने भी घनिष्ठ मित्र होते हैं जितना संभव हो सके दूरियां maintain करने लग जाते। इसका सबसे ज्यादा असर हमारे पारिवारिक रिश्तों पर पड़ता है। क्योंकि हम अपने परिवार के लिए अपना रिस्पांसिबिलिटी को पूरा नहीं कर पाते।
दुर्घटना
रिपोर्ट्स के मुताबिक सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण नशाखोरी को भी माना जाता है। गाडियां हमारे सुविधा के लिए होती हैं ताकि हमारा सफर तीव्र और सुगम हो सके। अगर कोई व्यक्ति नशे के हालात में गाड़ी ड्राइव करता है तो इस स्थिति में गाड़ी वेपन में बदल जाता है । इससे कितना नुकसान होता है ? किस तरह का नुकसान होता है ? हम सबको पता ही है। दुर्घटनाएं सिर्फ यातायात में होती है ,यह भी बात नहीं है। हर वह काम जिसको कि हम नशे की हालत में करते हैं। दुर्घटना होने की प्रबल संभावना रहती है। यह चलते-चलते भी हो सकती है। गिर कर भी हो सकती है। कोई भी काम करते हुए हो सकती है। और ना जाने कितनों ऐसे उदाहरण हो सकते हैं।
सेक्स लाइफ में असर
वैवाहिक जीवन में नशा पान का सबसे ज्यादा असर हमारे सेक्स लाइफ में पड़ता है। हम जीवन साथी के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड नहीं कर पाते। अपने जीवनसाथी को अंतरंग संतुष्टि पहुंचाने में विफल होने लगते हैं। अंतरंग रिश्तो में कड़वाहट उत्पन्न होने लगती है। इसका सीधा असर पारिवारिक वैवाहिक जीवन पर पड़ता है।बहुत बार नशे की हालत में violent हो जाते हैं और अप्राकृतिक रवैया अपनाते हैं।
अपराधिक मामले
देखा ये जाता है कि सभी अपराधिक घटनाओं के पीछे नशा पान एक बहुत बड़ा उत्प्रेरक का काम करता है। जितनी भी अपराधिक घटनाएं होती हैं, उसमें नशा पान एक फैक्टर के रूप में होता ही है। इन सब चीज़ों को फिल्मों एवम् धारावाहिकों में बहुत अच्छी तरह से चित्रित किया जाता है।लेकिन हम यहां समझने में भूल कर जाते हैं , कि यह सब तो स्क्रिप्टेड होती है। इसे हम सच मान बैठते हैं। लेकिन सच बात तो यह है कि इन सब चीजों से क्लू तो मिलती ही हैं।
नियमों का वॉयलेशन
बहुत बार देखा यह जाता हैं कि नशीले पदार्थों का सेवन करके लोग बहुत से नियमों का उल्लंघन करते हैं। जैसे कि यातायात के नियमों का उल्लघंन। Hygiene and sanitation के नियमों का उल्लघंन। सौहार्द का हनन ।
देखिए हम इसको कैसे तोड़ते हैं। यातायात के मानक नियमों को तोड़ते हैं। हम जहां मर्ज़ी वहां थूकते है। पेशाब भी जंहा तहां करते है। ऐसा माहौल या जगह जहां पर हमें शांत रहने की जरूरत होती है, वहां चिल्लाते हैं या बेतुकी बातें करके लोगों के ध्यान को भ्रमित करते हैं।कभी कभी ऐसे बातों का ज़िक्र कर देते हैं, जिसको की नॉर्मली बोलना नहीं चाहिए। कभी कभार हम लोगों की धार्मिक भावनाओं तक को ठेस पहुंचा देते हैं।
एकैडिमिक पढ़ाई पर असर
पठन-पाठन में जुड़े लोगों को तो एकदम ही नशीली पदार्थों से दूर रहने की जरूरत है। चाहे वह शिक्षक हो या छात्र। पठन-पाठन का काम बहुत ही Time taken, full concentration, और बोरिंग वाला काम होता है। पूरी तरह से लीन होकर ध्यान के साथ करने की जरूरत होती हैं।बहुत बार छात्र जीवन में लोग नशीली पदार्थों के गिरफ्त में आ जाते हैं, और कैरियर को सवारने के समय में पढ़ाई लिखाई से विमुख हो जाते हैं। जिस कारण से हम अपने मनचाहे ड्रीम को प्राप्त नहीं कर पाते। इसका सीधा असर हमारे परिवार ,समाज और देश में पड़ता हैं।
आर्थिक तंगी
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22 मई 2022
सामाजिक नशाखोरी(II)
लत क्या है और इसकी पहचान क्या है?
हम कैसे जाने कि हमें नशाखोरी की लत लग चुकी है।
- नशा करने वाले का सबसे पहला पहचान यह है कि वह हमेशा डिनाइल मोड में रहेगा। वह कभी स्वीकार नहीं करेगा कि मुझे नशीली पदार्थों को लेने का लत लग चुकी है।
- नशीली पदार्थों को क्यों लेना चाहिए के पक्ष में बेतुका तर्क प्रस्तुत करके हमेशा जस्टिफाई करने की कोशिश में रहेगा।
- नशीली पदार्थों को लेने की प्रबल इच्छा या तलब होगी। सेवन कैसे की जाए और उसकी कैसे व्यवस्था की जाए मन में हमेशा यही चलता रहता है। इसको लेने के लिए जो कुछ भी संभव तरीका हो सकता है करने की कोशिश करते हैं।
- दिन प्रतिदिन नशीली पदार्थों को लेने की मात्रा में बढ़ोतरी होती जाती है। पहले एक पेग ही काफी था लेकिन अब तो गिनती ही नहीं।
- शरीर में अजब सी बेचैनी महसूस होती है जिसको कि हम समझा नहीं सकते।
- शरीर कांपने लगता है। जब तक हम शराब की एक निश्चित मात्रा नहीं ले लेते तब तक शरीर का कांपना कम नहीं होता है। लेने के बाद सब कुछ ठीक हो जाता है। समझने में हम यही गलती कर लेते हैं। और इसको अपना इलाज समझ बैठते हैं।
- शरीर में हमेशा पानी कमी(Dehydration) की फीलिंग महसूस होती रहती है। पीने के बाद भी नहीं जाती। अगर देखा जाए तो शराब, अल्कोहल का ही एक रूप है। मेडिकली अगर देखा जाए तो अल्कोहल बहुत बड़ा डिहाइड्रेंट होता है । डिहाइड्रेंट उस पदार्थ को कहते हैं जो किसी चीज में मौजूद पानी की मात्रा को बाहर निकालने का काम करता है।
- रक्तचाप हमेशा अनियमित रहने की शिकायत होती है।
- किसी भी काम को हम बिना नशीली पदार्थों को लिए पूरे एकाग्रता के साथ काम नहीं कर पाते हैं। काम में मन नहीं लगता।
- हमारे अधिकतर समय नशीली पदार्थों के तलाश में ही बीत जाती है।
- दोस्ती भी अपने जैसे लोगों से ही होती है।
- शारीरिक व मानसिक दुष्प्रभावो के बावजूद सेवन बंद नहीं कर पाते हैं।
- हमेशा ये शिकायत होती है कि आंख के सामने कीड़े मकोड़े चल रहें हैं और कानों में अजीबों गरीब आवाजें सुनाई देती हैं।
- नींद कभी पूरा नहीं होती।
- खाना खाने के बाद हमेशा नशीली चीजों को लेने की तलब होती हैं।
- सुबह में बिना नशीले पदार्थों को लिये शौच भी नहीं होती।
- गाड़ी चलाते समय भी नशीली पदार्थों को लेने की बड़ी तलब होती है।
- मेडिकली अगर देखा जाए तो यकृत शराब के कारण ज्यादा प्रभावित होता है। लत वाले आदमी की ब्लड टेस्ट में हमेशा यकृत एंजाइम जैसे कि SGOT,SGPT,ALP, और GGT अक्सर बढ़ा हुआ ही रहता है।
- अगर हमें इस तरह का लक्षण दिखना शुरू हो जाए तो हमें सावधान हो जाने की जरूरत है।
Most Popular articles (लोकप्रिय लेख)
- समस्या प्रोग्रामिंग में होती है प्रिंटआउट में नहीं।
- जैसा जड़ वैसा फल।
- अपनी क्षमता खुद को ही पता नहीं।
- एक और एक कितने होते हैं।
- धीमे चले पर पिछड़े नहीं।
- परिवेश का असर
- एकता
- छोटे बदलाव का जादू।
- दोस्त हो तो अच्छी आदतों जैसा वरना हो ही ना।
- लक्ष्य प्राप्ति के प्रोसेस को याद रखें लक्ष्य को नहीं।
- विनती भजन और प्रार्थना की महिमा को समझें।
- स्वयं को जीतना दुनिया जीतने के बराबर।
- ASSRB
19 मई 2022
सामाजिक नशाखोरी(I)
नशाखोरी समाज के लिए अभिशाप है।
नशा नाश करता है, इसकी जानकारी हम सबको ही हैं। लेकिन बोलेगा कौन ? अगर बोलेगा भी तो सुनेगा कौन ? क्योंकि जिसको बोलना चाहिए और जिसके लिए बोलना चाहिए वो खुद हम ही हैं। हमनें कभी भी इसको छोड़ने की तबीयत से कोशिश की है नहीं।
ऐसे शुरू होती हैं नशाखोरी की शुरूवात
दोस्तों के प्रभाव या दबाव में
हम स्कूलों, कॉलेजों , शैक्षिक संस्थानों और हॉस्टलों में अपने दोस्त यारों के साथ रहते हैं। स्वाभाविक है कि या तो हम उनसे प्रभावित होंगे या वे हम से प्रभावित होंगे। आजकल के युवाओं में ड्रिंकिंग फैशन का स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। बर्थडे पार्टी हो या bachelor पार्टी मस्ती के लिए लेेते है और कब लत बन जाता है पता ही नहीं चलता।
बड़े या प्रतिष्ठित लोगों से
हम सबसे ज्यादा प्रभावित अपने से बड़ों या अपने अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित शख्सियतों से होते हैं। अपने अभिभावकों या अपने से बड़ों को नशे में चिल करते हुए देखते हैं। जब हमसे बड़े कर रहें हैं तो हम क्यों नहीं। फिर क्या हम भी उसी अंदाज़ में नशा करना शुरू कर देते हैं।
सबसे ज्यादा प्रभावित हम उन सेलेब्रिटियों से होते हैं जिसको कि हम पसंद करते हैं। जैसे की फिल्म स्टार, खिलाड़ी और ब्यूरोक्रेट्स ।जब कभी हम इनको नशा पान करते हुए देखते हैं तो हम उन्हीं का स्टाइल को कॉपी करने की कोशिश करते हैं। किसी के लिए हम और आप भी रोल मॉडल हो सकते हैं। हमें भी कोई कॉपी कर सकता है।
जब हमारे पास कोई काम नहीं होता
धार्मिक अनुष्ठानों से
खुशी के मौके पर
अवशाद या चिंता दूर करने के लिए
मूढ़ बनाने के लिए
10 मई 2022
समस्या प्रोग्रामिंग में होती है, प्रिंटआउट में नहीं
यह चार आयामी दुनिया क्या है ? कैसे यह एक दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं ? मै समझाने की कोशिश करूंगा।
यह चार आयामी दुनिया है भौतिक जगत, मानसिक जगत भावनात्मक जगत और आध्यात्मिक जगत। लेकिन हम रहते सिर्फ एक जगत में वह है भौतिक जगत। बाकी तीनों जगह हमारे अंदर की दुनिया है। भौतिक दुनिया में हमारी हालात कैसे हैं,यह डिपेंड करता है हमारी आंतरिक दुनिया पर। हम कभी यह समझ ही नहीं पाते कि भौतिक दुनिया हमारी आंतरिक दुनिया की प्रिंटआउट मात्र है।
चलिए इसको हम एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। मान लीजिए हम अपने कंप्यूटर पर एक चिट्ठी टाइप करी। प्रिंट बटन दबाकर उसका प्रिंट आउट भी निकाल लिया। प्रिंट आउट निकालने के बाद पता चला कि इसमें एक गलती हुई है।
चलिए हम देखते हैं कि जीवन में हुई गलतियों के प्रकृति को समझे बिना ही हल करने की कैसी कैसी कोशिशें करते हैं ?
कोई भरोसेमंद इरेज़र ले करके प्रिंटआउट में हुई गलती को मिटा देते हैं। प्रिंट बटन दबाकर दोबारा प्रिंट आउट निकाल लेते हैं। इस बार फिर से गलती जस का तस है, कोई सुधार नहीं हुआ। फिर हम सोचते हैं कि इसको तो अभी हमने मिटाया था, फिर मिटा क्यों नहीं? फिर हम उससे भी बड़ा इरेज़र लेकर के, ज्यादा टाइम लगा कर, ज्यादा मेहनत करके फिर से उसको मिटाते हैं। फिर से प्रिंट बटन दबाकर उसका प्रिंट आउट निकाल लेते हैं। अभी भी समस्या का समाधान नहीं हुआ। हम परेशान होकर चिल्लाने लगते हैं कि आखिर यह हो क्या रहा है। मैं पागल हो गया हूं। अभी भी पहले वाली समस्या ही मौजूद है।
असली समस्या प्रिंटआउट यानी कि भौतिक जगत में नहीं है। भौतिक संसार को बदलने से कुछ नहीं होगा। हममें से ज्यादातर लोग अपने भौतिक संसार को ही बदलने की कोशिश करते हैं। असली समस्या तो कंप्यूटर प्रोग्राम में ही है। यानी कि हमारे मानसिक भावनात्मक और अध्यात्मिक संसार में है। आंतरिक संसार के बदलाव में ही भौतिक संसार का बदलाव निहित है।
तो हम कह सकते हैं कि धन दौलत, हमारी सेहत, बीमारियां और मोटापा परिणाम ही तो हैं।
हम सभी अक्सर धन की कमी होने के समस्या का सामना करते हैं। कहा यह जाता है कि धन की कमी होना कभी भी कोई समस्या नहीं होती। धन की कमी होना हमें यह बताता है कि हमारा आंतरिक संसार कैसा है ? और क्या चल रहा है?
क्योंकि धन प्राप्त करने की जो अंदरूनी नियम है जैसे कि व्यावसायिक ज्ञान, धन का प्रबंधन और निवेश की तकनीकी उसे हमने सीखा नहीं। अगर सीखा भी है तो उसको सही तरह से उपयोग में लाया नहीं जैसे लाना चाहिए।
धन की कमी होना तो एक परिणाम है। तो प्राप्त परिणाम को बदलने के लिए हमें अपने अंदरूनी दुनिया को बदलना होगा। हमें मिलने वाली सभी परिणाम हमारे अंदरूनी दुनिया का ही प्रतिबिंब है।
अगर हमारे बाहर की दुनिया में किसी तरह का कोई खराबी है तो समझ जाइए हमारे अंदरूनी दुनिया में कुछ ना कुछ गड़बड़ी तो है।
09 मई 2022
जैसा जड़ वैसा फल
कल्पना कीजिए कि जीवन एक पेड़ है।पेड़ में लगे फल की तुलना उस परिणाम से कीजिए जिसको कि हमने अपने जीवन के विभिन्न पड़ावों में प्राप्त किया है। इस फल को लेकर हमारी अक्सर यह शिकायत रहती है कि फल कम है, हमें और मिलना चाहिए था, आकार में भी काफी छोटा है , स्वाद भी कुछ खास नहीं है। अक्सर हम ऊपर देखने वाली फल की ही चर्चा करते हैं और यह हमेशा भूल जाते हैं कि फल तो बीज और जड़ों के कारण उत्पन्न होती है। जो की जमीन के नीचे दबी हुई होती है, दिखाई नहीं पड़ती।
कहने का मतलब साफ है कि अगर गुणवत्तापूर्ण दिखाई देने वाली फल की चाह रखते हैं,तो सबसे पहले दिखाई नहीं देने वाली बीज और जड़ के बेहतरी के लिए काम करना होगा ।फल तो अपने आप ही उनके मुताबिक बदल जाएगा। हम अक्सर दिखाई देने वाली चीजों को ही सच मान बैठते हैं जो कि बिल्कुल ही गलत है।
जो चीजें हमें दिखाई नहीं देती उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं।
मै कुछ उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा।
बिजली हमें दिखाई नहीं देती है। लेकिन उसके शक्ति के बारे में हम सभी परिचित हैं और हम बिल भी पे करते हैं।
किसी चुंबक की चुम्बकीय शक्ति हमें दिखाई नहीं देती लेकिन उसी अदृश्य शक्ति से मोटर चलता है। हवा भी हमें दिखाई नहीं देती लेकिन उसकी इंपोटेंस के बारे में हम सबको पता है। इसी तरह से सैकड़ों उदाहरण है जो दिखाई तो नहीं देती मगर अस्तित्व में है।
हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली बहुत सी ऐसी अदृश्य चीजें हैं जो दिखाई देने वाली चीज़ों से कहीं ज्यादा शक्तिशाली हैं। जो मनुष्य अदृश्य शक्ति का उपयोग करना सीख गया। मानो वो जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया।
जो चीजें जमीन के नीचे होती हैं वही चीजें ऊपर की दिखाई देने वाली चीजों का निर्माण करती है।
यहां पर जमीन के बीज और जड़ का मतलब हमारे आंतरिक संसार से हैं।
पृथ्वी की ऊपरी सतह पर दिखाई देने वाली हरे-भरे जंगल, खेतों की हरियाली, हरे बगीचे में लगे फलों और सुंदर महकते फूलों को अंदर की चीजों ने ही बनाया।
जो फल पेड़ में लग चुके हैं उसके बारे में ज्यादा सोच कर परेशान होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि जो हो गया, उसको बदला तो नहीं जा सकता है ना। हां लेकिन एक बात है,भविष्य में लगने वाली फल की गुणवत्ता बढ़ाने वाली योजना में काम कर सकते हैं।इसके लिए हमें जमीन की ठीक से खुदाई करनी होगी। सिंचाई की व्यवस्था करना होगा। अच्छी बीज का चयन करना होगा। जड़ को मजबूती प्रदान करनी होगी।
क्योंकि अंदर की चीज ही बाद में ऊपर आती है। इसीलिए कहा भी जाता है ना, जैसा बोगे वैसा ही काटोगे। बबूल बो के हमें आम का उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
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