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अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें

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  अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें अगर समाज में संरचनात्मक  बदलाव लाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल बनना पड़ेगा । अपने बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए बच्चों के समक्ष कोई ऐसा काम नहीं करना है, जिनसे उनके दिमाग में नेगेटिव छाप पड़े। बच्चों का पहला पाठशाला घर से ही शुरु होता है और पहला  शिक्षक मां बाप और परिवार के अन्य सदस्य होते हैं। बच्चों में देखकर सीखने की क्षमता सबसे अधिक होती है। बच्चों में अच्छे और बुरे की फर्क नहीं होती है । उनके सामने जो कुछ भी हो रहा होता है उनको बड़े गौर से देख रहे होते हैं । बच्चों के संस्कार या आदत बिल्डिंग में हम अभिभावकों का बहुत बड़ा हाथ होता है। क्योंकि जैसा हम बच्चों को माहौल और परिवेश देंगे बच्चे वैसे ही होंगे। यदि हम में कोई गंदी आदत होगी तो निश्चित तौर से वही आदत कालांतर में हमारे बच्चों में परिलक्षित होगी। बच्चों के द्वारा अर्जित संस्कार हमारे संस्कारों का ही आइना होता है। गलत आदतों का चक्र अपने आपको तब तक दोहराते रहता है जब तक उसे तोड़ा ना जाए। उदाहरण के लिए मान लीजिए।  मेरे दादा (2nd) जी ने अपने पिता(1st)को...

पेरेंटिंग: जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी

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भूमिका पेरेंटिंग का अर्थ केवल बच्चों की देखभाल करना नहीं है, बल्कि उन्हें एक बेहतर इंसान बनाने की प्रक्रिया है। इसमें बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, और नैतिक विकास को सही दिशा में ले जाना शामिल है। यह माता-पिता की जीवन यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण हिस्सा है। 1. पेरेंटिंग का महत्व पेरेंटिंग बच्चों के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह उनके व्यक्तित्व, चरित्र और सोचने की क्षमता को प्रभावित करती है। 1.1 आत्मनिर्भरता का विकास सही पेरेंटिंग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाती है। वे अपने निर्णय स्वयं ले सकते हैं और कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होते हैं। 1.2 सामाजिक मूल्यों का निर्माण परिवार से ही बच्चों में नैतिकता और सामाजिक मूल्य विकसित होते हैं। माता-पिता के व्यवहार से ही बच्चे अच्छे संस्कार सीखते हैं। 1.3 मानसिक और भावनात्मक स्थिरता माता-पिता का प्रेम और समर्थन बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता है। यह उनके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ावा देता है। 2. पेरेंटिंग के प्रकार 2.1 सत्तावादी पेरेंटिंग (Authoritarian Parenting) इस ...

बच्चे माता- पिता के आईने होते हैं

बच्चे समाज का वो हिस्सा होते हैं, जो आने वाले कल की नींव रखते हैं। उनके व्यक्तित्व और व्यवहार का निर्माण किसी खाके से नहीं होता, बल्कि वे अपने आसपास के परिवेश और खासकर अपने माता-पिता से बहुत कुछ सीखते हैं। यह कहना कि "बच्चे माता-पिता के आईने होते हैं", न केवल एक कहावत है, बल्कि जीवन की सच्चाई भी है। जब हम किसी आईने के सामने खड़े होते हैं, तो हमें अपनी छवि दिखाई देती है। उसी प्रकार, बच्चे अपने माता-पिता की छवि होते हैं। उनकी बातें, उनके हाव-भाव, उनके विचार—ये सभी उनके घर के वातावरण का प्रतिफल होते हैं। इस प्रक्रिया में माता-पिता की भूमिका सबसे अहम होती है, क्योंकि बच्चे सबसे पहले उन्हीं को देख-देखकर सीखते हैं।    प्रारंभिक वर्षों का महत्व बच्चों के जीवन के प्रारंभिक वर्ष उनके संपूर्ण विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान वे अपने आस-पास की दुनिया को समझने और उससे सीखने की कोशिश करते हैं। इस उम्र में माता-पिता ही उनके लिए पूरी दुनिया होते हैं। बच्चे वही करते हैं, जो वे अपने माता-पिता को करते देखते हैं।  उदाहरण के तौर पर, अगर माता-पिता आपस में अच्छे से बात करते हैं,...

मोबाइल की दुनिया में खोता बचपन

परिचय: तकनीकी युग में बच्चों का बचपन आज का युग डिजिटल क्रांति का है, जहां तकनीक ने हमारे जीवन के हर हिस्से को बदल कर रख दिया है। बच्चे, जो कभी अपने बचपन में खेल के मैदानों में दौड़ते, दोस्तों के साथ खेलते और प्राकृतिक वातावरण में रोज कुछ नया सीखने में गुजारते थे, अब ज्यादातर समय मोबाइल स्क्रीन या TV स्क्रीन के सामने गुजर रहा है।  मोबाइल फोन, जो कभी वयस्कों का साधन हुआ करता था, अब बच्चों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। चाहे वह ऑनलाइन गेम हो, वीडियो देखने का शौक हो, या सोशल मीडिया का छोटे- छोटे रीलस् । बच्चों की दुनिया अब मोबाइल के इर्द-गिर्द घूमने लगी है।   हालांकि, यह तकनीक ज्ञान और मनोरंजन के नए रास्ते खोल भी रही है, लेकिन इसके साथ ही यह बच्चों के मासूम बचपन को धीरे-धीरे निगल रही है। डिजिटल लत न केवल उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर प्रभाव डाल रही है, बल्कि उनके सामाजिक जीवन और व्यवहार पर भी गहरा असर डाल रही है। इस लेख में हम मोबाइल की इस दुनिया में खोते बचपन को समझने का प्रयास करेंगे, और इस डिजिटल लत से बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है, इस पर चर्चा करेंगे। खेल का मैदा...

बच्चों में आत्मविश्वास कैसे विकसित करें ?

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क्या आपने कभी सोचा है कि आपका बच्चा जीवन की चुनौतियों का सामना कैसे करेगा? आत्मविश्वास वह कुंजी है जो उन्हें हर मुश्किल स्थिति में सक्षम बनाती है। आत्मविश्वास के बिना, बच्चे न केवल शैक्षणिक और सामाजिक क्षेत्रों में संघर्ष कर सकते हैं, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।इस लेख में, हम उन महत्वपूर्ण तरीकों पर चर्चा करेंगे जिनसे आप बच्चों में आत्मविश्वास विकसित कर सकते हैं। चाहे आप माता-पिता हों, शिक्षक हों या कोई संरक्षक, इन सुझावों को अपनाकर आप बच्चों को एक मजबूत और आत्मनिर्भर व्यक्ति बनने में मदद कर सकते हैं। आइए हम बहुत ही संक्षिप्त में सेल्फ कॉन्फिडेंस को समझते हैं।   आत्मविश्वास (self-confidence) एक व्यक्ति की अपनी क्षमताओं, गुणों और निर्णयों पर विश्वास करने की भावना है। यह वह भरोसा है जो व्यक्ति को यह महसूस कराता है कि वह चुनौतियों का सामना कर सकता है। आत्मविश्वास से व्यक्ति आत्मनिर्भर, साहसी और सकारात्मक रहता है, जिससे वह जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में सफलतापूर्वक कार्य कर पाता है। लेकिन  overconfidence से बचना भी ह...