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सामाजिक पिछड़ेपन के कारण

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पढ़ाई का बीच में छूट जाना आदिवासी समाज चूंकि हमेशा से ही पढ़ाई लिखाई से वंचित रहा हैै। शायद इसीलिए समाज में कभी शैक्षणिक माहौल नहीं बन पाया। श्रम प्रधान समाज होने के कारण शारीरिक परिश्रम करके जीवन यापन को तवाज्जू दी गई। जैसे कि खेती करना, मजूरी करना, भार ढोना आदि। हर वो काम जिसमें ज्यादा बल की जरूरत होती हैं। आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण अच्छे स्कूलों को अफोर्ड नहीं कर सकते। आदिवासी समाज के मैक्सिमम बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में करा दी जाती है। सरकारी स्कूलों का पढ़ाई का स्तर क्या है हम सभी को पता है। इसमें किसकी गलती है उसमें नहीं जाना चाहता। चुकीं हम पढ़ाई में खर्च नहीं करते , इसीलिए इसकी शुद्धि भी नहीं लेते। हमने तो बच्चे का एडमिशन करा करके अपने जिम्मेवारी से मुक्ति पा लिया। बच्चे का पढ़ाई लिखाई कैसे चल रही है इसका खबर भी नहीं लेते।  समय के साथ जरूरतें भी बढ़ती है। शारीरिक श्रम करके एक अकेला या परिवार उतना नहीं कमा पाता। ज्यादा कमाने के लिए ज्यादा संख्या और ज्यादा शारीरिक बल की आवश्यकता होती हैं। फिर क्या बच्चे भी श्रम कार्य में उतर जाते हैं। और फिर बाहर के प्रदेशों में श

समाज से परे रहना नामुमकिन

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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी इसीलिए  क्योंकि हम समाज से परे बहुत लंबे समय तक सरवाइव नहीं कर सकते। हमें अपने जैसे लोगों के साथ रहने की आदत है। हम सामाजिक बंधनों से बंधे हुए होते हैं। हम अपने परिजनों, सगे संबंधियों , करीबियों और दोस्त यारों से जुड़े हुए होते हैं। हम समाज से ही अपने रिश्ते को निभाना सीखते हैं। हम अपने समाज से ही मानवीय गुणों को ग्रहण करते हैं। हम अपने समाज से ही चलना बोलना, रहन सहन  और धार्मिक मान्यताओं को सीखते हैं। हमारी शिक्षा दीक्षा समाज में ही होती है। जीवन  जीने के सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हम समाज से ही करते हैं।  समाज से हम है या समाज हमसे हैं। ये बड़ा विरोधाभास वाली बात है। दोनों ही बातें पूर्णता सही भी नहीं हैं और पूर्णता गलत भी नहीं।  चलिए इसे हम समझने की कोशिश करते हैं। ज्यादातर मामलों में हम जिस समाज से आते हैं उस समाज की छाप हम पर दिखाई देती है। क्योंकि हम समाज के जिस परिवेश में रहते हैं उस परिवेश का असर हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है। चाहे नकारात्मक हों या सकारात्मक , बिना प्रभावित हुए बच नहीं सकते।  जीवन जीने की शै