25 अप्रैल 2022

समस्याओं के मूल कारण को खोजना ही समस्या का हल है








समस्या को एक चिकित्सक की तरह देखें


किसी भी समस्या को हल करने से पहले हमें समस्या को देखने की नजरिया को बदलना होगा। समस्या के उत्पत्ति के कारणों को जानना होगा। जैसे कि एक पेशेवर चिकित्सक किसी बीमारी के सभी संभावित कारणों के बारे में पता लगाने की कोशिश करता है। बीमारी के लक्षणों के आधार पर सभी उपयोगी इन्वेस्टिगेशन कराता है। इन्वेस्टिगेशन  रिपोर्ट्स के आधार पर बीमारी के मूल कारण तक पहुंचने की कोशिश करता है। बीमारी के मूल कारण का पता लग जाने पर उपयोगी योग्य दवा देता है।  बीमारी का सही दवा, सही समय पर , दिए जाने पर तुरंत ठीक भी होने लग जाती है। 


कंपनियां ऐसे करती समस्या का निदान

इसी तरह कोई बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी सही समय तक इच्छित परिणाम हासिल करने में नाकामयाब रहता है। इच्छित परिणाम हासिल ना कर पाने की, सभी संभावित कारणों का एक सर्वे कराता है। सर्वे के रिपोर्ट के अनुसार सभी कमियों को एनालिसिस करके , उपयोगी सुधार को अमल में लाता है। अगले प्रोजेक्ट में उन कमियों पर विशेष ध्यान रखता है और अपने इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति करता है।

समस्या का मूल कारण में छिपी है हल

साफ शब्दों में कहें तो हमें हमारे समस्याओं का मूल कारणों के बारे में पता होनी चाहिए।

जैसे कि हमारे बाइक के कार्बोरेटर में खराबी है और हम स्टार्टर से स्टार्ट करने की भरसक कोशिश करते है। हमारे लाख कोशिशों के बावजूद बाइक स्टार्ट नहीं होगी। समस्या का मूल कारण तो कार्बोरेटर में है ,ना की स्टार्टर में। बाइक का स्टार्ट होना तभी संभव है जब कार्बोरेटर की समस्या का निदान होगा। देख सकते है कि कैसे एक समस्या सम्पूर्ण सिस्टम की कार्य प्रणाली को प्रभावित करता है। 

अगर आपको समस्या के मूल कारण पता नहीं है तो 100% कोशिशों के बावजूद 10% भी सफलता नहीं मिलेगी। 

ठीक इसके उल्ट अगर आपको को समस्या के मूल कारण पता है तो आपके 10%  कोशिश मात्र से 100% की सफलता हासिल होगी।

इसी युक्ति का प्रयोग करके 10%  मात्र ऊर्जा लगाकर जितने भी हमारे समस्या है उनमें 100% की सफलता चुटकियों में हासिल कर सकते हैं।

चलिए इसको हम और एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं।

मान लीजिए हमें किचन में कोई जायकेदार डिश बनानी है। जायकेदार बनाने वाली सभी उपयोगी सामग्रियां डाली। डिस बन के तैयार भी हो गई। लेकिन हमने उसमें नमक डालना ही भूल गए। सारा गुड गोबर हो गया। बिल्कुल टेस्टलेस डिश बनके तैयार हुआ। अपने तरफ से हमने पूरी मेहनत की। शत प्रतिशत मेहनत करने के बावजूद हमने 10% मेहनत जिसमें नमक डालने का था हमने नहीं की तो हमारा सारा मेहनत बेकार हो गया। यहां पर समस्या का मूल जड़ नमक है जो कि हमें ज्ञात हो गया। तो नमक मात्र डालने से डिश की जायका बढ़ जाएगा।


हमें समस्याओं को हल करने में ज्यादा समय नहीं लगता। समय लगता है समस्याओं के मूल कारणों को पता लगाना। किसी समस्या को हल करने में इतना समय या धन नहीं लगता जितना समय उस समस्या के मूल कारण को ढूंढने में लगता है। किसी बीमारी को खत्म करने के लिए दवाइयों का जितना खर्च नहीं लगता उससे कहीं ज्यादा खर्च उस बीमारी को पता करने के लिए इन्वेस्टिगेशन में लगता है। समस्याओं के मूल कारण को खोजना ही समस्याओं का हल है।






21 अप्रैल 2022

मनोरम झलकियां प्राकृतिक पर्व सरहुल की

ASSRB द्वारा प्राकृतिक पर्व सरहुल मानने का  नायाब तरीका

पहान बाबा द्वारा पूजा अर्चना


ASSRB सैनिकों द्वारा बनाया गया एक चैरिटेबल ट्रस्ट है। सेवारत और सेवानिवृत सैनिक इसके सदस्य है। सैनिक जिस कर्तव्य परायणत ,अनुशासन , कर्मनिष्ठता और मनोयोग से देश की सेवा में अपने बहुमूल्य समय देते है उसी तर्ज पर सामाजिक कल्याण का काम करना चाहते है। इस तरह के भावनाओं का उद्गमन अपने आप में अनूठा है।

मुख्य अतिथि श्री जितबहान उरांव (DSP)


मैं आप को एक बात से अवगत कराना चाहूंगा कि सरहुल पर्व आदिवासियों का सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व है। यह पर्व तब मनाया जाता है जब पृथ्वी हरियाली का आवरण ओ‌‌ढ़ रही होती है। रंग बिरंगी फूलों से सज रही होती है। यूं कहें की नया रूप धारण कर रही होती है। यही मौसम भारतीय आदिवासियों का नया साल का होता है। प्रकृति के बिना इस पृथ्वी पर मनुष्य जाति का अस्तित्व संभव नहीं है। आदिवासी समाज इस को बखूबी समझती है। इसीलिए प्रकृति के संरक्षण संवर्धन और उनके पोषित के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है।

मंच में मुख्य और विशिष्ट अतिथि गन






ASSRB इस पर्व को एक कदम और आगे ले गई । समाज में जितने भी सेवानिवृत सैनिक हैं उनको आमंत्रित किया और उन्हें उचित मंच देकर सम्मानित किया और सामाजिक उत्थान के लिए योद्धा तैयार किया। 
सेवानिवृत्त सैनिक एवं केंद्रीय अध्यक्ष



गांव में जितने भी पहान , पनभरा , पुजार और मुखिया है उन्हे आमंत्रित करके सम्मानित किया और सामाजिक विकास में समन्वय स्थापित करने की कोशिश की।

जितने भी शाहिद परिवार हैं उनको आमंत्रित किया । जिन्होंने देश की सेवा में अपने हीरे को खोया है । सम्मानित करके उन्हें यह एहसास दिलाया कि हम हमेशा आप के साथ खड़े हैं।
शहीद परिवारों को सम्मानित करते हुए (1)डॉ लक्ष्मण उरांव(2) पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित श्री मुकुंद नायक (3) शौर्य चक्र विजेता कर्मदेव उरांव (4) पदम् श्री मधुमंसुरी हंसमुख (5) अध्यक्ष सहयोग समिति बेड़ो (6)ASSRB संस्थापक सदस्य रमेश उरांव (7) केंद्रीय अध्यक्ष भाजू एक्का ASSRB



पढ़ाई में जितने भी बच्चे अव्वल हैं उन्हें पुरस्कृत करके 
प्रोत्साहित किया ।
रात्रि पाठशाला के शिक्षक एवंASSRB सदस्य

पारंपरिक वेशभूषा में सुंदर सांस्कृतिक नाच का प्रदर्शन





लेखन कार्य अगले इवेंट तक स्थगित।


12 अप्रैल 2022

धीमे चलें पर पिछड़े नहीं

 
जय धर्मेश                                    जय चाला

हम सबकी अक्सर कम मेहनत करके कम समय में अधिक धनवान होने की चाह  होती है । लेकिन हकीकत में ऐसा बिलकुल भी नही होता । इसके लिए हमें  छोटे छोटे सार्थक काम निरंतरता के साथ प्रतिदिन करना पड़ता है । साथ में जरुरत के हिसाब से इसमें समय समय पर  सुधार भी करते रहना पड़ता है । तब जाकर हम कहीं  स्थायी और मनचाही बड़ी सफलता हासिल कर सकते है ।

किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम शुरू में ही बहुत ज्यादा जोर लगा देते हैं। लक्ष्य प्राप्त होने से पहले ही थक जाते हैं। एनर्जी को रिस्टोर करने के लिए काम को छोड़कर रुक जाते हैं। इस प्रक्रिया में टाइम की बर्बादी होती है। योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला हमारा प्रतिद्वंदी हम से आगे निकल जाता है। हम पीछे ही रह जाते हैं । शुरुआत धीमी ही क्यों ना हो लेकिन निरंतरता बनाए रखना बहुत जरूरी है।

लेकिन कई बार लक्ष्य प्राप्ति का ये रास्ता काफी लम्बा और थका देने वाली होती है। हमारा जो लक्ष्य निर्धारित होता है वह भी भूमिल प्रतीत होते जान पड़ता है।हम भी शिथिल होने लग जाते है। परन्तु यही वह समय है जहाँ हमें मजबूती के साथ हर एक कदम मंजिल की ओर निरंतरता के साथ बिना रुके आगे बढते रहना होता है ।  आगे बढने की जो  गति है, धीमी ही क्यों ना हो , चलेगा । निरंतरता तो है ना, वही बड़ी बात है । सही मायने में देखा जाये तो, यही वो तरीका है जो हमें निर्धारित लक्ष्य के साथ जोड़े रखता है और हमें पिछड़ने नही देता ।


स्थायी परिवर्तन या बदलाव का सबसे सही तरीका होता है धीमी गति  और निरंतरता । कोई भी काम अधीरता के साथ कभी नही करना चाहिए । इसीलिए कहा भी जाता है ना कि जल्दी का काम शैतान का । जल्दी बाजी में हम कार्य की सरलता को जटिल कर देते है। जल्द बाज़ी के कारण कार्य  की जटिलता बढ़ जाती है। और इनसे होने वाला नुकशान भी काफी बढ़ जाता है। इतनी जटिल और नुकशान दायी तो जब समस्या पैदा हुई थी तब भी नही थी जितना कि हमारा अधीरता और जल्दबाज़ी के कारण हुई ।


कार्यकुशलता और क्रियाशीलता दोनों ही सुनने में एक समान लगते हैं। लेकिन दोनों ही में बहुत ही ज्यादा अंतर है। कार्य कुशलता से हमें यह विदित होता है कि कोई व्यक्ति किसी कार्य विशेष को करने में कितना निपुण है। 

क्रियाशीलता से हमें किसी कार्य विशेष के किए जाने की निरंतरता को बताती है। 

कोई व्यक्ति कार्य विशेष को करने में कार्य कुशल हो तो सकता है मगर जरूरी नहीं है कि वह क्रियाशील भी हो। अक्सर कार्य कुशल लोग यह सोचते हैं कि इस काम को करना तो मेरे बाएं हाथ का काम है। अभी नहीं कर पाए तो कोई बात नहीं। इसको तो कभी भी किया जा सकता है इसी चक्कर में वह इस काम को कल पर टालते रहता है। क्रियाशीलता के अभाव में उनकी कार्य कुशलता पर असर पड़ने लगता है। 

ठीक इसके उलट अगर कोई व्यक्ति कार्य कुशल ना भी हो। यदि वह क्रियाशील है तो वह कार्य विशेष पर कार्य कुशलता हासिल कर सकता है । 

आपने यह कहानी तो सुनी ही होगी। किस तरह दौड़ में कुशल दंभी खरगोश क्रियाशीलता या निरंतरता के अभाव में दौड़ की प्रतियोगिता में हार जाता है और दौड़ में धीमी और कमजोर कछुआ निरंतरता या क्रियाशीलता के कारण दौड़ में कुशल नहीं होते हुए भी दौड़ के प्रतियोगिता में तेज खरगोश को भी जीत लिया। 

इससे यही साबित होता है कि कार्यकुशलता और क्रियाशीलता में गहरा संबंध है। अगर आप में क्रियाशीलता है तो कार्य कुशलता हासिल की जा सकती है। किसी काम को बार बार किए जाने पर वह हमारी आदत में शुमार हो जाती है। अगर हम किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति का सपना देख रहे हैं तो हमें कार्य कुशलता के साथ क्रियाशील भी होना पड़ेगा।




05 अप्रैल 2022

जैसा देश वैसा भेष


परिवेश का असर

हम सभी को यह पता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। हम सभी एक व्यवस्थित शांतिपूर्ण और सभ्य समाज में रहना पसंद करते हैं। समाज में हम अपने दोस्तों रिश्तेदारों करीबियों और अपने परिवार वालों के साथ सामंजस्य के साथ रहते हैं। हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में इन्हीं लोगों के प्रभावों का बहुत बड़ी भूमिका होती है। हम जिस तरह के समाज यह परिवेश से आते हैं उसका असर हमारे व्यक्तित्व में पड़ता है। अगर हमारा संपर्क अच्छे लोगों से होगा तो अच्छा ही असर हम पर भी पड़ेगा। बुरे लोगों से होगा तो बुरा असर पड़ेगा।
बहुत बार अपने करीबियों की उम्मीदों के दबाव के कारण हमारे अंदर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के दृष्टिकोण विकसित होते हैं।

माहौल के अनुरूप रहने की आदत

हमारे अंदर स्वाभाविक तौर पर माहौल के अनुरूप रहने की आदत होती है। अक्सर हम अपनी पहचान अपने आसपास के लोगों के पहचान से ही जोड़ कर रखना पसंद करते हैं। यह हमें मानसिक सुरक्षा की अनुभूति का एहसास कराता है।समाज के साथ में जुड़कर रहने की हमारी हमेशा से ही यही प्रवृत्ति रही है। हम हमेशा से ही अपने समाज से प्रभावित होते हैं या तो उन्हें प्रभावित करते रहे हैं। एक दूसरे पर हमेशा इसका असर पड़ता ही है।

खाना खाते समय हम अक्सर अपने साथ दिन भर में घटित घटनाओं का चर्चा करते हैं। अगर हम अपने घर से दूर हैं तो अपने परिवार वालों को फोन करते हैं। अपने काम या स्कूल कॉलेजों से लौटने के बाद अक्सर हम अपने दोस्त यारों से बातें करते हैं या कोई संदेश भेजते हैं। इन सोशलाइजिंग जुड़ावों के माध्यम से हम एक दूसरे से प्रभावित होते है। हमारा जुड़ाव जिन जिन लोगों से जितना अधिक होगा उन उन लोगों का नेगेटिव या पॉजिटिव चीजों का प्रभाव का असर उतना ही अधिक होगा।  यही भूमिका हम भी उनके जीवन में निभाते हैं।

हमे प्रभावित करने वाले लोग

इसीलिए किसी ने सच ही कहा है कि हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सबसे ज्यादा हमारे करीबी ही होते हैं।ये या तो हमारे दोस्त हो सकते हैं। यह हमारे परिवार वाले हो सकते हैं । या फिर हमारा परिवेश हो सकता है।मनुष्य की प्रवृत्ति भी हमेशा नकल करके अनुसरण करने की ही रही है।

 सच में अगर देखा जाए तो हम कोई नया आदत या काम को निर्माण नहीं करते हैं। हम उन्हीं कामों या आदतों का अनुसरण करते हैं जो हमारे आसपास में हमेशा से होता रहा है।

उदाहरण के तौर पर हम यह कह सकते हैं की यदि हमारे घर में किसी खेल विशेष या काम को लेकर झुकाव है। स्वाभाविक तौर पर हमारा भी झुका उस काम या खेल के प्रति होगा। बहुत बार तो ऐसा भी होता है कि हम किसी काम विशेष  आदत का अनुसरण करते चले जाते हैं और इसका हमें एहसास भी नहीं होता। यह सब चीजें हमें बोझ भी  नहीं कराती।

प्रभावित करने वाले मुख्यतः तीन तरह के ही लोग होते हैं।

सबसे पहला तो हमारा करीबी दोस्त यार या परिवार के ही लोग होते हैं। क्योंकि सबसे पहले उन्हीं को देख कर के ही हम उनके जैसा खाना पीना, रहना सहना ,बोल चाल, पढ़ना लिखना, सीख दे हैं। बहुत बार हम उनको प्रभावित करते हैं या हम उनसे प्रभावित होते हैं। यह प्रक्रिया हमेशा लगा ही रहता है।

दूसरा ऐसे अनजान लोग जिनको कि हम जानते तक नहीं है।

अनजान लोगों से हम कैसे प्रभावित होते हैं चलिए मैं आपको बताता हूं। मान लीजिए हमें ऑनलाइन शॉपिंग करनी है और उस प्रोडक्ट के बारे में हमें ज्यादा कुछ जानकारी भी नहीं है। यहां काम आती है उन अनजान लोगों की रिव्यूज जो या तो उस प्रोडक्ट के जानकार होते हैं या फिर उस प्रोडक्ट को कभी ना कभी यूज किए हुए होते हैं।


03 अप्रैल 2022

स्वयं को जीतना दुनिया जीतने के बराबर


हमारे जीवन में बहुत बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जिसमें किसी एक समस्या का समाधान  दूसरी समस्या को जन्म देती है।

लेकिन दूसरी समस्या का समाधान पहली समस्या को फिर वापस ला देती है।

जैसे कि हम अपने जीवन में किसी काम की विफलता के कारण तनाव में रहने लगते है। उस तनाव को दूर करने के लिए हम नशीली चीजों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते है। नशीली पदार्थों के लगातार इस्तेमाल से उसका बुरा असर हमारे शरीर और रोज़मर्रा के जीवन में पड़ने लगता है। यह देखकर हम और तनाव में आ जाते है। 

 जैसे हम टीवी देखते हुए सुस्ताने लग जाते है। फिर कुछ और ना कर पाने की स्थिति में और टीवी देखने लग जाते है। इसी तरह अनेकों उदाहरण है कि किस तरह हम जाने अंजाने में ही समस्याओं के जाल में फंसते चले जाते हैं ।

 

 पर काम आता है आत्मनियंत्रण(Self-control) । लेकिन लंबे समय तक अपने आप को self-control में रखना संभव नहीं है । ये लंबे समय तक काम नहीं करती । दीर्घकालीन परिणामों के लिए हमें सुनियोजित तरीकों को अपनाने की जरूरत होती है। क्योंकि हर बार हम अपनी इच्छा शक्ति पर काबू नहीं रख पाएंगे। हम अपनी बुरी आदतों को रोक तो सकते है लेकिन हमेशा के लिए उसे भूल जाना संभव नहीं है। वैसे भी अनिश्चितता वाले इस जीवन में समस्याएं तो हमेशा लगातार आते ही रहेंगी। हम कोई संत तो है नहीं कि हर स्थिति में शांत रह जाए। समस्याओं का असर तो जीवन में पड़ना ही है। नकारात्मक माहौल में लगातार अपने आप को सकारात्मक बनाए रखना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसके लिए बेहतर यही होगा कि नकारात्मक संकेत के उठने से पहले ही उसे जड़ से समाप्त किया जाए।

जैसे कि फोन में आ रही  बार-बार के नोटिफिकेशन से हमारा ध्यान भंग हो रहा है तो बेहतर यही होगा कि कुछ समय के लिए हम फोन को ही अपने आप से दूर रखते दें। अगर हमारा अधिकतर समय टीवी देखने में ही बर्बाद हो रहा है तो बेहतर यही होगा की टीवी को ही अपने बेडरूम से हटा दें। इससे होगा क्या कि हमारा ज्यादातर समय किसी रचनात्मक कार्य विशेष को करने में ही व्यतीत होगा। इस छोटे बदलाव से हमारे रोजमर्रा के जीवन में बहुत बड़ा फर्क देखने को मिलेगा।और हम अपने ऊर्जा और अपने बहुमूल्य समय का ज्यादातर हिस्सा अपने वातावरण को बदलने में लगा देंगे।


अपने आप को जीत लेना दुनिया को जीत लेने के बराबर है।हमें अपनी सारा ध्यान और सारी शक्ति अपने आप को बदलने में लगा देनी चाहिए।  ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हम अपना आवश्यक काम को करते तो हैं लेकिन अपना पसंदीदा शौक़ को भी छोड़ना नहीं चाहते। व्यवसाय कार्य करना जरूरत है लेकिन गाना सुनना अपना शौक। तो हम अपना काम करते हुए भी हेडफोन में गाना सुन सकते हैं। हम अपना जरूरी के काम तो करना चाहते हैं मगर अपना पसंदीदा खेल ,मूवी या प्रोग्राम भी देखना पसंद करते हैं। तो हमें एक ऐसे स्ट्रेटजी बनाने की जरूरत महसूस होती है जिससे कि अपना जरूरी काम भी हो जाए और साथ में अपना शौक भी पूरा हो जाए। प्रोडक्टिविटी में कोई भी असर ना पड़े। काम करने का यह तरीका कभी भी फेल नहीं होता। हम अपने आप को प्रलोभन भी दिए और अपना कार्य भी सिद्ध हो गया। किस तरह से हम अपनी जरूरत और पसंद को क्रमबद्ध करके आसानी से कर सकते हैं । इसी को कहते हैं एक तीर से दो निशान। 


लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिसको कि अकेले करने में ही भलाई है।

स्थिति और समय की मांग के अनुसार अपने नियम खुद बनाए जाने की जरूरत होती है। कसरत करना हमारा जरूरत। सोशल मीडिया अपडेट करना हमारा शौक। 10 मिनट के लिए एक्सरसाइज करें। रिलैक्सेशन के टाइम में सोशल मीडिया अपडेट करें। इसी तरह से सैकड़ों उदाहरण है जिसको कि हम सामंजस्य स्थापित कर के साथ-साथ कर सकते हैं। जिसशौक को पूरा करने के लिए हमें समय निकालने की जरूरत पड़ती थी अब वह ऐसे ही पूरा हो रहे हैं। इस तरह से हम जरूरत और पसंद को आपस में जोड़ देते हैं तो अपना जीवन कितना सरल और आसान हो जाता है। ये सभी जीवन में अपनाई जाने वाली बेहतरीन बातें है । आज को सुधारो कल अपने आप सुधर जाएगी। क्योंकि कल, आज ही लिखी जाती है। छोटी सी सुधार का चाहे वह अच्छा हो या बुरा उसका असर कालांतर में हमारे जीवन में पड़ता जरूर है। यह किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। समय के मांग के अनुसार अपने अंदर आवश्यक बदलाव नहीं कर के समय को हम खुद ही अपना दुश्मन बना बैठते हैं। क्योंकि कहा भी जाता है ना हम जैसे होते हैं दुनिया भी हमें वैसे ही नजर आती है। नजरिया बदला, दुनिया बदली । 


धन्यवाद






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