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29 जून 2025

इकिगाई: जीवन जीने की जापानी कला

संक्षिप्त परिचय


हर सुबह सूरज अपने तय समय पर उगता है — शांत, स्थिर और पूरी दुनिया को रोशन करने की भावना के साथ।
लेकिन क्या आपने कभी अपने भीतर उगती उस सुबह को महसूस किया है?
क्या कभी आपने खुद से पूछा है — "मैं हर दिन क्यों उठता हूँ? मेरी ज़िंदगी की सुबह किसलिए होती है?"
हम में से ज़्यादातर लोग सुबह जागते हैं, काम पर जाते हैं, ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं — लेकिन भीतर कहीं खालीपन बना रहता है।

वो सवाल, जो हम खुद से कभी नहीं पूछते — "क्या मैं वाकई उस काम को कर रहा हूँ जो मुझे भीतर से जीवंत करता है?"

यही सवाल, और इसके पीछे छिपे जवाब हमें देती है एक खूबसूरत और सोच बदल देने वाली किताब —
📘 "Ikigai: The Japanese Secret to a Long and Happy Life"।
यह किताब जापानी दर्शन के उस सरल सत्य को उजागर करती है जो कहता है —
"हर किसी के भीतर एक मकसद होता है, एक Ikigai — बस उसे ढूंढना बाकी है।"

इकिगाई" (Ikigai) एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ होता है:

 "जीवन का कारण या जीने की वजह या वो चीज़ जो आपको हर सुबह उठने की प्रेरणा देती है।"

तो आइए, एक नई सोच की ओर चलें —
जहाँ ज़िंदगी सिर्फ जीने के लिए नहीं, बल्कि मतलब के साथ जीने के लिए है।
"Ikigai" की इस यात्रा में आपको अपने ही जीवन की नई सुबह दिखेगी।


दीर्घायु के रहस्य (Secrets of Long Life)

"Ikigai: The Japanese Secret to a Long and Happy Life" पुस्तक में लेखक Héctor García और Francesc Miralles ने जापान (विशेष रूप से ओकिनावा द्वीप) के लोगों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य का रहस्य बहुत ही सुंदर और व्यावहारिक रूप में बताया है।

यहाँ पर प्रस्तुत है:

— ओकिनावा के सौ साल से अधिक जीने वाले लोगों की जीवनशैली से सीखा गया ज्ञान —

 1. इकिगाई – जीवन का उद्देश्य होना

  • हर दिन कुछ ऐसा करने की प्रेरणा जो आत्मा को संतोष दे।
  • "रिटायरमेंट" की कोई अवधारणा नहीं — वे जीवनभर सक्रिय रहते हैं।

 2. Hara Hachi Bu – पेट 80% भरकर खाना

  • ओकिनावा के लोग खाते समय पेट पूरी तरह नहीं भरते।
  • इससे मोटापा, डाइजेशन समस्या और कई रोगों से बचाव होता है।

 3. नियमित हल्का व्यायाम

  • हर दिन चलना, बगीचा करना, ताई-ची जैसे धीमे व्यायाम करना।
  • जीवनभर शरीर को गतिशील और लचीला बनाए रखना।

 4. Moai – मजबूत सामाजिक नेटवर्क

  • गहरे, भरोसेमंद मित्रों का समूह जिसमें हर सदस्य एक-दूसरे की मदद करता है।
  • अकेलापन नहीं होता – भावनात्मक सहारा जीवन भर मिलता है।

 5. तनाव से दूरी और मानसिक शांति

  • ध्यान, ज़ेन अभ्यास, बागवानी, शांत दिनचर्या से मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं।
  • “वर्तमान में जीना” इनका मंत्र है।

 6. प्राकृतिक जीवन और संतुलित आहार

  • आहार में ताजे फल-सब्जियां, सोया, मछली, हर्बल चाय और कम मीठा होता है।
  • रेड मीट और प्रोसेस्ड फूड से परहेज़।

 7. सीखते रहना और सक्रिय रहना

  • ये लोग नई चीजें सीखते रहते हैं, चाहे उम्र कुछ भी हो।
  • बौद्धिक सक्रियता भी दीर्घायु में योगदान देती है।

 8. सादा, नियमित, अर्थपूर्ण जीवनशैली

  • कोई भौतिक विलासिता नहीं, पर हर दिन में गहराई होती है।
  • दिनचर्या में क्रम, स्वच्छता और कृतज्ञता का भाव।

फ्लो (Flow) – आनंद की स्थिति

बिलकुल! आइए "Ikigai" पुस्तक के आधार पर "फ्लो (Flow)" को विस्तार से, सरल भाषा में और उदाहरणों सहित समझते हैं:


फ्लो (Flow) – आनंद की चरम स्थिति क्या है?

"Flow" एक मानसिक अवस्था है जिसमें इंसान किसी कार्य में इतना डूब जाता है कि उसे समय, भूख, थकान, और आसपास की दुनिया का ध्यान ही नहीं रहता। यह अवस्था आनंद, संतुलन और मानसिक शांति की चरम स्थिति होती है।

 इसे हिंदी में कहें तो:

"एक ऐसी स्थिति, जब आप अपने काम में इतने मग्न हो जाते हैं कि बाहर की दुनिया का कोई असर नहीं पड़ता – सिर्फ आप और आपका कार्य बचता है।"


Flow की 6 प्रमुख विशेषताएँ:

विशेषता विवरण
🎯 स्पष्ट उद्देश्य कार्य करते समय लक्ष्य स्पष्ट होता है – आप जानते हैं कि क्या करना है।
🧠 पूर्ण एकाग्रता ध्यान बिखरता नहीं है – मोबाइल, शोरगुल सब व्यर्थ लगते हैं।
🕒 समय का बोध मिट जाता है आपको लगता है जैसे "समय उड़ गया" – 1 घंटा कब बीत गया पता नहीं।
😊 भीतर से आनंद मिलता है इस आनंद के लिए आपको किसी पुरस्कार की जरूरत नहीं।
📈 कौशल और चुनौती का संतुलन कार्य न बहुत आसान होता है न बहुत कठिन – ठीक संतुलन में।
🚫 अहंभाव समाप्त ‘मैं’ की भावना मिट जाती है – सिर्फ कार्य रह जाता है।

Flow कैसे काम करता है?

जब आप कोई ऐसा काम करते हैं जो:

  • आपको पसंद है
  • जिसमें आप दक्ष हैं
  • और जो आपको चुनौती देता है

...तो आप धीरे-धीरे "Flow State" में प्रवेश कर जाते हैं। इसमें मस्तिष्क में डोपामीन और एंडॉर्फिन जैसे हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं, जो गहरी संतुष्टि और मानसिक सुकून देते हैं।


Flow के उदाहरण (जहाँ लोग Flow महसूस करते हैं):

गतिविधि
कैसे Flow में जाते हैं

🎨 चित्र बनाना                                                                 रेखा दर रेखा बनाते हुए ध्यान केंद्रित हो जाता है
🎵 वाद्य बजाना सुर और ताल में पूरा ध्यान समर्पित हो जाता है
🧘 योग / ध्यान सांस और गति पर एकाग्रता से सब कुछ भूल जाते हैं
✍️ लेखन / पढ़ना शब्दों में खो जाना – समय का भान नहीं
🧑‍🍳 खाना बनाना हर प्रक्रिया में लीन होना
💻 कोडिंग / डिजाइन मानसिक और तकनीकी चुनौती का मिलन
🚴 साइकलिंग / दौड़ना गति और सांस पर नियंत्रण

Flow में कैसे आएं? (Practically)

  1. 📵 ध्यान भटकाने वाली चीजें (जैसे मोबाइल) हटाएं
  2. 🎯 एक लक्ष्य तय करें
  3. ⏳ समय सीमा या कार्य का एक छोटा टुकड़ा चुनें
  4. 💪 थोड़ा चुनौतीपूर्ण काम लें – न बहुत आसान, न असंभव
  5. 🔁 नियमित अभ्यास करें – Flow एक आदत बन सकता है

Ikigai और Flow का संबंध:

Flow आपको वो आनंद देता है, जो आपको अपने इकिगाई तक पहुँचने में मदद करता है।
"अगर आप रोज़ कुछ ऐसा करते हैं जिसमें आप Flow में आ जाते हैं – वही आपका Ikigai बन सकता है।"


Ikigai के चार स्तंभ (Four Pillars of Ikigai)

Ikigai को समझने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है इसके चार स्तंभों को जानना। ये चार बातें जब आपस में जुड़ती हैं, तभी "इकिगाई" उत्पन्न होता है।

स्तंभ विवरण
❤️ आप क्या पसंद करते हैं? (What You Love) वो चीज़ें जो आपको खुशी देती हैं – आपका जुनून।
💪 आप किसमें अच्छे हैं? (What You Are Good At) आपकी प्रतिभा, कौशल, योग्यता।
🌍 दुनिया को क्या चाहिए? (What The World Needs) समाज, परिवार या दुनिया की ज़रूरतें।
💰 आप किससे कमाई कर सकते हैं? (What You Can Be Paid For) वो काम जिससे आपकी आय हो सकती है।

 जब ये चारों मिलते हैं, तभी बनता है आपका “Ikigai” 

📌 उदाहरण:
अगर आपको संगीत पसंद है 🎵, आप उसमें अच्छे भी हैं 💪, लोग भी उसे पसंद करते हैं 🌍 और आप उससे पैसा कमा सकते हैं 💰 — तो शायद संगीत ही आपका इकिगाई है। 


फ्लो (Flow) – आनंद की स्थिति

फ्लो वह मानसिक अवस्था है जब आप किसी कार्य में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि समय, भूख, थकान – सबका भान नहीं रहता। यह अनुभूति हमें खुशी देती है, तनाव को घटाती है और हमें अपने काम से जोड़ती है।

🔷 फ्लो की विशेषताएँ:




1️⃣ पूर्ण एकाग्रता                                                       ध्यान पूरी तरह काम में होता है – ध्यान भटकता नहीं।
2️⃣ समय का अहसास मिट जाता है कब 1 घंटा बीत गया, पता ही नहीं चलता।
3️⃣ अंदर से सुख मिलता है बाहरी पुरस्कार की चाह नहीं होती।
4️⃣ लक्ष्य स्पष्ट होता है आप जानते हैं आप क्या कर रहे हैं और क्यों।
5️⃣ कौशल और चुनौती में संतुलन काम न ज़्यादा आसान होता है, न ज़्यादा कठिन।

 उदाहरण – फ्लो की स्थिति में आप:
  • चित्र बना रहे हों, म्यूजिक बजा रहे हों
  • कोई किताब पढ़ रहे हों
  • बागवानी कर रहे हों
  • लेखन, कोडिंग, स्पोर्ट्स, सिलाई या कोई मनपसंद काम कर रहे हों

📌 फ्लो से मानसिक शांति, आत्म-संतुष्टि और लंबा जीवन मिलता है।


Ikigai के चार स्तंभ (Four Pillars of Ikigai)

Ikigai को समझने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है इसके चार स्तंभों को जानना। ये चार बातें जब आपस में जुड़ती हैं, तभी "इकिगाई" उत्पन्न होता है।

स्तंभ विवरण
❤️ आप क्या पसंद करते हैं? (What You Love) वो चीज़ें जो आपको खुशी देती हैं – आपका जुनून।
💪 आप किसमें अच्छे हैं? (What You Are Good At) आपकी प्रतिभा, कौशल, योग्यता।
🌍 दुनिया को क्या चाहिए? (What The World Needs) समाज, परिवार या दुनिया की ज़रूरतें।
💰 आप किससे कमाई कर सकते हैं? (What You Can Be Paid For) वो काम जिससे आपकी आय हो सकती है।

🔄 जब ये चारों मिलते हैं, तभी बनता है आपका “Ikigai” 🔄

📌 उदाहरण:
अगर आपको संगीत पसंद है 🎵, आप उसमें अच्छे भी हैं 💪, लोग भी उसे पसंद करते हैं 🌍 और आप उससे पैसा कमा सकते हैं 💰 — तो शायद संगीत ही आपका इकिगाई है।


 निष्कर्ष:

  • फ्लो = उस कार्य में खो जाना जिससे आपको गहरा आनंद मिलता है।
  • इकिगाई = वो जीवन उद्देश्य जो आपको हर दिन जीने की प्रेरणा देता है।
  • और जब आपका इकिगाई वह काम है जिसमें आप फ्लो अनुभव करते हैं, तो आप सच में खुश और संतुलित जीवन जीते हैं।

यदि आप इस विचार को और गहराई से समझना चाहते हैं, तो "Ikigai: The Japanese Secret to a Long and Happy Life" पुस्तक अवश्य पढ़ें – यह आपको अपने जीवन के उद्देश्य की खोज में मार्गदर्शन करेगी।

👉 यहाँ क्लिक करें पुस्तक देखने के लिए

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21 जून 2025

आओ सहयोग का महत्व को जानें

   



🌟 सहयोग: सफलता की सामूहिक उड़ान

कहा जाता है कि यदि अनेक पंखों को एक ही दिशा में उड़ान दी जाए, तो वे किसी एक पक्षी की तुलना में कहीं अधिक दूरी तय कर सकते हैं। यही सिद्धांत सहयोग का सार है। जब कई लोग संगठित होकर एक दिशा में सामूहिक प्रयास करते हैं, तो असंभव प्रतीत होने वाले कार्य भी सहजता से पूर्ण हो जाते हैं।

🤝 सहयोग: सामूहिक सफलता की कुंजी

सहयोग एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी भी कार्य को उसकी मंज़िल तक शीघ्रता और सरलता से पहुंचा सकते हैं। जिस कार्य को एक व्यक्ति अकेले वर्षों में भी नहीं कर पाता, वही कार्य परस्पर सहयोग से चंद दिनों में पूर्ण हो सकता है। लेकिन सहयोग केवल एक भावना नहीं, एक व्यवहारिक प्रक्रिया है, जिसे साकार करने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों, समूहों या संगठनों की ज़रूरत होती है।

सहयोग कोई दया नहीं, यह विकास का माध्यम है

यदि ध्यान से देखा जाए, तो सहयोग किसी पर की गई कृपा नहीं, बल्कि समाज के सामूहिक उत्थान की नींव है। जब हम किसी का सहयोग करते हैं, तो हम केवल उसकी सहायता नहीं करते — हम एक स्थायी संबंध, एक विश्वासी साथी तैयार करते हैं। यदि हम सबका सहयोग न भी कर पाएं, तो कम से कम एक व्यक्ति का सहयोग अवश्य करें। यही छोटे-छोटे सहयोग की श्रृंखलाएं बड़े बदलाव की शुरुआत बनती हैं।

🌈 सहयोग के अनेक रूप

सहयोग सिर्फ धन देने तक सीमित नहीं है। यह समय, विचार, प्रयास, सहानुभूति, मार्गदर्शन या केवल भावनात्मक समर्थन के रूप में भी हो सकता है। जो लोग सहयोग करते हैं, वे कालांतर में स्वयं भी सहयोग पाने के अधिकारी बनते हैं। वास्तव में, सहयोग हमें अपने अंदर की श्रेष्ठ ऊर्जा का उपयोग करना सिखाता है और जीवन में सद्भाव उत्पन्न करता है।

🧗‍♂️ सहयोग: पर्वतारोहण की सुरक्षा रस्सी

जीवन की यात्रा बिल्कुल पर्वतारोहण जैसी है — जहां नुकीले पत्थर, ढलानें, घाटियाँ और जोखिम भरे मोड़ आते हैं। पर्वत की चोटी तक पहुंचने के लिए केवल साहस और ज्ञान नहीं, बल्कि सहयोग की सुरक्षा रस्सी भी आवश्यक होती है। इसी तरह, जीवन में हर छोटा कदम, जब सामूहिक रूप से आगे बढ़ाया जाता है, तो सफलता निश्चित हो जाती है।

💡 सहयोग: एक दृष्टिकोण, एक दायित्व

सहयोग केवल एक भावना नहीं, बल्कि हमारा सामाजिक उत्तरदायित्व है। इसके लिए निःस्वार्थता, साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए। कई बार जब कोई सहयोग करता है, तो उसे आलोचना और अस्वीकार का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थितियों में हमें आंतरिक बल और मूल्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिससे हम सच्चे और स्थिर सहयोगी बन सकें।

🙌 प्रशंसा, सहनशीलता और समय का सम्मान

सहयोग के लिए हमें हर व्यक्ति की अनूठी भूमिका को समझना और उसकी प्रशंसा करनी होगी। साथ ही, परिस्थितियों और समय की प्रकृति को स्वीकार करते हुए सहनशीलता का विकास करना होगा। जब हम समय की कद्र करते हैं, तो समय भी हमें सहयोग देना शुरू करता है। समय के साथ सहयोग करके हम अनिवार्य और सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।


🏔️ एक छोटी उंगली से उठ सकता है पूरा पर्वत

सहयोग का अर्थ है — हम एकजुट हों, और एक सामूहिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तन, मन और धन से प्रयास करें। अगर हम सभी सिर्फ एक छोटी उंगली के बराबर भी बल लगाएं, तो मिलकर एक विशाल पर्वत को भी उठा सकते हैं।


निष्कर्ष

सहयोग केवल समाज की प्रगति का माध्यम नहीं, बल्कि एक आत्मिक और मानवीय आवश्यकता है। यह हमें जोड़ता है, बढ़ाता है और ऊंचाइयों तक पहुंचाता है। यदि हम सहयोग को जीवन का मूलमंत्र बना लें, तो न केवल व्यक्तिगत सफलता बल्कि सामाजिक परिवर्तन भी संभव हो सकता है।



12 जनवरी 2025

शांत रहना कमजोरी नहीं, आंतरिक ताकत का प्रतीक

"शांत रहने से लोग आपको कमजोर समझते हैं" – यह वाक्य एक आम धारणा को उजागर करता है, जो हमारे समाज में प्रचलित है। हम अक्सर यह सुनते हैं कि जो व्यक्ति शांत और विनम्र होता है, उसे कमजोरी की निशानी समझा जाता है। यह धारणा न केवल हमारे समाज की मानसिकता को दर्शाती है, बल्कि हमारे सोचने के तरीके को भी प्रभावित करती है। लेकिन क्या सच में शांत रहना कमजोरी का प्रतीक है? क्या शांत रहने वाले व्यक्ति की ताकत की पहचान हम कर पाते हैं? इस लेख में हम इस विषय को गहराई से समझने का प्रयास करेंगे।

शांत रहने का वास्तविक अर्थ

शांत रहने का मतलब केवल यह नहीं है कि आप चुप रहें या अपनी भावनाओं का प्रदर्शन न करें। यह एक मानसिक और आत्मिक स्थिति को दर्शाता है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर की आंतरिक शांति को बनाए रखते हुए बाहरी दुनिया की उथल-पुथल से प्रभावित नहीं होता। शांत रहने का मतलब है अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण पाना, अपने आंतरिक संतुलन को बनाए रखना और स्थिति को समझने का प्रयास करना। शांत व्यक्ति, उन परिस्थितियों में भी शांति बनाए रखता है, जहाँ दूसरों का संयम टूट सकता है।

यह भी कहा जा सकता है कि शांत रहना एक प्रकार का आत्म-संयम है। जब आप शांत रहते हैं, तो आप अपने भीतर की शक्ति को महसूस करते हैं, और यह शक्ति आपको हर चुनौती का सामना करने में सक्षम बनाती है। इसलिए, शांत रहना कमजोरी नहीं, बल्कि एक ताकत का प्रतीक है।

समाज की मानसिकता और धारणा

हमारे समाज में अक्सर यह माना जाता है कि जो व्यक्ति शांत और विनम्र होता है, वह कमजोर है। हम यह सोचने लगते हैं कि वह व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकता, वह संघर्ष से बचता है, और वह अपने आसपास की स्थितियों का विरोध नहीं करता। यह सोच पूरी तरह से गलत है, क्योंकि शांत व्यक्ति संघर्ष से बचने का प्रयास नहीं करता, बल्कि वह अपने आंतरिक शक्ति और समझ के माध्यम से उस संघर्ष का समाधान ढूंढता है।

यह धारणा इसलिए भी प्रचलित है क्योंकि हम अक्सर सफलता और ताकत को बाहरी प्रदर्शन, आक्रामकता, और शोर-शराबे से जोड़ते हैं। जब हम किसी व्यक्ति को जोर-शोर से अपनी बात रखते हुए या संघर्ष करते हुए देखते हैं, तो हमें लगता है कि वह व्यक्ति मजबूत है। लेकिन यह बाहरी दिखावा असली ताकत नहीं है। असली ताकत तब होती है जब आप अपनी आंतरिक स्थिति पर नियंत्रण रखते हुए किसी भी परिस्थिति में संतुलित रहते हैं।

 शांत व्यक्ति की ताकत

शांत व्यक्ति की ताकत इस बात में होती है कि वह कभी भी परिस्थिति से बाहर नहीं होता। वह हमेशा स्थिति को समझने की कोशिश करता है और समाधान की दिशा में कदम बढ़ाता है। जब एक व्यक्ति शांत रहता है, तो वह अपने आसपास के वातावरण और लोगों को भी शांति का संदेश देता है। यह उसकी आंतरिक शक्ति का प्रमाण है। शांत रहने वाले व्यक्ति के भीतर एक गहरी समझ और स्थिरता होती है, जो उसे किसी भी मुश्किल से निपटने में मदद करती है।

शांत रहकर व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति को नियंत्रित करता है, और यही उसके आत्मविश्वास का कारण बनता है। बाहरी दुनिया चाहे जैसी भी हो, शांत व्यक्ति अपने भीतर की स्थिति से संतुष्ट रहता है। वह संघर्षों से बचता नहीं, बल्कि उन संघर्षों का सामना करता है। उसकी शक्ति उसकी धैर्य और आंतरिक शांति में छिपी होती है।

शांत व्यक्ति और उसका आंतरिक संघर्ष

एक शांत व्यक्ति हमेशा आंतरिक संघर्षों का सामना करता है। वह अपने भीतर के विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। यह आसान काम नहीं है। आंतरिक संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब बाहरी परिस्थितियाँ हमें परेशान करती हैं, लेकिन शांत व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति से उस संघर्ष को शांत करने का प्रयास करता है।

शांत व्यक्ति का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह किसी भी स्थिति में शांत रहने की कोशिश करता है। वह किसी भी अप्रिय घटना या तनावपूर्ण परिस्थिति में अपने भावनाओं को काबू में रखता है। इस प्रकार, वह अपने भीतर के संघर्षों का समाधान खुद ढूंढता है, और यह उसे दूसरों से कहीं अधिक मजबूत बनाता है।

संघर्ष से भागना नहीं, उसे शांति से हल करना

यह गलत धारणा है कि शांत व्यक्ति संघर्ष से भागता है। असल में, शांत व्यक्ति संघर्षों का सामना शांति से करता है। वह जानता है कि हर संघर्ष का समाधान शांतिपूर्वक बातचीत, समझ, और सहानुभूति से निकाला जा सकता है। यह भी कह सकते हैं कि शांत व्यक्ति किसी भी परिस्थिति को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि उस पर काबू पाने के तरीके खोजता है।

समाज में जो लोग आक्रामक और जोर-शोर से संघर्ष करते हैं, वे कभी-कभी इसे अपनी ताकत समझ लेते हैं। लेकिन असली ताकत तब होती है जब आप किसी भी संघर्ष को बिना किसी आक्रामकता के शांति से हल कर लेते हैं। यह शांति व्यक्ति के भीतर की गहरी समझ और आत्मविश्वास का परिणाम होती है।

समाज में शांत लोगों की भूमिका

हमारे समाज में शांति और संयम की आवश्यकता है। शांति केवल बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि हमारे भीतर से आनी चाहिए। शांत व्यक्ति समाज में एक आदर्श बनता है, जो दूसरों को यह सिखाता है कि कैसे किसी भी समस्या का समाधान शांति और धैर्य से किया जा सकता है। शांत व्यक्ति अपने विचारों और कार्यों से समाज में बदलाव लाता है।

शांति का संदेश देने वाला व्यक्ति हमेशा सकारात्मक वातावरण का निर्माण करता है। वह अपने आसपास के लोगों को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। जब आप शांत रहते हैं, तो आप दूसरों के लिए एक उदाहरण बनते हैं, और इससे समाज में बदलाव आता है। शांत रहने से, आप न केवल अपनी शांति बनाए रखते हैं, बल्कि दूसरों को भी यह समझाने में मदद करते हैं कि असली ताकत बाहरी आक्रामकता में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और संयम में होती है।

शांत रहने का आंतरिक लाभ

शांत रहने से न केवल बाहरी दुनिया में सुधार होता है, बल्कि यह आपके भीतर भी कई लाभ लाता है। जब आप शांत रहते हैं, तो आपका मन स्थिर रहता है, और आप अपने विचारों को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं। यह मानसिक शांति आपको अपनी समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करती है। इसके अलावा, शांत रहने से आपका स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है। तनाव और चिंता से बचने के कारण आप मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

शांत रहने से आत्मनिर्भरता का भी विकास होता है। जब आप शांत रहते हैं, तो आप अपनी स्थिति पर नियंत्रण रखते हैं, और किसी भी परिस्थिति में अपनी शक्ति को महसूस करते हैं। यह आत्मविश्वास और मानसिक मजबूती का प्रतीक है, जो किसी भी संघर्ष का सामना करने में आपकी मदद करता है।

निष्कर्ष

इस लेख में हमने यह समझने की कोशिश की है कि शांत रहने से लोग आपको कमजोर क्यों समझते हैं, और वास्तविकता में शांत रहना किसी प्रकार की कमजोरी नहीं है। शांत व्यक्ति अपने भीतर की शक्ति, संयम, और समझ के माध्यम से जीवन के संघर्षों का सामना करता है। उसकी ताकत उसकी आंतरिक शांति और आत्मविश्वास में छिपी होती है, और वह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होता है।

शांत रहना कोई कमजोरी नहीं, बल्कि यह एक आंतरिक शक्ति का प्रतीक है, जो हर व्यक्ति के भीतर मौजूद होती है। इसलिए हमें शांत रहने की ताकत को समझना चाहिए और इसे अपनी सबसे बड़ी शक्ति के रूप में अपनाना चाहिए।

28 दिसंबर 2024

कहीं आप मोबाइल का गुलाम तो नहीं हो रहे हैं ?


आज की डिजिटल दुनिया में मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। यह हमें न केवल सूचना और मनोरंजन का स्रोत प्रदान करता है, बल्कि हमारे जीवन को सुविधाजनक भी बनाता है। लेकिन क्या यह सुविधा हमें गुलाम बना रही है?
सुबह आंख खुलने से लेकर रात सोने तक, हमारा ध्यान मोबाइल स्क्रीन पर टिका रहता है। सोशल मीडिया, गेम्स और वीडियो देखने में इतना समय बीत जाता है कि हम अपने परिवार, दोस्तों और यहां तक कि खुद से भी दूर होते जा रहे हैं। कार्यक्षमता पर भी इसका असर दिखता है, क्योंकि मोबाइल पर अनावश्यक समय बिताने से ध्यान भटकता है और उत्पादकता घटती है।
मोबाइल का अत्यधिक उपयोग न केवल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव डालता है, जैसे आंखों में तनाव, नींद की कमी और गर्दन दर्द। इसके अलावा, यह आदत हमें वास्तविक दुनिया की खूबसूरती से दूर कर रही है।
समय है आत्मचिंतन का। क्या हम अपने जीवन पर नियंत्रण रखते हैं या मोबाइल हमें नियंत्रित कर रहा है? हमें इसे एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, न कि इसे अपनी जिंदगी का मालिक बनने देना चाहिए। बैलेंस बनाकर ही हम तकनीक का सही उपयोग कर सकते है । 

चलिए नीचे दी गई कुछ बिंदुओं पर हम विचार करते हैं


 मोबाइल के प्रति बढ़ती निर्भरता: क्या यह असामान्य है ?

आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह न केवल संचार का माध्यम है, बल्कि मनोरंजन, शिक्षा, कामकाज और सूचना प्राप्ति का भी एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। हालांकि, इसके बढ़ते उपयोग ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है: क्या यह निर्भरता सामान्य है या चिंता का कारण बन रही है?

मोबाइल का अत्यधिक उपयोग अब आम बात हो गई है। लोग सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक इसे देखते रहते हैं। चाहे सोशल मीडिया स्क्रॉल करना हो, गेम खेलना हो, या ऑनलाइन शॉपिंग करना, मोबाइल हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। यह निर्भरता किसी हद तक तकनीकी विकास की आवश्यकता को दर्शाती है, लेकिन इसके नकारात्मक प्रभाव भी स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं।
सबसे बड़ा प्रभाव हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत पर पड़ा है। स्क्रीन टाइम बढ़ने से आंखों की समस्याएं, नींद की कमी और मानसिक तनाव बढ़ रहा है। साथ ही, लोग वास्तविक दुनिया से दूर होते जा रहे हैं। रिश्तों में संवाद की कमी और अकेलेपन की भावना बढ़ती जा रही है।
यह निर्भरता कितनी सही है, यह व्यक्ति के उपयोग पर निर्भर करता है। अगर मोबाइल का उपयोग सीमित और उद्देश्यपूर्ण है, तो यह जीवन को सरल बना सकता है। लेकिन यदि यह हमारी प्राथमिकताओं पर हावी होने लगे, तो यह गंभीर समस्या बन सकता है।
समाधान के रूप में डिजिटल डिटॉक्स, समय प्रबंधन, और मोबाइल के गैर-आवश्यक उपयोग को कम करना जरूरी है। तकनीक हमारे लिए है, न कि हम तकनीक के लिए। हमें यह संतुलन समझना होगा कि मोबाइल हमारे जीवन को आसान बनाए, न कि हमें नियंत्रित करे।

मोबाइल उपयोग का मानसिक और शारीरिक प्रभाव

मोबाइल का अत्यधिक उपयोग मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरे प्रभाव डाल सकता है। शारीरिक दृष्टिकोण से, लंबे समय तक मोबाइल स्क्रीन पर नज़रें रखने से आंखों में तनाव, सूजन, और सूखी आंखों जैसी समस्याएं हो सकती हैं, जिसे "स्क्रीन स्ट्रेन" कहा जाता है। इसके अलावा, घंटों तक बैठने से शरीर में दर्द, खासकर गर्दन, पीठ और कंधे में समस्या उत्पन्न हो सकती है। मोबाइल के ज्यादा उपयोग से नींद में भी खलल पड़ता है, क्योंकि रात को स्क्रीन पर प्रकाश से मेलाटोनिन हार्मोन का स्तर घटता है, जो नींद के लिए जरूरी होता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसके नकारात्मक प्रभाव होते हैं। सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से मानसिक तनाव, चिंता और आत्मसम्मान में गिरावट हो सकती है। अक्सर दूसरों की पोस्ट से तुलना करने से निराशा और अवसाद की स्थिति पैदा हो सकती है। इसके अलावा, मोबाइल की लत से एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में भी कमी आ सकती है, जिससे काम में उत्पादकता कम होती है।
इसलिए, मोबाइल का उपयोग संतुलित और उद्देश्यपूर्ण तरीके से करना चाहिए, ताकि इसके नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सके और मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहे।

 स्क्रीन टाइम: कितना है ज्यादा और कितना सही ?

स्क्रीन टाइम का सही या ज्यादा होना व्यक्ति की उम्र, जीवनशैली और गतिविधियों पर निर्भर करता है। बच्चों के लिए, अमेरिकन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) ने 2 से 5 साल के बच्चों के लिए 1 घंटे प्रति दिन से ज्यादा स्क्रीन टाइम की सलाह नहीं दी है। 6 साल और उससे बड़े बच्चों के लिए यह समय 2 घंटे तक सीमित किया जा सकता है। हालांकि, स्क्रीन टाइम का उद्देश्य मनोरंजन के बजाय शिक्षा और विकास होना चाहिए।
वयस्कों के लिए, सामान्य रूप से 2 से 4 घंटे स्क्रीन टाइम की सलाह दी जाती है, हालांकि यह काम की आवश्यकता या व्यक्तिगत आदतों के अनुसार भिन्न हो सकता है। अगर स्क्रीन टाइम में अधिक समय व्यतीत होता है, तो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, 

 डिजिटल डिटॉक्स: मोबाइल की लत से छुटकारा कैसे पाएं ?


डिजिटल डिटॉक्स मोबाइल की लत से छुटकारा पाने का तरीका है। इसके लिए:

 स्क्रीन टाइम लिमिट तय करें :-  रोजाना मोबाइल का इस्तेमाल तय समय से ज्यादा न करें।

 नोटिफिकेशन बंद करें:- अनावश्यक सूचनाएं बंद कर ध्यान भटकने से बचें।

डिवाइस को दूर रखें:-  सोते समय या काम करते समय मोबाइल को दूर रखें।

ऑफ लाइन एक्टिविटीज बढ़ाएं:- किताबें पढ़ें, खेलें या परिवार के साथ समय बिताएं।

फिजिकल एक्टिविटी:- नियमित रूप से व्यायाम करें, जिससे मानसिक और शारीरिक तनाव घटे।

 इन उपायों से आप मोबाइल की लत को नियंत्रित कर सकते हैं और अपनी जीवनशैली को संतुलित बना सकते हैं।


 मोबाइल के कारण रिश्तों में बढ़ती दूरियां

मोबाइल फोन ने आज संचार को आसान बना दिया है, लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग रिश्तों में दूरियां पैदा कर रहा है। अक्सर देखा जाता है कि लोग परिवार या दोस्तों के साथ समय बिताने के बजाय अपने मोबाइल स्क्रीन में व्यस्त रहते हैं। यह व्यवहार न केवल संवाद की कमी पैदा करता है, बल्कि रिश्तों में भावनात्मक दूरी भी बढ़ा देता है।
मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने से आपसी बातचीत का समय कम हो जाता है। जब लोग वास्तविक बातचीत के बजाय सोशल मीडिया या मैसेजिंग ऐप्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो इससे रिश्तों में गलतफहमियां बढ़ सकती हैं। साथ ही, मोबाइल पर लगातार व्यस्त रहने से साथी या परिवार के सदस्यों को यह महसूस हो सकता है कि उनकी उपेक्षा की जा रही है।
इसके अलावा, मोबाइल पर अनावश्यक सूचना और सामग्री का उपभोग रिश्तों में अनावश्यक तनाव और जलन का कारण बन सकता है। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया पर अन्य लोगों की खुशहाल जिंदगी देखकर लोग अपने रिश्तों की तुलना करने लगते हैं, जिससे असंतोष बढ़ सकता है।
इस समस्या का समाधान संतुलन में है। परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते समय मोबाइल से दूरी बनाना और वास्तविक संवाद को प्राथमिकता देना जरूरी है। रिश्ते भावनाओं और समझ पर आधारित होते हैं, और इन्हें प्रौद्योगिकी के कारण कमजोर नहीं होने देना चाहिए।

क्या मोबाइल आपकी नींद चुरा रहा है ?

मोबाइल का अत्यधिक उपयोग आपकी नींद की गुणवत्ता और मात्रा को प्रभावित कर सकता है। सोने से पहले मोबाइल स्क्रीन का उपयोग करना आजकल एक आम आदत बन गई है, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को बाधित करती है, जो हमारे सोने और जागने के चक्र को नियंत्रित करता है। इसके परिणामस्वरूप, नींद देर से आती है और उसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है। सोशल मीडिया स्क्रॉल करना, वीडियो देखना, या गेम खेलना दिमाग को उत्तेजित कर देता है, जिससे आराम महसूस करने में मुश्किल होती है।
नींद की कमी से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यह थकान, ध्यान की कमी, चिड़चिड़ापन, और यहां तक कि दीर्घकालिक समस्याएं जैसे तनाव और हृदय रोगों का कारण बन सकता है।
समाधान के रूप में, सोने से कम से कम एक घंटे पहले मोबाइल का उपयोग बंद कर देना चाहिए। "डिजिटल कर्फ्यू" अपनाएं और अपनी नींद के वातावरण को शांतिपूर्ण बनाएं। यदि आप मोबाइल का उपयोग आवश्यक रूप से करते हैं, तो ब्लू लाइट फिल्टर या "नाइट मोड" का उपयोग करें। बेहतर नींद के लिए यह जरूरी है कि आप तकनीक को अपने जीवन पर हावी न होने दें।

 मोबाइल का अत्यधिक उपयोग: बच्चों पर प्रभाव

मोबाइल का अत्यधिक उपयोग बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। लगातार मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताने से बच्चों की आंखों पर जोर पड़ता है, जिससे दृष्टि समस्याएं, जैसे मायोपिया, विकसित हो सकती हैं। शारीरिक गतिविधियों की कमी से मोटापा, मांसपेशियों की कमजोरी और शरीर के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। मोबाइल पर लगातार समय बिताने से बच्चों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो सकती है और पढ़ाई-लिखाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सोशल मीडिया और गेम्स के जरिए बच्चों में तनाव, चिड़चिड़ापन और यहां तक कि आक्रामकता भी देखने को मिल सकती है।
सामाजिक दृष्टिकोण से, मोबाइल बच्चों को वास्तविक दुनिया से दूर कर देता है। वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने के बजाय वर्चुअल दुनिया में व्यस्त रहते हैं, जिससे उनके सामाजिक कौशल का विकास बाधित होता है।
समस्या के समाधान के लिए माता-पिता को बच्चों के मोबाइल उपयोग पर निगरानी रखनी चाहिए। उन्हें शारीरिक गतिविधियों और रचनात्मक खेलों के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी है। सीमित और उद्देश्यपूर्ण मोबाइल उपयोग से बच्चों के स्वस्थ विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है।

क्या आपका मोबाइल आपका सबसे बड़ा साथी बन गया है ?

आज के डिजिटल युग में मोबाइल कई लोगों के लिए सबसे बड़ा साथी बन गया है। यह हर समय हमारे साथ रहता है, संचार, मनोरंजन, और कामकाज का मुख्य साधन बन चुका है। हालांकि, इस पर अत्यधिक निर्भरता हमें वास्तविक रिश्तों और सामाजिक संपर्क से दूर कर रही है। लोग घंटों मोबाइल पर बिताते हैं, जिससे व्यक्तिगत संबंधों और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यदि मोबाइल का उपयोग संतुलित और उद्देश्यपूर्ण तरीके से किया जाए, तो यह एक सहायक उपकरण हो सकता है, लेकिन इसे जीवन पर हावी होने देना हमें अकेला और निर्भर बना सकता है। संतुलन ही समाधान है।

निष्कर्ष

मोबाइल हमारी जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। स्क्रीन टाइम बढ़ने से नींद, दृष्टि और रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जबकि बच्चों के विकास और बड़ों की उत्पादकता भी बाधित होती है। हमें इसे एक सहायक उपकरण के रूप में देखना चाहिए, न कि जीवन का केंद्र बना देना चाहिए। संतुलित उपयोग, डिजिटल डिटॉक्स और वास्तविक दुनिया के अनुभवों को प्राथमिकता देकर ही हम इसके लाभ उठा सकते हैं और इसके दुष्प्रभावों से बच सकते हैं। तकनीक हमारी सेवा के लिए है, न कि हमें नियंत्रित करने के लिए।


27 मई 2024

गुस्से की प्रकृति को समझें

गुस्सा एक सामान्य और स्वाभाविक भावना है, जो हर व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी समय में प्रकट होती है।गुस्सा स्वाभाविक है, लेकिन इसे नियंत्रित करना आवश्यक है। असंयमित गुस्सा न केवल व्यक्तिगत रिश्तों को नुकसान पहुँचा सकता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

 यह भावना आमतौर पर तब प्रकट होती है जब व्यक्ति को लगता है कि उसे अपमानित किया गया है, उसके साथ अन्याय हुआ है, या उसकी अपेक्षाएँ पूरी नहीं हुई हैं, या उनके मन मुताबिक कोई काम ना हो रहा हो, प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न हुई हों। गुस्से का अनुभव करते समय व्यक्ति का हृदयगति बढ़ जाती है, रक्तचाप बढ़ सकता है, और शरीर में ऊर्जा का संचार तीव्र हो जाता है। गुस्से में व्यक्ति  कंट्रोल खोने लगता है। इस लेख में हम गुस्से के कारण, उनके प्रभाव और उसे नियंत्रित करने के उपायों पर विचार करेंगे।

क्रोध के कारण
क्रोध एक जटिल भावना है जो विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकती है। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए, आइए इसके प्रमुख कारणों पर विचार करें:

   अवरोध और बाधाएं
जब हमारी इच्छाएं, जरूरतें या लक्ष्यों में कोई बाधा आती है, तो यह क्रोध का कारण बन सकता है। 
जैसे कि
आप अपने किसी महत्वपूर्ण काम या मीटिंग के लिए समय पर पहुंचना चाहते हैं, लेकिन ट्रैफिक जाम में फंस जाते हैं। यह बाधा आपके समय पर पहुंचने के लक्ष्य में रुकावट डालती है और गुस्से का कारण बनती है।

आप एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और तकनीकी समस्या आ जाती है जिससे आपका काम रुक जाता है। यह भी एक अवरोध है जो गुस्से को उत्पन्न कर सकता है।

आप किसी काम को लेकर रोज़ रोज़ दफ्तर जा रहें है लेकिन किसी कारण से आपका काम हो नहीं पा रहा है। यह भी एक अवरोध है जो गुस्सा उत्पन्न कर सकता है।

अन्याय और असमानता
अन्याय और असमानता हमारे जीवन में गुस्से के प्रमुख कारण हो सकते हैं। जब हमें लगता है कि हमारे साथ गलत हुआ है या हमें समान अवसर नहीं मिले हैं, तो यह भावना उत्पन्न होती है। आइए समझते हैं कि यह प्रक्रिया कैसे काम करती है:
उदाहरण के लिए

कार्यस्थल पर किसी कर्मचारी को उसकी मेहनत के अनुसार प्रमोशन न मिलना, जबकि अन्य कम मेहनत करने वाले को प्रमोशन मिल जाना, अन्याय की भावना को जन्म देता है और गुस्सा उत्पन्न करता है।

किसी सार्वजनिक स्थान पर एक व्यक्ति को उसके सामाजिक या आर्थिक स्थिति के आधार पर नीचा दिखाना, उसकी स्वाभिमान की भावना को आहत करता है और गुस्सा उत्पन्न कर सकता है।

शिक्षा के क्षेत्र में, समान योग्यता और प्रयास के बावजूद, किसी विद्यार्थी को जाति, धर्म, या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे असमानता की भावना और गुस्सा उत्पन्न होता है।

किसी अपराधी को पर्याप्त सबूतों के बावजूद सजा न मिलना, जबकि पीड़ित को न्याय की प्राप्ति न होना, न्यायिक प्रणाली में खामियों को दर्शाता है और गुस्सा पैदा करता है।

अस्वीकृति और आलोचना
अस्वीकृति, आलोचना, या अपमान का सामना करने पर भी क्रोध पैदा हो सकता है। जब हमारी क्षमताओं, मूल्यों या व्यक्तित्व को नकारा जाता है, तो हम आहत और क्रोधित महसूस कर सकते हैं।

संवेदनशीलता
संवेदनशीलता का गुस्से के साथ गहरा संबंध है। 
कुछ लोग स्वाभाविक रूप से अधिक संवेदनशील होते हैं और छोटी-छोटी बातों पर भी क्रोधित हो सकते हैं। 

धमकी और खतरा
शारीरिक या मानसिक खतरे की स्थिति में, हमारा मस्तिष्क क्रोध की प्रतिक्रिया दे सकता है। यह एक रक्षा तंत्र है जो हमें लड़ाई या भागने के लिए प्रेरित करता है।

निराशा
लंबे समय तक असफलता या निराशा का सामना करने पर भी क्रोध उत्पन्न हो सकता है। जब हमारे प्रयास बार-बार विफल होते हैं, तो हम हताश और क्रोधित महसूस कर सकते हैं।

असंतोष और अधीरता
जब चीजें हमारी अपेक्षाओं के अनुसार नहीं होतीं या जब हमें प्रतीक्षा करनी पड़ती है, तो असंतोष और अधीरता क्रोध को जन्म दे सकती है।

मनोवैज्ञानिक मुद्दे
अवसाद, चिंता, या अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी क्रोध के कारण हो सकती हैं। इन स्थितियों में व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी अधिक तीव्र प्रतिक्रिया दे सकता है।

पर्यावरणीय और सामाजिक कारक
वातावरणीय तनाव, जैसे अत्यधिक शोर, भीड़-भाड़, या अशांत वातावरण, भी क्रोध का कारण बन सकते हैं। सामाजिक कारक, जैसे काम का दबाव या पारिवारिक समस्याएं, भी इसमें योगदान कर सकते हैं।

 आनुवंशिक कारक

कुछ लोग स्वाभाविक रूप से दूसरों की तुलना में अधिक क्रोधी होते हैं। यह उनके जैविक बनावट या आनुवंशिक कारकों के कारण हो सकता है।

 गुस्से का दुष्प्रभाव

गुस्सा एक सामान्य और स्वाभाविक भावना है, लेकिन जब यह अनियंत्रित और तीव्र होता है, तो यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। आइए गुस्से के दुष्प्रभावों को विस्तार से समझते हैं:

शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

 हृदय रोग:- अनियंत्रित गुस्सा हृदय की समस्याओं का खतरा बढ़ा सकता है, जैसे उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, और स्ट्रोक।
इम्यून सिस्टम:- लगातार गुस्सा इम्यून सिस्टम को कमजोर कर सकता है, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
पाचन समस्याएं:-गुस्से के समय शरीर में उत्पन्न तनाव पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकता है, जिससे अपच, अल्सर, और इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
सांस की समस्या:- गुस्सा अस्थमा और सांस की अन्य समस्याओं को बढ़ा सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

तनाव और चिंता:- गुस्सा मनोवैज्ञानिक तनाव और चिंता का कारण बन सकता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
अवसाद:- लगातार गुस्से की भावना अवसाद को बढ़ा सकती है, जिससे जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
नींद की समस्या:- अत्यधिक गुस्से की वजह से नींद की गुणवत्ता खराब हो सकती है, जिससे अनिद्रा या अन्य नींद से संबंधित विकार उत्पन्न हो सकते हैं।

रिश्तों पर प्रभाव

पारिवारिक संबंध:- गुस्सा पारिवारिक संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह झगड़े, तनाव और टूटते रिश्तों का कारण बन सकता है।
मित्रता:- गुस्से की भावना मित्रता को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे मित्र दूर हो सकते हैं और सामाजिक समर्थन कम हो सकता है।
गलतफहमियाँ:- गुस्से में संवाद करने से गलतफहमियाँ बढ़ सकती हैं और रिश्ते और भी खराब हो सकते हैं।

व्यावसायिक जीवन पर प्रभाव

 काम की गुणवत्ता :- गुस्सा काम पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है, जिससे कार्य की गुणवत्ता और उत्पादकता कम हो सकती है।
सहकर्मियों के साथ संबंध:- गुस्से की वजह से सहकर्मियों के साथ टकराव और तनाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे कार्यस्थल का वातावरण खराब हो सकता है।
कैरियर पर असर:- अनियंत्रित गुस्से की वजह से कार्यस्थल पर नकारात्मक छवि बन सकती है, जिससे प्रोमोशन और कैरियर विकास में बाधाएं आ सकती हैं।

सामाजिक जीवन पर प्रभाव
सामाजिक अलगाव :- गुस्से के कारण व्यक्ति सामाजिक आयोजनों और गतिविधियों से दूर हो सकता है, जिससे सामाजिक अलगाव और अकेलापन बढ़ सकता है।
समाज में छवि:- गुस्से की वजह से समाज में व्यक्ति की नकारात्मक छवि बन सकती है, जिससे लोग उससे दूरी बना सकते हैं।

गुस्से के अनियंत्रित होने पर इसके दुष्प्रभाव हमारे शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, व्यावसायिक, और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए, गुस्से को पहचानना और उसे सही तरीके से प्रबंधित करना महत्वपूर्ण है। 

हमें अपना गुस्सा कब दिखना चाहिए

गुस्सा एक स्वाभाविक भावना है, लेकिन इसे कब और कैसे व्यक्त करना चाहिए, यह महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित स्थितियों में गुस्से पर प्रतिक्रिया देना सही हो सकता है:

 सीमाओं का उल्लंघन:-  अगर कोई आपके व्यक्तिगत या पेशेवर सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है, तो संयमित और स्पष्ट तरीके से गुस्सा व्यक्त करना उचित हो सकता है।

अन्याय और दुर्व्यवहार:- जब आपके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ अन्याय या दुर्व्यवहार हो रहा हो, तो उचित और संयमित प्रतिक्रिया देना जरूरी हो सकता है।

बार-बार की गई गलतियाँ:- यदि कोई व्यक्ति बार-बार वही गलती कर रहा है और आपकी बातों को नजरअंदाज कर रहा है, तो स्थिति स्पष्ट करने और समस्या के समाधान के लिए गुस्से को व्यक्त करना सही हो सकता है।

खुद की या किसी की सुरक्षा के लिए:- यदि आपकी या किसी और की सुरक्षा खतरे में है, तो तुरंत और तीव्र प्रतिक्रिया देना आवश्यक हो सकता है।

हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि गुस्से पर प्रतिक्रिया देने से पहले निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जाए:

       समय और स्थान :- सुनिश्चित करें कि आप सही समय और स्थान पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। सार्वजनिक जगह पर या कार्यस्थल पर अनुचित तरीके से गुस्सा व्यक्त करने से स्थिति बिगड़ सकती है।

        संयम:- गुस्से को संयमित और तर्कसंगत तरीके से व्यक्त करें। चिल्लाने या अपमानजनक भाषा का उपयोग करने से समस्या का समाधान नहीं होगा।

         समाधान की दिशा:- गुस्से को इस तरीके से व्यक्त करें कि उससे समस्या का समाधान निकले, न कि स्थिति और बिगड़े।

         सोच-विचार:- प्रतिक्रिया देने से पहले कुछ समय के लिए रुककर सोचें। इससे आप अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे और उचित प्रतिक्रिया दे पाएंगे।

गुस्से को सही तरीके से और सही समय पर व्यक्त करना महत्वपूर्ण है ताकि रिश्तों को नुकसान न पहुंचे और समस्याओं का समाधान हो सके।

 गुस्से का प्रबंधन 

गुस्से का सही प्रबंधन आवश्यक है ताकि यह हमारे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव न डाले। गुस्से को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाई जा सकती हैं:

स्व-जागरूकता (Self-Awareness)

गुस्से के संकेत पहचानें:- अपने शरीर और मन में होने वाले बदलावों को पहचानें जब आप गुस्से में होते हैं। जैसे कि हृदय की धड़कन तेज होना, मांसपेशियों का तनाव, या तेज सांसें।
गुस्से के कारणों की पहचान करें:- यह समझें कि कौन सी स्थितियाँ या लोग आपके गुस्से का कारण बनते हैं। इससे आप पहले से तैयार रह सकते हैं और अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकते हैं।

Relaxation Techniques

गहरी सांस लें:- जब आपको गुस्सा आए, तो धीरे-धीरे गहरी सांसें लें। इससे शरीर और मन को शांत करने में मदद मिलती है।
Meditation:- नियमित ध्यान का अभ्यास करने से मानसिक शांति मिलती है और गुस्से को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
Muscle Relaxation :- शरीर के विभिन्न हिस्सों की मांसपेशियों को धीरे-धीरे तनाव और फिर विश्राम दें। इससे तनाव कम होता है और गुस्सा नियंत्रित होता है।

Positive Thinking
नकारात्मक विचारों को चुनौती दें:- जब भी गुस्से के नकारात्मक विचार आएं, उन्हें तर्कसंगत तरीके से चुनौती दें परिस्थितियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करें। इससे गुस्से की तीव्रता कम हो सकती है।

Improve Communication

सुनना और समझना:- अपनी बात रखने से पहले सामने वाले की बात को ध्यान से सुनें और समझें। इससे गलतफहमियों को दूर करने में मदद मिलती है।
आक्रामकता से बचें:-अपनी बात शांतिपूर्ण और संजीदगी से रखें। आक्रामकता से बचें और संतुलित संवाद का अभ्यास करें।

समय निकालें

जब आपको महसूस हो कि गुस्सा बढ़ रहा है, तो कुछ समय के लिए उस स्थिति से बाहर निकलें। यह समय आपको शांत होने और स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।

व्यायाम और शारीरिक गतिविधि (Exercise and Physical Activity):- नियमित शारीरिक गतिविधि और व्यायाम से तनाव कम होता है और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। योग, दौड़ना, तैराकी, या कोई भी शारीरिक गतिविधि गुस्से को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।

समस्या के मूल कारण
गुस्से के मूल कारणों को समझें और उन्हें हल करने के तरीके खोजें। समस्या-समाधान के माध्यम से आप उन स्थितियों से निपट सकते हैं जो आपके गुस्से का कारण बनती हैं।

पेशेवर मदद लें
अगर गुस्सा अनियंत्रित हो रहा है और आपके जीवन पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है, तो मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से मदद लें। थेरेपी और काउंसलिंग गुस्से के प्रबंधन में बहुत प्रभावी हो सकती है।

 उपरोक्त तकनीकों और रणनीतियों का पालन करके, आप अपने गुस्से को नियंत्रित कर सकते हैं और इसे सकारात्मक रूप से व्यक्त कर सकते हैं। यह न केवल आपके जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि आपके संबंधों और कार्यस्थल के वातावरण को भी सुधारेगा। 
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सारांश: "इस लेख में हमने गुस्से के प्रकृति को समझा। करण और उसके नियंत्रण पर विस्तृत चर्चा की। 
"निष्कर्ष: "गुस्सा एक प्राकृतिक और आवश्यक भावना है, लेकिन इसका प्रबंधन और सही दिशा में अभिव्यक्ति महत्वपूर्ण है।
प्रेरणादायक विचार: आखिरकार, गुस्से को समझना और नियंत्रित करना हमें न केवल व्यक्तिगत संतुलन प्रदान करता है, बल्कि हमारे समाज को भी अधिक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण बनाता है।
एक मत:-आइए, हम सभी मिलकर गुस्से का सही ढंग से प्रबंधन करने की दिशा में कदम बढ़ाएं और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं।"

26 मई 2024

दूसरों को खुश करने के चक्कर में अपने रूठ गए।

दूसरों को खुश करने की कोशिश में अपनों को दुखी करने का विचार कई लोगों के जीवन में एक सामान्य अनुभव हो सकता है। यह स्थिति विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत, सामाजिक, और सांस्कृतिक कारणों से उत्पन्न होती है। इस लेख में, हम इस विषय पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे, जिसमें इसके कारण, परिणाम, और इससे निपटने के उपाय शामिल होंगे।

 1. परिचय

दूसरों को खुश करने की प्रवृत्ति कई बार हमारी समाजिकता, परवरिश और व्यक्तिगत मनोवृत्तियों का परिणाम होती है। हम में से अधिकांश लोग सामाजिक प्राणी हैं और समाज में स्वीकार्यता और प्रशंसा पाना चाहते हैं। लेकिन यह इच्छा कभी-कभी अपनों के साथ हमारे संबंधों को प्रभावित कर सकती है। जब हम दूसरों को खुश करने के चक्कर में अपनों की भावनाओं और आवश्यकताओं की अनदेखी करते हैं, तो यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है।

 2. कारण

2.1 सामाजिक दबाव

समाज में स्वीकार्यता पाने का दबाव अक्सर हमें दूसरों को खुश करने के लिए प्रेरित करता है। हमें ऐसा लगता है कि यदि हम दूसरों की इच्छाओं और अपेक्षाओं को पूरा करेंगे, तो हमें समाज में अधिक सराहा जाएगा। 

 2.2 आत्म-सम्मान और आत्म-मूल्य

कई बार, हमारा आत्म-सम्मान और आत्म-मूल्य दूसरों की प्रशंसा और मान्यता पर निर्भर करता है। हम सोचते हैं कि यदि हम दूसरों को खुश करेंगे तो हम अधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान महसूस करेंगे।

 2.3 परवरिश

परिवार और समाज से मिली परवरिश भी हमारे व्यवहार को प्रभावित करती है। यदि बचपन में हमें यह सिखाया गया है कि दूसरों की खुशी सबसे महत्वपूर्ण है, तो यह आदत हमारे जीवन का हिस्सा बन जाती है।

2.4 संकोच और अस्वीकृति का डर

कई लोग दूसरों को न कहने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें अस्वीकृति का डर होता है। इस डर के कारण, वे दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए तैयार हो जाते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें अपने प्रियजनों की आवश्यकताओं की अनदेखी करनी पड़े।

 3. परिणाम

 3.1 संबंधों में तनाव

जब हम अपनों की भावनाओं और आवश्यकताओं की अनदेखी करते हैं, तो यह हमारे संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है। परिवार के सदस्यों और करीबी दोस्तों को ऐसा महसूस हो सकता है कि उनकी परवाह नहीं की जा रही है, जिससे भावनात्मक दूरी बढ़ सकती है।

3.2 आत्म-उपेक्षा

दूसरों को खुश करने के चक्कर में हम अपनी आवश्यकताओं और भावनाओं को भी नजरअंदाज कर सकते हैं। यह आत्म-उपेक्षा हमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं की ओर ले जा सकती है।

3.3 निर्णय लेने की क्षमता में कमी

अपनों की उपेक्षा करने से हमारी निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है। हम अपनी प्राथमिकताओं और मूल्यों के विपरीत निर्णय लेने लगते हैं, जिससे हमारे जीवन में असंतोष और अस्थिरता बढ़ सकती है।

3.4 आत्म-संतोष की कमी

दूसरों को खुश करने की आदत हमें आत्म-संतोष से दूर कर सकती है। जब हम अपने लिए नहीं जीते, तो हमारे जीवन में पूर्णता और संतोष का अनुभव कम हो जाता है।

4. समाधान और उपाय

 4.1 आत्म-जागरूकता

अपने व्यवहार और उसकी वजहों को समझना आवश्यक है। आत्म-जागरूकता हमें यह पहचानने में मदद करती है कि कब और क्यों हम दूसरों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं और इससे हमारे अपनों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

4.2 संचार

संचार सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। हमें अपने प्रियजनों के साथ खुलकर बात करनी चाहिए और उनकी भावनाओं और आवश्यकताओं को समझना चाहिए। इससे आपसी समझ और सहानुभूति बढ़ती है।

 4.3 सीमाओं का निर्धारण

अपने और दूसरों के बीच स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित करना आवश्यक है। इससे हम जान पाएंगे कि कब और कैसे दूसरों की मदद करनी है और कब अपनी आवश्यकताओं को प्राथमिकता देनी है।

4.4 आत्म-सम्मान का निर्माण

अपने आत्म-सम्मान और आत्म-मूल्य को दूसरों की मान्यता पर निर्भर न रहने दें। इसके बजाय, अपने मूल्यों, इच्छाओं और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें और अपने खुद के आत्म-सम्मान का निर्माण करें।

4.5 आत्म-देखभाल

अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। नियमित रूप से आत्म-देखभाल करें, जैसे कि स्वस्थ आहार, व्यायाम, योग, ध्यान और पर्याप्त नींद लें।

 4.6 सहायक नेटवर्क

एक मजबूत सहायक नेटवर्क बनाना आवश्यक है। दोस्तों और परिवार के सदस्यों से समर्थन प्राप्त करें और अपनी भावनाओं को साझा करें। इससे भावनात्मक बोझ कम होता है और हमें अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।

इसको हम एक कहानी से समझने की कोशिश करते हैं 
एक गाँव में एक किसान रामलाल रहता था। रामलाल का एक छोटा-सा परिवार था - उसकी पत्नी, दो बच्चे और बूढ़े माता-पिता। रामलाल मेहनती और दयालु था, और अपने गाँव में सभी से बहुत प्रिय था। उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि वह दूसरों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था, चाहे इसके लिए उसे अपने परिवार की भी अनदेखी करनी पड़े।

रामलाल के खेत की फसल इस साल बहुत अच्छी हुई थी, और गाँव में यह बात सबको पता थी। एक दिन गाँव के मुखिया उसके पास आए और बोले, "रामलाल, गाँव में एक बड़ा समारोह है, और हमें तुम्हारे मदद की जरूरत है। क्या तुम अपनी फसल का कुछ हिस्सा समारोह के लिए दान कर सकते हो?"

रामलाल ने बिना सोचे-समझे हाँ कह दी। उसने अपनी पत्नी और माता-पिता से सलाह नहीं ली, जो पहले से ही फसल की कमी को लेकर चिंतित थे। रामलाल ने अपनी फसल का बड़ा हिस्सा समारोह के लिए दे दिया। समारोह बहुत धूमधाम से हुआ और रामलाल की बहुत तारीफ हुई।

लेकिन जब वह घर लौटा, तो उसे अपने परिवार की दुखी और निराश आँखें मिलीं। उसकी पत्नी ने कहा, "रामलाल, हम इस फसल पर निर्भर थे। हमारे पास अब अपने लिए कुछ भी नहीं बचा। तुमने दूसरों को खुश करने के चक्कर में अपने परिवार को दुखी कर दिया।"

रामलाल को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। फसल खत्म हो चुकी थी और अगले सीजन तक कोई और मदद नहीं थी। रामलाल ने अपने परिवार से माफी मांगी और उन्हें वादा किया कि अब से वह पहले अपने परिवार का ध्यान रखेगा।

इस घटना के बाद रामलाल ने यह सीखा कि दूसरों को खुश करना अच्छा है, लेकिन अपने अपनों को दुखी करके नहीं। उसने यह भी सीखा कि किसी भी निर्णय से पहले अपने परिवार की भलाई के बारे में सोचना बहुत जरूरी है। धीरे-धीरे रामलाल ने अपनी मेहनत से फिर से सब कुछ ठीक कर लिया, लेकिन उसने कभी भी इस सीख को नहीं भूला। 

और इस प्रकार रामलाल ने समझ लिया कि सच्ची खुशी तभी मिलती है जब हम अपने परिवार के साथ मिलकर खुशियाँ बाँटते हैं।

5. निष्कर्ष

दूसरों को खुश करने की आदत हमारी समाजिकता और परवरिश का हिस्सा हो सकती है, लेकिन यह हमें और हमारे अपनों को नुकसान पहुंचा सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने व्यवहार के कारणों को समझें और उनसे निपटने के उपाय करें। आत्म-जागरूकता, संचार, सीमाओं का निर्धारण, आत्म-सम्मान का निर्माण और आत्म-देखभाल जैसी रणनीतियाँ अपनाकर हम इस समस्या से निपट सकते हैं और अपने और अपने प्रियजनों के बीच स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण संबंध बना सकते हैं।

26 जून 2022

अच्छे कामों को आसान और बुरे कामों को मुश्किल बनाएं

 


Past, वर्तमान का आधार होता है।

प्रत्येक मनुष्य का वर्तमान स्थिति उनके द्वारा जीवन में लिए गए सही या गलत फैसलों का समुच्चय होता है। हमारा भूतकाल वर्तमान का आधार होता है। हमारे जितनी भी फ़ैसले होते हैं सभी कहीं ना कहीं पहले किये गया कार्यों से प्रेरित होता है। हमारे द्वारा किये गए हर एक अच्छा काम नेक्स्ट अच्छा काम को कंटिन्यू करने को प्रेरित करता है। हमारे द्वारा किये गए बुरे काम बुरा काम को जारी रखने को प्रेरित करता है।मतलब साफ है ।आज अच्छा करोगे तो कल अच्छा होगा और आज बुरा करोगे तो कल बुरा होगा। 


अगर कोई मनुष्य महीने का 10000 रुपए कमाता है। इसका मतलब है कि वह उतना ही कमाने के लायक है। अगर उसमें ज्यादा काबिलियत होगी तो  वह अपना earnings को भी बढ़ा लेगा। otherwise fixed रहेगी या फिर कम होती जाएगी।हमारे द्वारा अर्जित धन हमारी काबिलियत का पैमाना होता है। हमारी वर्तमान स्थिति हमारी  (past )भूतकाल की कार्य प्रणाली की जानकारी देता है। हमारी earnings भी हमारे योग्यता के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकता है। यह पूर्ण रूपेण हम पर निर्भर करता है।


हम मनुष्य की फितरत होती है कि किस तरह से कम मेहनत करके अधिक से अधिक परिणाम हासिल किया जा सके। हमारे मस्तिष्क का भी प्रोग्रामिंग ऐसा हो रखा है कि हमेशा कम मेहनत वाला काम ही पसंद करता है। परन्तु किसी भी काम की जटिलता और सरलता हमारे काम करने के तरीके पर डिपेंड करता है। जो काम करना हमारे लिए सही है उसे हम किस तरह से आसान बनाते हैं। ठीक इसके विपरीत जो काम करना हमारे लिए गलत है उसे हम किस तरह से मुश्किल बनाते हैं।

चलिए इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए हम अमुक तारीख को अमुक जगह घूमने जाने का प्लान बनाया है।  इसके लिए हमें सभी जरूरी चीजों का चेक लिस्ट बनाना पड़ेगा। जैसे कि ट्रैवल बैग, वाटर बोतल ,पावर बैंक, एयर फोन कैमरा ,मोबाइल फोन , Power Bank और भी बहुत कुछ। जिस दिन हमें घूमने जाना होगा जरूरत के सारी चीजें हमारे पास होंगी। हमें ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 


पूर्व प्लान सही नहीं होने से होगा क्या कि जिस दिन हमें घूमने जाना होगा उस दिन ना तो हमें अपना वॉलेट मिलेगा ना तो मोबाइल चार्जर मिलेगा ना चश्मा मिलेगा ना जूते मिलेंगे ना मोजे मिलेगा। मेन टाइम में ढूंढते ढूंढते परेशान हो जाएंगे और घूमने चले भी जाएं तो जरूरी सामान तो घर में ही रह गया फिर घूमने जाने का मजा ही किरकिरा हो जाएगा। कहने का मतलब है किसी भी कार्य को आसान बनाने के लिए पूर्व प्लानिंग बहुत जरूरी है। नहीं तो ऐन मौके पर बहुत सारी प्रोब्लेम्स का सामना करना पड़ता है।


जो चीजें हमें करनी है उसे हमें आसान बनाना चाहिए । तब काम करने में मजा आएगा। टाइम कंजूमिंग वाला काम से बोरियत होने लगती हैं।

मान लीजिए हमें गाजर का हलवा बनाना है। तो गाजर का हलवा बनाने से पहले गाजर बनाने में उपयोग होने वाले सभी सामग्रियों को  एकत्रित करना पड़ेगा। ताकि हमें हलवा बनाने के समय में इजीली सभी सामान एक जगह हमें मिल सके।


कोई काम ऐसा है जो गलत है। जिसको कि हमें करना नहीं चाहिए। उस काम को अवरोधों से भर कर बहुत जटिल बना दो। व्यर्थ का टीवी देखना टाइम कंजूमिंग वाला काम है। टीवी को बेडरूम से हटा देना चाहिए। रिमोट का सेल को निकालकर कहीं ऐसा जगह रखना चाहिए ताकि मिले ना। जब कभी भी हमें टीवी देखने का मन करेगा तो हमें बहुत सारा काम करना पड़ेगा। और हमारा मानव मस्तिष्क मन ऐसा है कि जिस काम को करने में ज्यादा मेहनत लगता है उसे करने से बचता है। और हमें पता भी नहीं चलेगा कि टीवी देखने का टाइम कंजूमिंग वाला जो काम है वह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा।


मान लीजिए हमें शराब पीने की बुरी लत है। इससे हम छुटकारा कैसे पाएं। जैसे कि मै पहले ही बता चुंका हूं कि जो काम गलत है उसे अवरोधों से भर दो या मुश्किल बना दो।  तो चलो समझते है। उस दुकान में जाना छोड़ दें जहां ये मिलता है। उन लोगों से दूरियां बना लें जिनसे आप प्रेरित होते हैं। उन लोगों से नजदीकियां बढ़ाएं जो शराब में लिप्त ना हों। अगर पीना ही है तो highest band ki शराब पियो जो की काफी costly होती हैं। ये सभी दुकानों में easily available नहीं होती। इसके लिए आपको दूर जाकर ज्यादा पैसा खर्च करके खरीदनी पड़ेगी। इसका सीधा असर आपके पॉकेट और समय पर पड़ेगा। मै आपको पहले ही बता चुका हूं कि मनुष्य मस्तिष्क की फितरत मुश्किल और पेचीदा कामों को लम्बे समय तक करने की नहीं होती। हमारा मस्तिष्क बड़ा कामचोर होता है। हमेशा आसान काम ही करना पसंद करता है। इस चक्कर में हमारी बुरी लत भी छूट जायेगी।


हम अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। लेकिन समय अभाव के कारण हम इसमें ध्यान नहीं दे पा रहें है। इसका सबसे अच्छा उपाय यह है कि हम उस एरिया की zym ज्वॉइन करें जो हमारे ऑफिस जाने वाले रास्ते में हों। इससे होगा क्या कि हमारे zym जाने की निरंतरता बनी रहे और हमे एक्स्ट्रा टाइम निकालने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

इसी तरह हम ट्यूशन भी स्कूल कॉलेज वाले रास्ते में ही ढूंढे। इस तरह से हम अपने जरूरी काम को आसान बना सकते हैं।


अगर हमें स्मार्ट फोन use करने की बुरी लत है तो मोबाइल के पासवर्ड को बहुत कॉम्प्लिकेटेड बना दो। ज्यादा मेहनत वाला काम होगा तो अपने आप उपयोग करना कम होने लगेगा।

मान लीजिए कि आपको घूमने फिरने का बहुत ही ज्यादा शौक हैं। आप अपने इस आदत से परेशान हैं। आप चाह के भी अपने इस आदत से निजात नहीं पा रहे हैं। तो मै आपको एक उपाय बताता हूं। अगर कार में घूमने जाते हैं तो बाइक में जाएं। अगर बाइक में जाते हैं तो साइकिल में जाएं। साइकिल में जाते हैं तो पैदल ही चले जाएं। आपकी घूमने फिरने की आदत कब चली जाएगी पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि मै आपको को पहले ही बता चुका हूं कि हमारी मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग ऐसी हो रखी है कि मुश्किल वाला काम लगातार करना ही नहीं चाहता। ये बात proved है।


हम लोग सभी अभी डिजिटल एरा में रह रहे हैं। रोजमर्रा की सभी चीजें डिजिटल प्लेटफॉर्म में हो रहा है। शॉपिंग के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। ऑनलाइन ट्रांजैक्शन कैश के प्रचलन को बहुत कम कर दिया है। एटीएम के बाहर लंबी कतारें अब देखने को नहीं मिलती। आज के समय में कोई अपने पास कैश रखना पसंद नहीं करता। आज के समय में मैक्सिमम लोगों के पास स्मार्टफोन होता है। स्मार्ट फोन में गूगल पे, फोन पे ,पेटीएम जरूर इंस्टॉल होता है। पहले जब हम कैश के साथ शॉपिंग करने जाते थे तो लिमिट कैश के साथ शॉपिंग करते थे और जरूरत का ही सामान खरीदते थे। लेकिन अभी का स्थिति ये हैं कि कैश का झंझट तो है नहीं । जितना मर्जी शॉपिंग करो जब तक कैश ख़तम ना हों। वे सभी चीजें खरीदते हैं जिसका की फिलहाल जरूरी नहीं होता है। ईज़ी डिजिटल कैश फ्लो के कारण हम जरूरत से कहीं ज्यादा खर्च कर बैठते हैं। और हमारा महीने भर का बजट बिगड़ जाता है।फिजूलखर्ची को रोकने के लिए क्या करना चाहिए। मै ये नहीं कहता कि हमें ऑनलाइन ट्रांजैक्शन नहीं करना चाहिए। लेकिन लिमिट सेट जरूर करें।हो सके तो कैश में हीं शॉपिंग करें। कैश में शॉपिंग करना हमें मितव्ययई  बनता है। कैश में शॉपिंग अनुपयोगी कैश फ्लो को रोकता है। क्योंकि आप चाह के भी अधिक कैश अपने पास नहीं रख सकते। आज के टाइम में कोई ज्यादा कैश लेकर नहीं चलता।


धन्यवाद 

अपना संरचनात्मक सुझाव अवश्य दें।


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12 अप्रैल 2022

धीमे चलें पर पिछड़े नहीं

 
जय धर्मेश                                    जय चाला

हम सबकी अक्सर कम मेहनत करके कम समय में अधिक धनवान होने की चाह  होती है । लेकिन हकीकत में ऐसा बिलकुल भी नही होता । इसके लिए हमें  छोटे छोटे सार्थक काम निरंतरता के साथ प्रतिदिन करना पड़ता है । साथ में जरुरत के हिसाब से इसमें समय समय पर  सुधार भी करते रहना पड़ता है । तब जाकर हम कहीं  स्थायी और मनचाही बड़ी सफलता हासिल कर सकते है ।

किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम शुरू में ही बहुत ज्यादा जोर लगा देते हैं। लक्ष्य प्राप्त होने से पहले ही थक जाते हैं। एनर्जी को रिस्टोर करने के लिए काम को छोड़कर रुक जाते हैं। इस प्रक्रिया में टाइम की बर्बादी होती है। योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला हमारा प्रतिद्वंदी हम से आगे निकल जाता है। हम पीछे ही रह जाते हैं । शुरुआत धीमी ही क्यों ना हो लेकिन निरंतरता बनाए रखना बहुत जरूरी है।

लेकिन कई बार लक्ष्य प्राप्ति का ये रास्ता काफी लम्बा और थका देने वाली होती है। हमारा जो लक्ष्य निर्धारित होता है वह भी भूमिल प्रतीत होते जान पड़ता है।हम भी शिथिल होने लग जाते है। परन्तु यही वह समय है जहाँ हमें मजबूती के साथ हर एक कदम मंजिल की ओर निरंतरता के साथ बिना रुके आगे बढते रहना होता है ।  आगे बढने की जो  गति है, धीमी ही क्यों ना हो , चलेगा । निरंतरता तो है ना, वही बड़ी बात है । सही मायने में देखा जाये तो, यही वो तरीका है जो हमें निर्धारित लक्ष्य के साथ जोड़े रखता है और हमें पिछड़ने नही देता ।


स्थायी परिवर्तन या बदलाव का सबसे सही तरीका होता है धीमी गति  और निरंतरता । कोई भी काम अधीरता के साथ कभी नही करना चाहिए । इसीलिए कहा भी जाता है ना कि जल्दी का काम शैतान का । जल्दी बाजी में हम कार्य की सरलता को जटिल कर देते है। जल्द बाज़ी के कारण कार्य  की जटिलता बढ़ जाती है। और इनसे होने वाला नुकशान भी काफी बढ़ जाता है। इतनी जटिल और नुकशान दायी तो जब समस्या पैदा हुई थी तब भी नही थी जितना कि हमारा अधीरता और जल्दबाज़ी के कारण हुई ।


कार्यकुशलता और क्रियाशीलता दोनों ही सुनने में एक समान लगते हैं। लेकिन दोनों ही में बहुत ही ज्यादा अंतर है। कार्य कुशलता से हमें यह विदित होता है कि कोई व्यक्ति किसी कार्य विशेष को करने में कितना निपुण है। 

क्रियाशीलता से हमें किसी कार्य विशेष के किए जाने की निरंतरता को बताती है। 

कोई व्यक्ति कार्य विशेष को करने में कार्य कुशल हो तो सकता है मगर जरूरी नहीं है कि वह क्रियाशील भी हो। अक्सर कार्य कुशल लोग यह सोचते हैं कि इस काम को करना तो मेरे बाएं हाथ का काम है। अभी नहीं कर पाए तो कोई बात नहीं। इसको तो कभी भी किया जा सकता है इसी चक्कर में वह इस काम को कल पर टालते रहता है। क्रियाशीलता के अभाव में उनकी कार्य कुशलता पर असर पड़ने लगता है। 

ठीक इसके उलट अगर कोई व्यक्ति कार्य कुशल ना भी हो। यदि वह क्रियाशील है तो वह कार्य विशेष पर कार्य कुशलता हासिल कर सकता है । 

आपने यह कहानी तो सुनी ही होगी। किस तरह दौड़ में कुशल दंभी खरगोश क्रियाशीलता या निरंतरता के अभाव में दौड़ की प्रतियोगिता में हार जाता है और दौड़ में धीमी और कमजोर कछुआ निरंतरता या क्रियाशीलता के कारण दौड़ में कुशल नहीं होते हुए भी दौड़ के प्रतियोगिता में तेज खरगोश को भी जीत लिया। 

इससे यही साबित होता है कि कार्यकुशलता और क्रियाशीलता में गहरा संबंध है। अगर आप में क्रियाशीलता है तो कार्य कुशलता हासिल की जा सकती है। किसी काम को बार बार किए जाने पर वह हमारी आदत में शुमार हो जाती है। अगर हम किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति का सपना देख रहे हैं तो हमें कार्य कुशलता के साथ क्रियाशील भी होना पड़ेगा।




03 अप्रैल 2022

स्वयं को जीतना दुनिया जीतने के बराबर


हमारे जीवन में बहुत बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जिसमें किसी एक समस्या का समाधान  दूसरी समस्या को जन्म देती है।

लेकिन दूसरी समस्या का समाधान पहली समस्या को फिर वापस ला देती है।

जैसे कि हम अपने जीवन में किसी काम की विफलता के कारण तनाव में रहने लगते है। उस तनाव को दूर करने के लिए हम नशीली चीजों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते है। नशीली पदार्थों के लगातार इस्तेमाल से उसका बुरा असर हमारे शरीर और रोज़मर्रा के जीवन में पड़ने लगता है। यह देखकर हम और तनाव में आ जाते है। 

 जैसे हम टीवी देखते हुए सुस्ताने लग जाते है। फिर कुछ और ना कर पाने की स्थिति में और टीवी देखने लग जाते है। इसी तरह अनेकों उदाहरण है कि किस तरह हम जाने अंजाने में ही समस्याओं के जाल में फंसते चले जाते हैं ।

 

 पर काम आता है आत्मनियंत्रण(Self-control) । लेकिन लंबे समय तक अपने आप को self-control में रखना संभव नहीं है । ये लंबे समय तक काम नहीं करती । दीर्घकालीन परिणामों के लिए हमें सुनियोजित तरीकों को अपनाने की जरूरत होती है। क्योंकि हर बार हम अपनी इच्छा शक्ति पर काबू नहीं रख पाएंगे। हम अपनी बुरी आदतों को रोक तो सकते है लेकिन हमेशा के लिए उसे भूल जाना संभव नहीं है। वैसे भी अनिश्चितता वाले इस जीवन में समस्याएं तो हमेशा लगातार आते ही रहेंगी। हम कोई संत तो है नहीं कि हर स्थिति में शांत रह जाए। समस्याओं का असर तो जीवन में पड़ना ही है। नकारात्मक माहौल में लगातार अपने आप को सकारात्मक बनाए रखना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसके लिए बेहतर यही होगा कि नकारात्मक संकेत के उठने से पहले ही उसे जड़ से समाप्त किया जाए।

जैसे कि फोन में आ रही  बार-बार के नोटिफिकेशन से हमारा ध्यान भंग हो रहा है तो बेहतर यही होगा कि कुछ समय के लिए हम फोन को ही अपने आप से दूर रखते दें। अगर हमारा अधिकतर समय टीवी देखने में ही बर्बाद हो रहा है तो बेहतर यही होगा की टीवी को ही अपने बेडरूम से हटा दें। इससे होगा क्या कि हमारा ज्यादातर समय किसी रचनात्मक कार्य विशेष को करने में ही व्यतीत होगा। इस छोटे बदलाव से हमारे रोजमर्रा के जीवन में बहुत बड़ा फर्क देखने को मिलेगा।और हम अपने ऊर्जा और अपने बहुमूल्य समय का ज्यादातर हिस्सा अपने वातावरण को बदलने में लगा देंगे।


अपने आप को जीत लेना दुनिया को जीत लेने के बराबर है।हमें अपनी सारा ध्यान और सारी शक्ति अपने आप को बदलने में लगा देनी चाहिए।  ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हम अपना आवश्यक काम को करते तो हैं लेकिन अपना पसंदीदा शौक़ को भी छोड़ना नहीं चाहते। व्यवसाय कार्य करना जरूरत है लेकिन गाना सुनना अपना शौक। तो हम अपना काम करते हुए भी हेडफोन में गाना सुन सकते हैं। हम अपना जरूरी के काम तो करना चाहते हैं मगर अपना पसंदीदा खेल ,मूवी या प्रोग्राम भी देखना पसंद करते हैं। तो हमें एक ऐसे स्ट्रेटजी बनाने की जरूरत महसूस होती है जिससे कि अपना जरूरी काम भी हो जाए और साथ में अपना शौक भी पूरा हो जाए। प्रोडक्टिविटी में कोई भी असर ना पड़े। काम करने का यह तरीका कभी भी फेल नहीं होता। हम अपने आप को प्रलोभन भी दिए और अपना कार्य भी सिद्ध हो गया। किस तरह से हम अपनी जरूरत और पसंद को क्रमबद्ध करके आसानी से कर सकते हैं । इसी को कहते हैं एक तीर से दो निशान। 


लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिसको कि अकेले करने में ही भलाई है।

स्थिति और समय की मांग के अनुसार अपने नियम खुद बनाए जाने की जरूरत होती है। कसरत करना हमारा जरूरत। सोशल मीडिया अपडेट करना हमारा शौक। 10 मिनट के लिए एक्सरसाइज करें। रिलैक्सेशन के टाइम में सोशल मीडिया अपडेट करें। इसी तरह से सैकड़ों उदाहरण है जिसको कि हम सामंजस्य स्थापित कर के साथ-साथ कर सकते हैं। जिसशौक को पूरा करने के लिए हमें समय निकालने की जरूरत पड़ती थी अब वह ऐसे ही पूरा हो रहे हैं। इस तरह से हम जरूरत और पसंद को आपस में जोड़ देते हैं तो अपना जीवन कितना सरल और आसान हो जाता है। ये सभी जीवन में अपनाई जाने वाली बेहतरीन बातें है । आज को सुधारो कल अपने आप सुधर जाएगी। क्योंकि कल, आज ही लिखी जाती है। छोटी सी सुधार का चाहे वह अच्छा हो या बुरा उसका असर कालांतर में हमारे जीवन में पड़ता जरूर है। यह किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। समय के मांग के अनुसार अपने अंदर आवश्यक बदलाव नहीं कर के समय को हम खुद ही अपना दुश्मन बना बैठते हैं। क्योंकि कहा भी जाता है ना हम जैसे होते हैं दुनिया भी हमें वैसे ही नजर आती है। नजरिया बदला, दुनिया बदली । 


धन्यवाद






17 फ़रवरी 2022

लक्ष्य प्राप्ति के प्रोसेस को याद रखें लक्ष्य को नहीं

यह सुनने में बड़ा अटपटा लगता है कि कोई लक्ष्य तय कर के ,लक्ष्य को ही भूल जाएं।यह बातें इसीलिए कहीं गई है क्योंकि जब कभी भी हम अपना लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं। उसके बाद में हम काम ना भी करें तो क्या फर्क पड़ने वाला है। हमें तो अचीवमेंट मिल चुका ना।
इसे हम ऐसे समझते हैं। हम एक चुस्त-दुरुस्त तंदुरुस्त बॉडी पाने का लक्ष्य तय करते हैं। उस लक्ष्य के अनुरूप काम करना भी शुरू कर देते हैं।महीनों या सालों की मेहनत के बाद वह मनोवांछित परिणाम हमें मिल भी जाती है। इच्छित परिणाम की प्राप्ति के उपरांत हम थोड़े ढीले पड़ जाते हैं । उस प्रोसेस या तरीके को भूल जाते हैं जिसका अनुसरण करते हुए इच्छित फल की प्राप्ति करते हैं। इसीलिए यहां पर इस बात पर जोर देकर कहीं गई है कि,लक्ष्य को भूल कर उस प्रोसेस पर ध्यान दें जिसकी वजह से हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन  आ रही है ।

 लक्ष्य से वह परिणाम है जिसे कि हम सभी पाना चाहते हैं। और व्यवस्था वह प्रक्रिया  या तरीका है जिसकी वजह से हम सफलता की ओर ले अग्रसर होते हैं।
  
इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। रेस में भागने वाले सभी खिलाड़ी का एक ही लक्ष्य होता है जीतना। 
लेकिन जीतता तो वही है जिसने लगातार इसकी अभ्यास की हो,और जिसका दौड़ने का तरीका सही हो।

 हमें अक्सर लगता है कि नतीजा सही हो। जब की समस्या नतीजे नहीं है। समस्या वह कार्यप्रणाली है जो हमें इस तरह के नतीजे तक लाए हैं।बेहतरी के लिए सुधार करना है तो उस व्यवस्था के स्तर तक आप को सुधार करना होगा।
 इनपुट में सुधार करना होगा, परिणाम खुद ब खुद सुधर जाएगा। यह व्यवहार की ही ताकत है कि एक समय में एक कदम परिवर्तन लाते हैं। और यह परिवर्तन हमारे जीवन का हिस्सा बन जाए। आपका व्यवहार ही एक दिन आपका पहचान बन जाता है।

हम अपने बारे में जिस तरह से सालों तक सोचते रहते हैं । हम उसी तरह से बनते भी जाते हैं।
जैसे कि हम अक्सर बोलते है । अरे भाई हमें तो यह याद नहीं रहता । मैं तो हमेशा लेट हो जाता हूं । हमसे यह तो बिल्कुल नहीं होगा ।यह काम तो बहुत कठिन है।
 यह सब कुछ अपने आप को मानसिक सांचे में ढालने जैसा है। यह वह कहानी है जिसको कि आप वर्षों से रची है ।और हालात अब यह है कि अब इसी को सच मान बैठे हैं।इसी के चलते एक समय बाद हम इन सब कामों को करने के बारे में सोच भी नहीं सकते। हमें यह चीज माननी पड़ेगी कि हमारे आदतों से ही हमारी पहचान होती है। हम पहले से ही तय धारणाओं के साथ पैदा तो नहीं होते हैं। आज हम जो कुछ भी मानते हैं, वे हालात और अनुभव के आधार पर हमने सीखा है।

जितनी ज्यादा हम अपना व्यवहार दोहराएंगे उतनी ही तेजी से उस पहचान से आप जुड़ते जाएंगे। हम कौन हैं ? इसे बदलने का सबसे सही और आसान तरीका है कि हम जो कुछ भी करते हैं ।उसे हम बदलने का कोशिश करें। बहुत ही छोटे इकाई से शुरू करें।

रोज एक पेज लिखने से हम लेखक बन जाते हैं। रोज तेज दौड़ने से  एथलीट बन जाते हैं । रोज गाने से एक अच्छा गायक बन जाते हैं।  रोज  चित्रकारी करने से पेंटर। हमें सीखना होगा कि प्रत्येक दिन एक प्रतिशत अच्छा करके एक साल में हम कितना प्रतिशत सीख जाएंगे। 
अपनी बुरी आदतों को छोड़े और अच्छे लोगों से जुड़े रहे।आदतों को बदलते समय जो ज्यादातर गलतियां होती हैं , उससे बचने का प्रयास करें। प्रेरणा और इच्छाशक्ति की कमी को दूर करें। एक मजबूत पहचान विकसित करें ।खुद पर विश्वास करें। नई आदतों के लिए समय निकालें। 
सफलता को आसान बनाने के लिए अपने परिवेश को डिजाइन करें। बड़े परिणाम देने वाले छोटे और आसान बदलाव करें।इन सब को करते हुए रास्ते से थोड़ा सा इधर उधर भी हो जाए तो पुनः अपने पटरी पर वापस चले आए। इससे भी ज्यादा इंपॉर्टेंट चीज है जो चीज भी आप सीख रहे हैं उसको अपने रोजमर्रा के जीवन में अपनाएं।

धन्यवाद

07 फ़रवरी 2022

बड़े बदलाव की शुरुवात छोटी बदलाव से होती है

   ड़े बदलाव की शुरुवात छोटी -छोटी बदलाव से ही होती है। आप कितना भी कुछ भी चाहते हो,लेकिन आपके भविष्य को आकार वही चीजें देंगी , जिन्हें आप निरंतरता के साथ करते हैं। अच्छी आदतें हमें अपनी मंजिल तक पहुंचा सकती हैं।  वही हमारे अंदर बसी कुछ बुरी आदतें हमें एक ही जगह पर अटकाए रहती है और अधूरे रहने पर मजबूर करती हैं। छोटे छोटे सकारात्मक बदलाव हमें असाधारण परिणाम देती है। हम बहुत ही मामूली से मामूली बातों पर ध्यान लगाकर उन्हें अपने जीवन में डाल सकते हैं 
अगर यदि हमें अपनी आदतों को बदलने में परेशानी हो रही है, तो ये हमारी समस्या नहीं है। समस्या है, हमारी सिस्टम का जो हम बनाए रखे है । खुद को बदलना तो चाहते है पर बदलाव का तरीका गलत है ।बदलाव का एक  बेसिक नियम होता है ।इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं।
जैसे कि हम एक हेल्थी बॉडी पाने की कामना करते हैं।
इसके लिए हमें एक संयमित जीवन चर्या को अपनाना होगा।.हमें प्रत्येक दिन व्यायाम करना होगी।.बैलेंस डाइट लेनी होगी।.पर्याप्त.मात्रा में पानी पीना होगा।.योगा मेडिटेशन करना होगा।.नियमित रूप से अपने स्वास्थ्य की जांच करानी होगी।.रात में अच्छी नींद लेनी होगी।.शराब एवं धूम्रपान का इस्तेमाल नहीं करना होगा।.जहां तक पॉसिबल हो घर का खाना खाना होगा।.खाने की अच्छी आदतें विकसित करनी होगी।
इच्छित फल की प्राप्ति के लिए छोटी-छोटी आदतों की श्रंखला को हमें चरणबद्ध तरीके से फॉलो करना होगा। हम पढ़ाई में ठीक तो होना चाहते है पर नियमित रूप से सेल्फ स्टडी नहीं करते ।
 हम समाज को ठीक तो करना चाहते है मगर समस्याओं को चरण बद्ध तरीके से समझते नहीं । कोई भी बड़ी समस्या कई छोटी छोटी समस्याओं का समूह होता है। तो मतलब साफ है कि बड़ी समस्याओं को हल करने से पहले उन छोटी छोटी समस्याओं को चरणबद्ध तरीके से निरंतरता के साथ हल करना होगा। 

जानिए ChatGPT के सभी टूल्स और उनके कमाल के उपयोग

         आज के डिजिटल युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि एक जरिया बन चुका है अपने काम को स्मार्ट, तेज़ और प्रभा...