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आओ सहयोग का महत्व को जानें

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   कहा जाता है कि यदि बहुत से पंखों को सही दिशा में उड़ान मिले तो वह किसी एक पक्षी की तुलना में दोगुनी दूरी तय कर सकते हैं । संगठित लोगों के द्वारा एकीकृत कार्य से बड़े कार्य की सिद्धि होती है।   सहयोग एक ऐसा हथियार है जिसके माध्यम से हम बड़े से बड़े काम को बड़ी ही आसानी से  मंजिल तक पहुंचा सकते हैं। जिस काम को करने में एक अकेले आदमी को महीनों , सालों लग जाता है। उसी काम को पारस्परिक सहयोग के माध्यम से आसानी से कर सकते हैं। सहयोग को अमलीजामा पहनाने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों, समूह ,संगठन की जरूरत पड़ती है।   यदि गौर से देखा जाए तो सहयोग कोई दया नहीं है। यह तो सामाजिक अपलिफ्टमेंट का सशक्त माध्यम है। हम किसी का सहयोग करके उस व्यक्ति को हमेशा के लिए अपना सहयोगी बना लेते हैं। यदि ज्यादा से ज्यादा लोगों का सहयोग करना हमसे नहीं बन पाता है तो कम से कम एक आदमी का तो सहयोग कर ही सकते हैं। जब सहयोग करने के महत्व की समझ लोगों में होती है तो कभी न समाप्त होने वाली सहयोग की एक श्रृंखला का निर्माण होता जाता है। सहयोग का भी अनेकों रूप हैं।सहयोग के लिए बहुत ...

शांत रहना कमजोरी नहीं, आंतरिक ताकत का प्रतीक

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"शांत रहने से लोग आपको कमजोर समझते हैं" – यह वाक्य एक आम धारणा को उजागर करता है, जो हमारे समाज में प्रचलित है। हम अक्सर यह सुनते हैं कि जो व्यक्ति शांत और विनम्र होता है, उसे कमजोरी की निशानी समझा जाता है। यह धारणा न केवल हमारे समाज की मानसिकता को दर्शाती है, बल्कि हमारे सोचने के तरीके को भी प्रभावित करती है। लेकिन क्या सच में शांत रहना कमजोरी का प्रतीक है? क्या शांत रहने वाले व्यक्ति की ताकत की पहचान हम कर पाते हैं? इस लेख में हम इस विषय को गहराई से समझने का प्रयास करेंगे। शांत रहने का वास्तविक अर्थ शांत रहने का मतलब केवल यह नहीं है कि आप चुप रहें या अपनी भावनाओं का प्रदर्शन न करें। यह एक मानसिक और आत्मिक स्थिति को दर्शाता है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर की आंतरिक शांति को बनाए रखते हुए बाहरी दुनिया की उथल-पुथल से प्रभावित नहीं होता। शांत रहने का मतलब है अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण पाना, अपने आंतरिक संतुलन को बनाए रखना और स्थिति को समझने का प्रयास करना। शांत व्यक्ति, उन परिस्थितियों में भी शांति बनाए रखता है, जहाँ दूसरों का संयम टूट सकता है। यह भी कहा जा सकत...

कहीं आप मोबाइल का गुलाम तो नहीं हो रहे हैं ?

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आज की डिजिटल दुनिया में मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। यह हमें न केवल सूचना और मनोरंजन का स्रोत प्रदान करता है, बल्कि हमारे जीवन को सुविधाजनक भी बनाता है। लेकिन क्या यह सुविधा हमें गुलाम बना रही है? सुबह आंख खुलने से लेकर रात सोने तक, हमारा ध्यान मोबाइल स्क्रीन पर टिका रहता है। सोशल मीडिया, गेम्स और वीडियो देखने में इतना समय बीत जाता है कि हम अपने परिवार, दोस्तों और यहां तक कि खुद से भी दूर होते जा रहे हैं। कार्यक्षमता पर भी इसका असर दिखता है, क्योंकि मोबाइल पर अनावश्यक समय बिताने से ध्यान भटकता है और उत्पादकता घटती है। मोबाइल का अत्यधिक उपयोग न केवल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव डालता है, जैसे आंखों में तनाव, नींद की कमी और गर्दन दर्द। इसके अलावा, यह आदत हमें वास्तविक दुनिया की खूबसूरती से दूर कर रही है। समय है आत्मचिंतन का। क्या हम अपने जीवन पर नियंत्रण रखते हैं या मोबाइल हमें नियंत्रित कर रहा है? हमें इसे एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, न कि इसे अपनी जिंदगी का मालिक बनने देना चाहिए। बैलेंस बनाकर ही हम ...

गुस्से की प्रकृति को समझें

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गुस्सा एक सामान्य और स्वाभाविक भावना है, जो हर व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी समय में प्रकट होती है।गुस्सा स्वाभाविक है, लेकिन इसे नियंत्रित करना आवश्यक है। असंयमित गुस्सा न केवल व्यक्तिगत रिश्तों को नुकसान पहुँचा सकता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।  यह भावना आमतौर पर तब प्रकट होती है जब व्यक्ति को लगता है कि उसे अपमानित किया गया है, उसके साथ अन्याय हुआ है, या उसकी अपेक्षाएँ पूरी नहीं हुई हैं, या उनके मन मुताबिक कोई काम ना हो रहा हो, प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न हुई हों। गुस्से का अनुभव करते समय व्यक्ति का हृदयगति बढ़ जाती है, रक्तचाप बढ़ सकता है, और शरीर में ऊर्जा का संचार तीव्र हो जाता है। गुस्से में व्यक्ति  कंट्रोल खोने लगता है। इस लेख में हम गुस्से के कारण, उनके प्रभाव और उसे नियंत्रित करने के उपायों पर विचार करेंगे। क्रोध के कारण क्रोध एक जटिल भावना है जो विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकती है। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए, आइए इसके प्रमुख कारणों पर विचार करें:     अवरोध और बाधाएं जब हमारी इच्छाएं, जरूरतें या ल...

दूसरों को खुश करने के चक्कर में अपने रूठ गए।

दूसरों को खुश करने की कोशिश में अपनों को दुखी करने का विचार कई लोगों के जीवन में एक सामान्य अनुभव हो सकता है। यह स्थिति विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत, सामाजिक, और सांस्कृतिक कारणों से उत्पन्न होती है। इस लेख में, हम इस विषय पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे, जिसमें इसके कारण, परिणाम, और इससे निपटने के उपाय शामिल होंगे।   1. परिचय दूसरों को खुश करने की प्रवृत्ति कई बार हमारी समाजिकता, परवरिश और व्यक्तिगत मनोवृत्तियों का परिणाम होती है। हम में से अधिकांश लोग सामाजिक प्राणी हैं और समाज में स्वीकार्यता और प्रशंसा पाना चाहते हैं। लेकिन यह इच्छा कभी-कभी अपनों के साथ हमारे संबंधों को प्रभावित कर सकती है। जब हम दूसरों को खुश करने के चक्कर में अपनों की भावनाओं और आवश्यकताओं की अनदेखी करते हैं, तो यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है।  2. कारण 2.1 सामाजिक दबाव समाज में स्वीकार्यता पाने का दबाव अक्सर हमें दूसरों को खुश करने के लिए प्रेरित करता है। हमें ऐसा लगता है कि यदि हम दूसरों की इच्छाओं और अपेक्षाओं को पूरा करेंगे, तो हमें समाज में अधिक सराहा जाएगा।    2.2 आत्म-सम्मान और आत्म-मूल्य ...

अच्छे कामों को आसान और बुरे कामों को मुश्किल बनाएं

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  Past, वर्तमान का आधार होता है। प्रत्येक मनुष्य का वर्तमान स्थिति उनके द्वारा जीवन में लिए गए सही या गलत फैसलों का समुच्चय होता है। हमारा भूतकाल वर्तमान का आधार होता है। हमारे जितनी भी फ़ैसले होते हैं सभी कहीं ना कहीं पहले किये गया कार्यों से प्रेरित होता है। हमारे द्वारा किये गए हर एक अच्छा काम नेक्स्ट अच्छा काम को कंटिन्यू करने को प्रेरित करता है। हमारे द्वारा किये गए बुरे काम बुरा काम को जारी रखने को प्रेरित करता है।मतलब साफ है ।आज अच्छा करोगे तो कल अच्छा होगा और आज बुरा करोगे तो कल बुरा होगा।  अगर कोई मनुष्य महीने का 10000 रुपए कमाता है। इसका मतलब है कि वह उतना ही कमाने के लायक है। अगर उसमें ज्यादा काबिलियत होगी तो  वह अपना earnings को भी बढ़ा लेगा। otherwise fixed रहेगी या फिर कम होती जाएगी।हमारे द्वारा अर्जित धन हमारी काबिलियत का पैमाना होता है। हमारी वर्तमान स्थिति हमारी  (past )भूतकाल की कार्य प्रणाली की जानकारी देता है। हमारी earnings भी हमारे योग्यता के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकता है। यह पूर्ण रूपेण हम पर निर्भर करता है। हम मनुष्य की फितरत होती है कि किस...

धीमे चलें पर पिछड़े नहीं

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  जय धर्मेश                                    जय चाला हम सबकी अक्सर कम मेहनत करके कम समय में अधिक धनवान होने की चाह   होती है । लेकिन हकीकत में ऐसा बिलकुल भी नही होता । इसके लिए हमें   छोटे छोटे सार्थक काम निरंतरता के साथ प्रतिदिन करना पड़ता है । साथ में जरुरत के हिसाब से इसमें समय समय पर  सुधार भी करते रहना पड़ता है । तब जाकर हम कहीं  स्थायी और मनचाही बड़ी सफलता हासिल कर सकते है । किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम शुरू में ही बहुत ज्यादा जोर लगा देते हैं। लक्ष्य प्राप्त होने से पहले ही थक जाते हैं। एनर्जी को रिस्टोर करने के लिए काम को छोड़कर रुक जाते हैं। इस प्रक्रिया में टाइम की बर्बादी होती है। योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला हमारा प्रतिद्वंदी हम से आगे निकल जाता है। हम पीछे ही रह जाते हैं । शुरुआत धीमी ही क्यों ना हो लेकिन निरंतरता बनाए रखना बहुत जरूरी है। लेकिन कई बार लक्ष्य प्राप्ति का ये रास्ता काफी लम्बा और थका देने वाली होती है। हमारा जो लक्ष्य निर्ध...

स्वयं को जीतना दुनिया जीतने के बराबर

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हमारे जीवन में बहुत बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जिसमें किसी एक समस्या का समाधान  दूसरी समस्या को जन्म देती है। लेकिन दूसरी समस्या का समाधान पहली समस्या को फिर वापस ला देती है। जैसे कि हम अपने जीवन में किसी काम की विफलता के कारण तनाव में रहने लगते है। उस तनाव को दूर करने के लिए हम नशीली चीजों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते है। नशीली पदार्थों के लगातार इस्तेमाल से उसका बुरा असर हमारे शरीर और रोज़मर्रा के जीवन में पड़ने लगता है। यह देखकर हम और तनाव में आ जाते है।   जैसे हम टीवी देखते हुए सुस्ताने लग जाते है। फिर कुछ और ना कर पाने की स्थिति में और टीवी देखने लग जाते है। इसी तरह अनेकों उदाहरण है कि किस तरह हम जाने अंजाने में ही समस्याओं के जाल में फंसते चले जाते हैं ।    पर काम आता है आत्मनियंत्रण(Self-control) । लेकिन लंबे समय तक अपने आप को self-control में रखना संभव नहीं है । ये लंबे समय तक काम नहीं करती । दीर्घकालीन परिणामों के लिए हमें सुनियोजित तरीकों को अपनाने की जरूरत होती है। क्योंकि हर बार हम अपनी इच्छा शक्ति पर काबू नहीं रख पाएंगे। हम अप...

लक्ष्य प्राप्ति के प्रोसेस को याद रखें लक्ष्य को नहीं

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यह सुनने में बड़ा अटपटा लगता है कि कोई लक्ष्य तय कर के ,लक्ष्य को ही भूल जाएं।यह बातें इसीलिए कहीं गई है क्योंकि जब कभी भी हम अपना लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं। उसके बाद में हम काम ना भी करें तो क्या फर्क पड़ने वाला है। हमें तो अचीवमेंट मिल चुका ना। इसे हम ऐसे समझते हैं। हम एक चुस्त-दुरुस्त तंदुरुस्त बॉडी पाने का लक्ष्य तय करते हैं। उस लक्ष्य के अनुरूप काम करना भी शुरू कर देते हैं।महीनों या सालों की मेहनत के बाद वह मनोवांछित परिणाम हमें मिल भी जाती है। इच्छित परिणाम की प्राप्ति के उपरांत हम थोड़े ढीले पड़ जाते हैं । उस प्रोसेस या तरीके को भूल जाते हैं जिसका अनुसरण करते हुए इच्छित फल की प्राप्ति करते हैं। इसीलिए यहां पर इस बात पर जोर देकर कहीं गई है कि,लक्ष्य को भूल कर उस प्रोसेस पर ध्यान दें जिसकी वजह से हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन  आ रही है ।  लक्ष्य से वह परिणाम है जिसे कि हम सभी पाना चाहते हैं। और व्यवस्था वह प्रक्रिया  या तरीका है जिसकी वजह से हम सफलता की ओर ले अग्रसर होते हैं।    इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। रेस में भागने वाले सभी खिलाड़ी ...

बड़े बदलाव की शुरुवात छोटी बदलाव से होती है

    ब ड़े बदलाव की शुरुवात छोटी -छोटी बदलाव से ही होती है। आप कितना भी कुछ भी चाहते हो,लेकिन आपके भविष्य को आकार वही चीजें देंगी , जिन्हें आप निरंतरता के साथ करते हैं। अच्छी आदतें हमें अपनी मंजिल तक पहुंचा सकती हैं।  वही हमारे अंदर बसी कुछ बुरी आदतें हमें एक ही जगह पर अटकाए रहती है और अधूरे रहने पर मजबूर करती हैं। छोटे छोटे सकारात्मक बदलाव हमें असाधारण परिणाम देती है। हम बहुत ही मामूली से मामूली बातों पर ध्यान लगाकर उन्हें अपने जीवन में डाल सकते हैं  । अगर यदि हमें अपनी आदतों को बदलने में परेशानी हो रही है, तो ये हमारी समस्या नहीं है। समस्या है, हमारी सिस्टम का जो हम बनाए रखे है । खुद को बदलना तो चाहते है पर बदलाव का तरीका गलत है ।बदलाव का एक  बेसिक नियम होता है ।इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। जैसे कि हम एक हेल्थी बॉडी पाने की कामना करते हैं। इसके लिए हमें एक संयमित जीवन चर्या को अपनाना होगा।.हमें प्रत्येक दिन व्यायाम करना होगी।.बैलेंस डाइट लेनी होगी।.पर्याप्त.मात्रा में पानी पीना होगा।.योगा मेडिटेशन करना होगा।.नियमित रूप से अपने स्वास्थ्य की जांच करानी होगी।.र...