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सामाजिक नशाखोरी एक बुराई(III)

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सामाजिक नशाखोरी के दुष्प्रभाव सामाजिक नशखोरी के पहले और दूसरे अध्याय में "नशाखोरी क्या है इसकी शुरुआत कैसे होती है ? लत क्या है? और लत की पहचान कैसे होती है? के बारे विस्तृत जानकारी प्राप्त की।  तीसरे अध्याय में इसके दुष्प्रभाव के बारे में जानेंगे। उत्पादकता में कमी चुकी लगातार नशीली पदार्थों के प्रयोग करने से हमारे  शारीरिक स्वास्थ्य पर इसका  बूरा असर पड़ता है। कहा भी जाता है ना स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। सोचने समझने की शक्ति कम होने लगती है। हमारे क्रिएटिविटी का इस पर डायरेक्ट असर पड़ता है। जिस काम के लिए लोग हमें अप्रोच किया करते थे , दूर होते चले जाते हैं।  क्योंकि उन्हें पता होता है कि एक शराबी आदमी कभी भी 100 परसेंट dedication और concentration के साथ में काम नहीं कर सकता। एक शराबी आदमी का कार्य करने का दायरा सीमित होने लगता है।  लड़ाई झगड़ा एक शराबी व्यक्ति शराब पीने के बाद में एक अलग ही दुनिया में रहता है। बहुत ही ज्यादा सेंटिमेंटल(sentimental) और सेंसिटिव (sensitive)हो जाता है। हमारे साथ बीती हुई सभी घटनाएं आज के ही दिन याद आने लगती है। छोटी-छोटी  बा

सामाजिक नशाखोरी(II)

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लत क्या है और इसकी पहचान क्या है? सामाजिक  नशाखोरी के अध्याय एक में हमने नशाखोरी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करी और साथ ये भी जाना कि नशाखोरी की शुरुवात कैसे होती है। दूसरे अध्याय में  लत क्या होती है और लत की पहचान कैसे करें इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। लत के तो अनेकों रूप है । लेकिन यहां नशा के कारण उत्पन्न लत की बातें करेंगे। नशीली पदार्थों  के लगातार उपयोग के कारण हमारे मस्तिष्क के न्यूरोलॉजिकल पैटर्न में ऐसे बदलाव , जो नशीली पदार्थों के उपयोग पर हमारा नियंत्रण समाप्त कर देता है। ऐसी बात भी नहीं, कि नशा, बहुआयामी बर्बादी का कारण बनता है उसकी जानकारी हमें नहीं है। इसका दुष्परिणाम हमारे शरीर में दिखने भी लगता। इसके अलावा हमारे पारिवारिक रिश्ते, आर्थिक स्थिति और कामकाज में भी असर पड़ने लगता है। साफ शब्दों में कहें तो नशा पर अपना सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता हैं। नशाखोरी के दलदल में दिन-प्रतिदिन हमारा पैर धसते चला जाता हैं। सब कुछ पता होने के बावजूद हम असहाय और लाचार महसूस करते हैं। ऐसी अवस्था को ही लत/व्यसन कहा जाता है। लत एक्चुअली और कुछ नहीं, हमारे द्वारा नशाखोरी

सामाजिक नशाखोरी(I)

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नशाखोरी समाज के लिए अभिशाप है।  नशाखोरी एक सामाजिक बुराई है। इसके गिरप्त में बच्चे ,युवा और बुजुर्ग सभी हैं। भारत युवाओं का देश है। युवाओं का संलिप्तता इसमें सबसे ज्यादा है। युवा शक्ति का इससे प्रभावित होना, समाज या देश के उत्पादकता में कमी होना है। सामाजिक स्तर से पूरा देश नशाखोरी जैसे मानसिक बीमारी से पीड़ित है। समाज और देश के लिए यह एक अभिशाप से कम नहीं है। अल्कोहल पेय पदार्थों का (विस्की, चुलैया ,महुआ ,ब्रांडी, बीयर और हंडिया  आदि अल्कोहोल पेय पदार्थ है ) लगातार ज्यादा मात्रा में consumption को ही नशाखोरी कहा जाता है।हमारे समाज को नशा की लत लग चुकी हैं।  नशा नाश करता है। नशा आप किसी भी रूप में लें हमेशा बर्बादी का कारण ही बनता है। ये बर्बादी बहुआयामी होता है।हमारी उत्पादकता पर सीधा असर पड़ता है। शारीरिक, मानसिक ,आर्थिक और सामाजिक इन सभी क्षेत्रों से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।  सबसे ताज्जुब की बात यह है कि बियर और हड़िया(राइस वियर) को हम शराब की श्रेणी में रखते ही नहीं। अजीबों गरीब तर्क देकर इसको लेने को जस्टिफिकेशन करते हैं। मैं आपको बता दूं की यह भी अल्कोहल पेय पदार्थ

समस्या प्रोग्रामिंग में होती है, प्रिंटआउट में नहीं

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  यह चार आयामी  दुनिया क्या है ? कैसे यह एक दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं ? मै समझाने की कोशिश करूंगा।  यह चार आयामी दुनिया है भौतिक जगत, मानसिक जगत भावनात्मक जगत और आध्यात्मिक जगत। लेकिन हम रहते सिर्फ एक जगत में वह है भौतिक जगत। बाकी तीनों जगह हमारे अंदर की दुनिया है। भौतिक दुनिया में हमारी हालात कैसे हैं,यह डिपेंड करता है हमारी आंतरिक दुनिया पर। हम कभी यह समझ ही नहीं पाते कि भौतिक दुनिया हमारी आंतरिक दुनिया की प्रिंटआउट मात्र है।  चलिए इसको हम एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। मान लीजिए हम अपने कंप्यूटर पर एक चिट्ठी टाइप करी। प्रिंट बटन दबाकर उसका प्रिंट आउट भी निकाल लिया। प्रिंट आउट निकालने के बाद पता चला कि इसमें एक गलती हुई है। चलिए हम देखते हैं कि जीवन में हुई गलतियों के प्रकृति को समझे बिना ही हल करने की कैसी कैसी कोशिशें करते हैं ? कोई भरोसेमंद इरेज़र ले करके प्रिंटआउट में हुई गलती को मिटा देते हैं। प्रिंट बटन दबाकर दोबारा प्रिंट आउट निकाल लेते हैं। इस बार फिर से गलती जस का तस है, कोई सुधार नहीं हुआ। फिर हम सोचते हैं कि इसको तो अभी हमने मिटाया था, फिर मिटा क्यों नहीं? फिर

जैसा जड़ वैसा फल

 कल्पना कीजिए कि जीवन एक पेड़ है।पेड़ में लगे फल की तुलना उस परिणाम से कीजिए जिसको कि हमने अपने जीवन के विभिन्न पड़ावों में प्राप्त किया है। इस फल को लेकर हमारी अक्सर यह शिकायत रहती है कि फल कम है, हमें और मिलना चाहिए था, आकार में भी काफी छोटा है , स्वाद भी कुछ खास नहीं है। अक्सर हम ऊपर देखने वाली फल की ही चर्चा करते हैं और यह हमेशा भूल जाते हैं कि फल तो बीज और जड़ों के कारण उत्पन्न होती है। जो की जमीन के नीचे दबी हुई होती है, दिखाई नहीं पड़ती। कहने का मतलब साफ है कि अगर गुणवत्तापूर्ण दिखाई देने वाली फल की चाह रखते हैं,तो सबसे पहले दिखाई नहीं देने वाली बीज और जड़ के बेहतरी के लिए काम करना होगा ।फल तो अपने आप ही उनके मुताबिक बदल जाएगा। हम अक्सर दिखाई देने वाली चीजों को ही सच मान बैठते हैं जो कि बिल्कुल ही गलत है। जो चीजें हमें दिखाई नहीं देती उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं। मै कुछ उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा। बिजली हमें दिखाई नहीं देती है। लेकिन उसके शक्ति के बारे में हम सभी परिचित हैं और हम बिल भी पे करते हैं। किसी चुंबक की चुम्बकीय शक्ति हमें दिखाई नहीं देती लेकिन उसी अदृश

अपनी क्षमता अपने को ही पता नहीं

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आपकी आमदनी सिर्फ उसी हद तक बढ़ सकती है जिस हद तक आप बढ़ते हैं । जीवन में अक्सर कभी ना कभी हम सभी आर्थिक तंगी के हालात का सामना करते हैं। कई एक बार हमारे पास बहुत सारा धन, आ तो जाता है, मगर गंवा देते है।हमारे पास बेहतरीन अवसर होने के वाउजुद सही उपयोग नहीं कर पाते हैं। आखिर इसका वजह क्या है ? इसको अपना बदकिस्मती कहें , बुरी अर्थव्यवस्था कहें या फिर गलत पार्टनर ।  चाहे जो मर्ज़ी कह लें। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि धन को लेकर हमारे अंतःकरण में क्या  चल रहा है।  हमारे पास बहुत सारा धन आ भी जाए , मगर  धन को ले कर हमारे पास कोई योजना नहीं हैं। यूं कहें कि हम भीतर से तैयार नहीं है।तो इस बात की पक्की संभावना है कि धन हमारे पास ज्यादा देर तक नहीं टिकने वाली।हम उसे गंवा देंगे।  इसको हम एक उदाहरण से समझते है।  जैसे चिकित्सीय कार्य में चिकित्सक और आधुनिक चिकित्सीय उपकरण की जरूरी होती हैं। बेहतरीन उपकरण ज़रूरी हैं, लेकिन उन उपकरणों का कुशलता से प्रयोग कर सकने वाला बेहतरीन चिकित्सक बनना उनसे भी ज्यादा ज़रूरी है।  हम ज्यादातर लोगों के पास बहुत सारे पैसे बनाने और उसे रखने की आंतरिक क्षमता नहीं होती

आंख खुले रखने की जरूरत

शक्ति अर्जित करने के लिए लोग क्या करते हैं। दुनिया में हमें कोई भी ऐसा आदमी नहीं मिलेगा जिसे शक्तिहीन, गरीब और कमजोर होना पसंद हो। असहाय असक्त या लाचार होने पर सभी दुखी होते हैं। सभी चाहते हैं कि वे परिपूर्ण हो ,शक्ति संपन्न हो,  एक अलग पहचान हो।  कभी अपना शक्ति घटाना नहीं चाहते। दिन-रात शक्ति बढ़ाने में  लगे ही रहते हैं। शक्ति बढ़ाने की भूख कभी कम ही नहीं होती। रोज नई नई दांव पेंच सीखते रहते हैं।  हमेशा यह ध्यान देते हैं कि शक्ति अर्जित करने की जो गुप्त  दांव पेच है किसी को नज़र ना आये। न्याय संगत और नेक लगे।  शक्ति पाने के सूक्ष्म दाँव-पेंचों आजमाइश होती रहती है।सफलता का सूत्र यह है कि चालाक होने के बावजूद हम नेक और प्रजातांत्रिक दिखने की कोशिश करते हैं। नोर्मल दुनिया के परे एक दुनिया सतत छल-कपट का यह खेल शक्ति के उसी खेल की तरह है, जो पुराने जमाने के सामती दरबारों में खेला जाता था। पूरे इतिहास में शक्तिशाली व्यक्ति महाराजा, महारानी या सम्राट के चारों तरफ हमेशा एक दरबार लगा रहता था। दरबारी अपने स्वामी के निकट आने की कोशिश तो करते थे, लेकिन वे जानते थे कि अगर वे खुलकर चापलूसी करेंगे य

एक और एक कितने होते हैं

यूनिटी का इम्पोर्टेंस बड़ा goal (लक्ष्य) achieve (प्राप्त) करना हो ना , तो उसका मात्र एक ही सिद्धांत होता है।- teamwork और coordination। कोई कहे कि उसे टीम, संस्था, ग्रुप या समूह की आवश्यकता नहीं है। जान जाइए कि वह इंसान आपसे झूठ बोल रहा है या वह अनभिज्ञ है या लक्ष्य बड़ा नहीं है। इंडिविजुअलिटी में अपनी कोई पहचान नहीं होती।  मान लीजिए कोई आदमी बहुत अच्छा गायक है । लेकिन उसको कोई सुनने वाला ही नहीं तो गायकी किस काम का।बहुत अच्छा खिलाड़ी है लेकिन टीम ही नहीं है।बहुत अच्छा डॉक्टर है लेकिन कोई पेशेंट नहीं। बड़ा बाजार है लेकिन कोई खरीदार नहीं।  कहने का मतलब है हम सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से , सभी आपस में जुड़े हुए हैं। आप हैं तो मैं हूं। श्रोता है तो गायक है। खेल है तो खिलाडी है। पेशेंट है तो डॉक्टर है। और ना जाने कितने ही। समूह से शक्ति का विस्तारण   अगर आपसे कोई पूछे कि 1 और 1 कितना होता है तो आपका क्या जवाब होगा। हम मैथमेटिकली उन्हें बताएंगे कि 1 और 1 दो होता है। क्योंकि हमने यही सीखा है। थियोरेटिकली बिल्कुल सही भी है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। जिसमें एक और एक दो नहीं , बल्क