सफलता से दो क़दम दूर

मंजिल से दो क़दम दूर

हम सबों के जीवन के किसी ना किसी मोड़ में कभी ना कभी ऐसा जरूर होता हैं कि सफलता मिलने ही वाली होती है और हम मंजिल की आस छोड़ चुके होते हैं। जबकि सफलता या मंजिल को प्राप्त करने वाले प्रोसेस या नियम का पालन बड़ी ही शिद्दत से की हुई होती है। उसमें हम अपना बहुत सारा समय और ऊर्जा लगा चुके होते हैं। मंजिल से बस कुछ ही दूरी पर थक हारकर रुक जाते हैं और बाज़ी कोई और ही मार जाता है और अपने सर पर विजय मुकुट पहन लेता है। हमें पछतावा के अलावा और कुछ नहीं मिलता।

सोने की खान सब दो फीट दूर


"सफलता से दो कदम दूर" इस शीर्षक को और ठीक से समझने के लिए मै आपको एक कहानी सुनाता हूं। 
  एक बार किसी कालखंड में एक कारोबारी होता है। वह बहुत मेहनती और साहसी था। कारोबार में रिस्क उठाने से वह पीछे नहीं हटता था। वह बहुत ज्यादा धन अर्जित करके सबसे ज्यादा धनवान बनना चाहता था। वह अमीरी पसंद व्यक्ति था। वह हमेशा कारोबार के नए मौके के ही तलाश में रहता था। उसी जानकारी मिली कि बगल वाले राज्य में सोने का खान मिला है। फिर क्या था जानकारी इकट्ठा करने में लगे गए। जानकारी पुख्ता होने पर माइनिंग करने की योजना पर काम करना प्रारंभ कर दिया। माइनिंग की परमिशन मिल जाने के बाद अपना सब कुछ बेच कर और कुछ रुपए अपने दोस्त यारों और रिश्तेदारों से उधार लेकर माइनिंग में उपयोग होने वाली माइनिंग मशीन और कुछ औजार भाड़े पर लिया और पहुंच गए माइनिंग साइट पर। खुदाई प्रारंभ करने के 10 से 15 दिन के भीतर ही सोने का एक खेप मिल गया। वह खुशी से उछल पड़ा और उसे बेचकर सारे उधार चुका दिए। खुदाई के कामों में अब पहले से और तेजी आ गई। लेकिन क्या था महीनों खुदाई करने के बाद भी सोने का एक भी कन नहीं मिला। सारा धन लगाकर खुदाई का काम फिर भी जारी रखा । लेकिन क्या था महीनों के खुदाई के बाद भी उनके हाथ अब भी कुछ नहीं लगा।  उनका सारा धन लगभग समाप्त ही हो चुका था। उनका हिम्मत अब जवाब दे चुका था। खुदाई का काम आगे जारी रखना उसके लिए पॉसिबल नहीं था। खुदाई का काम को अब रोकना ही वह सही समझा। माइनिंग की सारी मशीनों और औजारों को औने पौने दामों में  किसी कबाड़ी वाले को बेच कर घर वापस लौट गया।
यह कबाड़ी वाला बड़ा होशियार निकला। वह माइनिंग में हुई ना कामयाबी के कारणों को पता लगाने की सोची।इसके लिए उसने माइनिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह ली। माइनिंग विशेषज्ञों की एक टीम साइट पर आई और रिपोर्ट तैयार करके उस कबाड़ी वाले को सौंप दी। विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर उस कबाड़ी वाले ने माइनिंग के काम को फिर से शुरू किया। फिर क्या था खुदाई का काम मात्र 2 फीट ही हुआ था और सोने का एक बहुत बड़ा खेप कबाड़ी वाले के हाथ लग गया। कबाड़ी वाले की सोच बुझ ने उसे सबसे बड़ा धनवान इंसान बना दिया।

मंजिल से ठीक पहले रुक जाना दुर्भाग्यपूर्ण


देखा ना दोस्तों कैसे वह कारोबारी अपने मंजिल हासिल करने से ठीक 2 फीट पहले अपना काम छोड़ दिया।अगर वह थोड़ी और हिम्मत दिखाई होती तो सबसे अधिक धनवान आदमी बनता। उसकी जिंदगी में नया मोड़ आ जाता। अब उसके पास पछताने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। और कैसे वह कबाड़ी वाला अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए खनन क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह ली और किसी दूसरे का मेहनत का क्रेडिट हासिल हासिल किया।

यह कहानी सिर्फ उस कारोबारी का ही नहीं हम सब का भी है। हम अक्सर ही अपने जीवन में इस तरह के परिस्थितियों का सामना करते हैं। जहां हम थक हार कर बैठ जाते हैं। हमारे जीवन में भी सफलता से 2 फीट पहले वाली सिचुएशन जरूर आती है। जहां से हमें सफलता की स्वर्णिम रोशनी दिखाई पड़ने लगती है बस उसे पहचानने की जरूरत है। जरूरत पड़े तो किसी अनुभवी लोगों की सलाह लेने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। सफलता से दो कदम दूर एक ऐसी अवस्था है जहां हमें अपना संपूर्ण शक्ति बटोर कर आगे बढ़ना चाहिए। हमारे जीवन की यह अवस्था यह तो 1 मिनट की हो सकती है ,1 घंटे की हो सकती है, 1 दिन की हो सकती है ,1 महीने की हो सकती है।इससे ज्यादा नहीं हो सकती है जहां हम हार मान बैठते हैं। 

इनको हम इन उदाहरणों से भी समझते हैं।


मान के चलिए तेज धारा प्रवाह वाली एक नदी पार करनी है। हमें तैरना भी आता है और हममें हिम्मत भी है। नदी का वह भाग जहां ज्यादा पानी भी है और उसका प्रवाह भी तेज है उसको हम आसानी से पार कर जाते हैं।लेकिन नदी का वह हिस्सा जहां पर ना तो ज्यादा पानी है और ना ही प्रवाह ही तेज है वहां हम बह जाते हैं या यूं कहें कि डूब जाते हैं जबकि हमें नदी का किनारा भी साफ साफ दिखाई दे रहा होता है।

मान लीजिए हमें कहीं जाना है और हम बस का इंतजार कर रहे हैं। स्टॉपेज पर बस आने का नियत समय सुबह 9:00 बजे है बस छूट ना जाए यह सोचकर हम सुबह 8:30 बजे ही स्टॉपेज पर पहुंच जाते हैं। और बस का वेट करने लग जाते हैं। किसी कारणवश उस दिन बस 5 मिनट के लिए लेट हो जाता है। इससे हम परेशान होकर 5 मिनट के लिए इधर उधर चले जाते हैं। और उसी 5 मिनट में बस आप ही जाती है और चली भी जाती है और हम छूट जाते हैं।

मान लीजिए हमें किसी सरकारी दफ़्तर या किसी डॉक्टर के क्लिनिक में कोई काम है। जब हम वहां पहुंचे तो पता चला कि अमुक अधिकारी या डॉक्टर अभी आया नहीं है। हम उनका वेट करने लग जाते हैं। उनका वेट करते-करते हम थक जाते हैं और वापस चले जाते हैं। बाद में पता चलता है कि हमारे जस्ट निकलने के बाद ही वह आ गए । जल्दी बाजी के चक्कर में हमारा काम उस दिन नहीं हो पाया।

इन सभी उदाहरणों से यही बात निकालकर सामने आती है कि मंजिल तक पहुंचने से ठीक दो कदम दूर जीत की आस छोड़ देते है और इसका खामियाजा यह होता है कि इसको जिंदगी भर नहीं भूल पाते हैं। यह हमारे जिंदगी दशा और दिशा दोनों को बदल कर रख देता है।

 अगर आपके भी जीवन में इस तरह के परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है तो कमेंट में जरूरी लिखिये । यह लेख यदि आपको अच्छा लगा तो समझेंगे कि हमारा मेहनत जाया नहीं गया। इसमें कोई सुधार हो तो अपना बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें। ताकि आगे और बेहरत काम कर सकें। अगर आपको लगता है कि किसी विशेष टॉपिक पर लेख लिखा जाय तो हमें अवश्य बताएं। इसी तरह के लेख से जुड़े रहने के लिए सरना बिल्ली को अवश्य फ़ॉलो करें।


धन्यवाद।









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