सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सामाजिक नशाखोरी(I)

नशाखोरी समाज के लिए अभिशाप है। 




नशाखोरी एक सामाजिक बुराई है। इसके गिरप्त में बच्चे ,युवा और बुजुर्ग सभी हैं। भारत युवाओं का देश है। युवाओं का संलिप्तता इसमें सबसे ज्यादा है। युवा शक्ति का इससे प्रभावित होना, समाज या देश के उत्पादकता में कमी होना है। सामाजिक स्तर से पूरा देश नशाखोरी जैसे मानसिक बीमारी से पीड़ित है। समाज और देश के लिए यह एक अभिशाप से कम नहीं है।
अल्कोहल पेय पदार्थों का (विस्की, चुलैया ,महुआ ,ब्रांडी, बीयर और हंडिया  आदि अल्कोहोल पेय पदार्थ है ) लगातार ज्यादा मात्रा में consumption को ही नशाखोरी कहा जाता है।हमारे समाज को नशा की लत लग चुकी हैं।  नशा नाश करता है। नशा आप किसी भी रूप में लें हमेशा बर्बादी का कारण ही बनता है। ये बर्बादी बहुआयामी होता है।हमारी उत्पादकता पर सीधा असर पड़ता है। शारीरिक, मानसिक ,आर्थिक और सामाजिक इन सभी क्षेत्रों से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

सबसे ताज्जुब की बात यह है कि बियर और हड़िया(राइस वियर) को हम शराब की श्रेणी में रखते ही नहीं। अजीबों गरीब तर्क देकर इसको लेने को जस्टिफिकेशन करते हैं। मैं आपको बता दूं की यह भी अल्कोहल पेय पदार्थ का ही एक रूप होता है। इसे अलग ना समझें। 

नशा नाश करता है, इसकी जानकारी हम सबको ही हैं। लेकिन बोलेगा कौन ? अगर बोलेगा भी तो सुनेगा कौन ? क्योंकि जिसको बोलना चाहिए और जिसके लिए बोलना चाहिए वो खुद हम ही हैं। हमनें कभी भी इसको छोड़ने की तबीयत से कोशिश की है नहीं।

ऐसे शुरू होती हैं नशाखोरी की शुरूवात


दोस्तों के प्रभाव या दबाव में

हम स्कूलों, कॉलेजों , शैक्षिक संस्थानों और हॉस्टलों में अपने दोस्त यारों के साथ रहते हैं। स्वाभाविक है कि या तो हम उनसे प्रभावित होंगे या वे हम से प्रभावित होंगे। आजकल के युवाओं में ड्रिंकिंग फैशन का स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। बर्थडे पार्टी  हो या bachelor पार्टी मस्ती के लिए लेेते है और कब लत बन जाता है पता ही नहीं चलता। 


बड़े या प्रतिष्ठित लोगों से

हम सबसे ज्यादा प्रभावित अपने से बड़ों या अपने अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित शख्सियतों से होते हैं। अपने अभिभावकों या अपने से बड़ों को नशे में चिल करते हुए देखते हैं। जब हमसे बड़े कर रहें हैं तो हम क्यों नहीं। फिर क्या हम भी उसी अंदाज़ में नशा करना शुरू कर देते हैं।

सबसे ज्यादा प्रभावित हम उन सेलेब्रिटियों से होते हैं जिसको कि हम पसंद करते हैं। जैसे की फिल्म स्टार, खिलाड़ी और ब्यूरोक्रेट्स ।जब कभी हम इनको नशा पान करते हुए देखते हैं तो हम उन्हीं का स्टाइल को कॉपी करने की कोशिश करते हैं। किसी के लिए हम और आप भी रोल मॉडल हो सकते हैं। हमें भी कोई कॉपी कर सकता है। 

जब हमारे पास कोई काम नहीं होता

कहा जाता है ना कि खाली दिमाग़ शैतान का। जब हम खाली निठल्ले बैठे रहते हैं तो हमारे दिमाग में तरह-तरह की बातें आती हैं। अकेले में हम बोर हो जाते हैं। बोरियत को मिटाने के लिए हम शुरू हो जाते हैं।

धार्मिक अनुष्ठानों से

बहुत बार हम नशा पान को धार्मिक अनुष्ठानों के साथ जोड़कर देखते हैं। इसे हम अपने संस्कृति का हिस्सा मानते हैं।चढ़ावे के नाम पर प्रसाद के रूप में मद्यपान या नशीली चीजों का उपयोग करते हैं। सरना आदिवासी समाज में इस तरह का चलन है। इसके पीछे तर्क हम यह देते हैं कि हमारे पूर्वजों ने किया इसीलिए हम भी कर रहे हैं। इसके पीछे के कारण के बारे में कभी जानने की कोशिश नहीं की। कोई भी धर्म या पंथ इस तरह के नशीली चीजों का उपयोग करने का परमिशन नहीं देता।

खुशी के मौके पर

भारत त्योहारों का देश है। कोई ना कोई त्योहार लगा ही रहता है। आदिवासी समाज में विशेषकर त्योहारों के मौके पर नशाखोरी का बहुत ज्यादा चलन है। इसके अलावा शादी विवाह या घर के छोटे-मोटे खुशी के मौके पर नशा पान का खूब चलन है।

अवशाद या चिंता दूर करने के लिए 

भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में किसी ना किसी बात को लेकर परेशान रहते हैं।  चाहे वह व्यापार में असफलता, ऑफिस का टेंशन, गृह कलेश, प्यार में धोखा या धन दौलत की कमी को लेकर चिंता में रहने लगते हैं।  हम में से बहुत लोग इससे उत्पन्न परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाने की स्थिति में क्षणिक राहत के लिए नशा खोरी का शिकार हो जाते है। और नशा के आदि हो जाते हैं।

मूढ़ बनाने के लिए

ऐसे बहुत से काम होते हैं जिसको करने के लिए हम अपने आप में आत्मविश्वास की कमी महसूस करते हैं। झूठी आत्मविश्वास हासिल करने के चक्कर में नशे का शिकार हो जाते हैं। 





दूसरा अध्याय :- लत क्या है और इसकी पहचान कैसे होती हैं?










टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ट्रस्ट का bylaws कैसे बनायें

न्यास –विलेख (TRUST DEED ) यह ट्रस्ट प्रलेख आज दिनांक .................................... को निम्न प्रकार से निष्पादित   किया गया   :- (1)श्री ...............................................    उम्र ...........................सुपुत्र श्री   ............................................जाति ............................ पेशा .....................ग्राम .................पोस्ट ....................थाना .......................जिला .................... राज्य .................   भारतीय नागरिक I आधार नं. ............... पैन नं.............. मो . नं...................   ,(2) श्री ...............................................    उम्र ...........................सुपुत्र श्री   ............................................जाति ............................ पेशा .....................ग्राम .................पोस्ट ....................थाना .......................जिला .................... राज्य .................   भारतीय नागरिक I आधार नं. ............... पैन नं.............. मो . नं..................

आदिवासियों से दुनियां क्या सीख सकती है।

     अगर दुनिया को बचाना है तो हमें आदिवासियों की तरह प्रकृति प्रेमी होना पड़ेगा। हमें प्रकृति के साथ सह अस्तित्व की जीवन शैली अपनानी होगी। आदिवासियों का प्रकृति प्रेम जीवन के प्रारंभ से लेकर जीवनपर्यंत तक रहता है। सच मायने में अगर देखा जाए तो एक सच्चा आदिवासी एक प्रकृति विज्ञानी से कम नहीं होता। उन्हें अपने वातावरण के सम्पूर्ण पेड़ पौधों की उपयोगिता और उनकी महत्व के बारे में जानकारी जन्म से ही होती है। क्योंकि उनके पूर्वजों के द्वारा ये जानकारी उन्हें स्वता ही मिल जाती है।  पेड़-पौधे का कौन सा भाग खाया जाता है ? कौन सा भाग औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है कब खाया जाता है कैसे खाया जाता है उन्हें सब कुछ पता होता है। ऐसे ऐसे चीजों के बारे में उन्हें पता होता है जिनके बारे में लगभग पूरे दुनिया के लोगों को पता नहीं होता है। आदिवासी अपने आप में एक इंस्टीट्यूट के समान है।अपने आप में ही वे ऑटोनॉमस बॉडी है। हमें बहुत नजदीक से प्रकृति से उनके जुड़ाव को सीखने की जरूरत है।मौसमों के बदलाव का असर उनके शरीर पर बहुत कम होता है।इसको पूरा दुनिया मानती है।आदिवासी हार्ड इम्युनिटी वाले होते है। उन्हें