धीमे चलें पर पिछड़े नहीं

 
जय धर्मेश                                    जय चाला

हम सबकी अक्सर कम मेहनत करके कम समय में अधिक धनवान होने की चाह  होती है । लेकिन हकीकत में ऐसा बिलकुल भी नही होता । इसके लिए हमें  छोटे छोटे सार्थक काम निरंतरता के साथ प्रतिदिन करना पड़ता है । साथ में जरुरत के हिसाब से इसमें समय समय पर  सुधार भी करते रहना पड़ता है । तब जाकर हम कहीं  स्थायी और मनचाही बड़ी सफलता हासिल कर सकते है ।

किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम शुरू में ही बहुत ज्यादा जोर लगा देते हैं। लक्ष्य प्राप्त होने से पहले ही थक जाते हैं। एनर्जी को रिस्टोर करने के लिए काम को छोड़कर रुक जाते हैं। इस प्रक्रिया में टाइम की बर्बादी होती है। योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला हमारा प्रतिद्वंदी हम से आगे निकल जाता है। हम पीछे ही रह जाते हैं । शुरुआत धीमी ही क्यों ना हो लेकिन निरंतरता बनाए रखना बहुत जरूरी है।

लेकिन कई बार लक्ष्य प्राप्ति का ये रास्ता काफी लम्बा और थका देने वाली होती है। हमारा जो लक्ष्य निर्धारित होता है वह भी भूमिल प्रतीत होते जान पड़ता है।हम भी शिथिल होने लग जाते है। परन्तु यही वह समय है जहाँ हमें मजबूती के साथ हर एक कदम मंजिल की ओर निरंतरता के साथ बिना रुके आगे बढते रहना होता है ।  आगे बढने की जो  गति है, धीमी ही क्यों ना हो , चलेगा । निरंतरता तो है ना, वही बड़ी बात है । सही मायने में देखा जाये तो, यही वो तरीका है जो हमें निर्धारित लक्ष्य के साथ जोड़े रखता है और हमें पिछड़ने नही देता ।


स्थायी परिवर्तन या बदलाव का सबसे सही तरीका होता है धीमी गति  और निरंतरता । कोई भी काम अधीरता के साथ कभी नही करना चाहिए । इसीलिए कहा भी जाता है ना कि जल्दी का काम शैतान का । जल्दी बाजी में हम कार्य की सरलता को जटिल कर देते है। जल्द बाज़ी के कारण कार्य  की जटिलता बढ़ जाती है। और इनसे होने वाला नुकशान भी काफी बढ़ जाता है। इतनी जटिल और नुकशान दायी तो जब समस्या पैदा हुई थी तब भी नही थी जितना कि हमारा अधीरता और जल्दबाज़ी के कारण हुई ।


कार्यकुशलता और क्रियाशीलता दोनों ही सुनने में एक समान लगते हैं। लेकिन दोनों ही में बहुत ही ज्यादा अंतर है। कार्य कुशलता से हमें यह विदित होता है कि कोई व्यक्ति किसी कार्य विशेष को करने में कितना निपुण है। 

क्रियाशीलता से हमें किसी कार्य विशेष के किए जाने की निरंतरता को बताती है। 

कोई व्यक्ति कार्य विशेष को करने में कार्य कुशल हो तो सकता है मगर जरूरी नहीं है कि वह क्रियाशील भी हो। अक्सर कार्य कुशल लोग यह सोचते हैं कि इस काम को करना तो मेरे बाएं हाथ का काम है। अभी नहीं कर पाए तो कोई बात नहीं। इसको तो कभी भी किया जा सकता है इसी चक्कर में वह इस काम को कल पर टालते रहता है। क्रियाशीलता के अभाव में उनकी कार्य कुशलता पर असर पड़ने लगता है। 

ठीक इसके उलट अगर कोई व्यक्ति कार्य कुशल ना भी हो। यदि वह क्रियाशील है तो वह कार्य विशेष पर कार्य कुशलता हासिल कर सकता है । 

आपने यह कहानी तो सुनी ही होगी। किस तरह दौड़ में कुशल दंभी खरगोश क्रियाशीलता या निरंतरता के अभाव में दौड़ की प्रतियोगिता में हार जाता है और दौड़ में धीमी और कमजोर कछुआ निरंतरता या क्रियाशीलता के कारण दौड़ में कुशल नहीं होते हुए भी दौड़ के प्रतियोगिता में तेज खरगोश को भी जीत लिया। 

इससे यही साबित होता है कि कार्यकुशलता और क्रियाशीलता में गहरा संबंध है। अगर आप में क्रियाशीलता है तो कार्य कुशलता हासिल की जा सकती है। किसी काम को बार बार किए जाने पर वह हमारी आदत में शुमार हो जाती है। अगर हम किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति का सपना देख रहे हैं तो हमें कार्य कुशलता के साथ क्रियाशील भी होना पड़ेगा।




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