स्थिति-1 खाते समय मुंह से चबाने की निकलती आवाज खाते समय मुंह से आवाज का आना न केवल हमारी व्यक्तिगत शिष्टाचार को धूमिल करती है, बल्कि यह दूसरों के लिए असुविधा का भी कारण बनती है। एक तस्वीर है जिसमें एक आदमी खाना खा रहा है और उसके मुंह से आवाज आ रही है, जबकि सामने बैठा व्यक्ति गुस्से से उसे देख रहा है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि कई बार व्यक्ति को अपनी इस आदत का अहसास तक नहीं होता। खाते समय मुंह से आवाज आना अक्सर अचेतन रूप से होता है, और व्यक्ति इस पर ध्यान नहीं देता। हम में से अधिकतर लोग इसे इसीलिए भी नहीं जान पाते क्योंकि यह आदत धीरे-धीरे विकसित हुई होती है और इसे हम सामान्य मान लेते हैं। और ना कभी हमें किसी ने इसके बारे में कभी ठोका हो। इस तरह की आदतें न केवल हमारी व्यक्तिगत छवि को प्रभावित करती हैं, बल्कि यह हमारे आस-पास के लोगों के लिए परेशानी का भी कारण बनती हैं। कई एक बार यह हमारे लिए शर्मिंदगी का कारण बनती है। आखिर खाते समय मुंह से आवाज क्यों आती है ? जब हम खाना खाते हैं, तो चबाने के दौरान लार और खाने का मिश्रण होता है, जिससे आवाज उत्पन्न होती है। यह सामान्य है
बच्चे समाज का वो हिस्सा होते हैं, जो आने वाले कल की नींव रखते हैं। उनके व्यक्तित्व और व्यवहार का निर्माण किसी खाके से नहीं होता, बल्कि वे अपने आसपास के परिवेश और खासकर अपने माता-पिता से बहुत कुछ सीखते हैं। यह कहना कि "बच्चे माता-पिता के आईने होते हैं", न केवल एक कहावत है, बल्कि जीवन की सच्चाई भी है। जब हम किसी आईने के सामने खड़े होते हैं, तो हमें अपनी छवि दिखाई देती है। उसी प्रकार, बच्चे अपने माता-पिता की छवि होते हैं। उनकी बातें, उनके हाव-भाव, उनके विचार—ये सभी उनके घर के वातावरण का प्रतिफल होते हैं। इस प्रक्रिया में माता-पिता की भूमिका सबसे अहम होती है, क्योंकि बच्चे सबसे पहले उन्हीं को देख-देखकर सीखते हैं। प्रारंभिक वर्षों का महत्व बच्चों के जीवन के प्रारंभिक वर्ष उनके संपूर्ण विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान वे अपने आस-पास की दुनिया को समझने और उससे सीखने की कोशिश करते हैं। इस उम्र में माता-पिता ही उनके लिए पूरी दुनिया होते हैं। बच्चे वही करते हैं, जो वे अपने माता-पिता को करते देखते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर माता-पिता आपस में अच्छे से बात करते हैं, सम्