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अंधविश्वास।

  अंधविश्वास क्या है।  ऐसे तर्कहीन धारणाएं, मान्यताएं या विश्वास , जिसका कोई  युक्ति संगत वैज्ञानिक आधार नहीं होता है। घटनाओं का कारण हमेशा पीछे छिपी, अदृश्य अलौकिक शक्तियों का ,हाथ होने की मनगढ़ंत, आधारहीन व्याख्या की जाती है ।  कारणों को लेकर हमेशा गलत अवधारणाएं होती हैं । अदृश्य , अलौकिक शक्तियों का अंजाना डर बना रहता है। और यह डर ,जीवन भर रहता है।  जब तक ज्ञान रूपी प्रकाश से अज्ञानता रूपी पर्दा हट नहीं जाता।  हमारे जीवन में बहुत से ऐसी घटनाएं होती है ,जिन घटनाओं के कारणों के बारे  में हमें पता नहीं होता ,और उन कारणों के पीछे अज्ञानतावस हम अदृश्य शक्ति का होना मान लेते हैं। यह मन मस्तिष्क में ऐसे बैठ जाती है जो कभी जाते हीं नहीं।  अंधविश्वास इतना प्रचलित क्यों है।  विज्ञान का काम करने का एक तरीका होता है ।किसी भी घटनाओं को वैज्ञानिक कसौटी या सिद्धांतों से सिद्ध करने के लिए अनेक प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। सबसे पहले घटनाओं को बहुत ही बारीकी से अवलोकन किया जाता है। घटना की प्रकृति को समझने की कोशिश की जाती है।  घटनाओं से रिलेटेड सभी जरूरी जानकारी इकट्ठा की जाती

आदिवासियों से दुनियां क्या सीख सकती है।

     अगर दुनिया को बचाना है तो हमें आदिवासियों की तरह प्रकृति प्रेमी होना पड़ेगा। हमें प्रकृति के साथ सह अस्तित्व की जीवन शैली अपनानी होगी। आदिवासियों का प्रकृति प्रेम जीवन के प्रारंभ से लेकर जीवनपर्यंत तक रहता है। सच मायने में अगर देखा जाए तो एक सच्चा आदिवासी एक प्रकृति विज्ञानी से कम नहीं होता। उन्हें अपने वातावरण के सम्पूर्ण पेड़ पौधों की उपयोगिता और उनकी महत्व के बारे में जानकारी जन्म से ही होती है। क्योंकि उनके पूर्वजों के द्वारा ये जानकारी उन्हें स्वता ही मिल जाती है।  पेड़-पौधे का कौन सा भाग खाया जाता है ? कौन सा भाग औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है कब खाया जाता है कैसे खाया जाता है उन्हें सब कुछ पता होता है। ऐसे ऐसे चीजों के बारे में उन्हें पता होता है जिनके बारे में लगभग पूरे दुनिया के लोगों को पता नहीं होता है। आदिवासी अपने आप में एक इंस्टीट्यूट के समान है।अपने आप में ही वे ऑटोनॉमस बॉडी है। हमें बहुत नजदीक से प्रकृति से उनके जुड़ाव को सीखने की जरूरत है।मौसमों के बदलाव का असर उनके शरीर पर बहुत कम होता है।इसको पूरा दुनिया मानती है।आदिवासी हार्ड इम्युनिटी वाले होते है। उन्हें

सुविधाएं कैसे काम करती है?

सुविधाएं उत्पादकता बढ़ाती है सुविधाएं हमारी कार्य क्षमता को बढ़ाती है। जिसके परिणाम स्वरूप प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। सुविधाएं ऐसे औजार या साधन होते हैं जो काम हम कर रहे होते हैं उस काम को बेहतर और सुंदर ढंग से कम समय में करने के लिए हमारा सहायक होता है। आधुनिक युग में हम सुविधाएं प्रदान करने वाली साधनों से गिरे हुए हैं। आधुनिक युग में हम मनुष्य का जीवन इस तरह से बदल चुका है कि सुविधाओं के बिना जीवन की कल्पना करना एकदमएकदम ही मुश्किल है। जीवन इसके बिना एकदम से रुक जाएगी। जीवन में हर वो काम जो हमें जीवित रहने के लिए करना पड़ता है उन सभी चीजों को करने के लिए साधन उपलब्ध है। सुविधाएं हम मनुष्य जीवन को चमत्कारिक रूप से बदल दिया है। सबों को सभी सुविधाएं उपलब्ध हो यह जरूरी नहीं है। सभी को सब कुछ प्राप्त नहीं है। उनके लिए एक निश्चित धनराशि जो चुकानी पड़ती है। सुविधाओं के साधन हमारे समय को काफी बचा दिया है। दिनों का काम घंटों में हो जा रहा है। और घंटों का काम मिनटों में सटीकता के साथ हो रहा है। हम मनुष्य का जीवन पूरी तरह से सुविधाओं के साधनों पर निर्भर  हो गया है। हम पूरी तरह से सुविधाओं के साधनो

तनाव एक अदृश्य दुश्मन।

      आज हमारे पास  विज्ञान के हजारों वारदान प्राप्त हैं और  दिन    प्रतिदिन प्राप्त हो भी रहें हैं । ऐसे ऐसे उपकरण अपने पास उपलब्ध हैं , जिनकी कार्य प्रणालियां हमें   अचंभित कर देती हैं । आज हम चाँद   तक में भी अपना परचम लहरा चुके है ।समुद्र की गहराइयों को नाप चुके हैं । बौजुद इसके आज मनुष्य एक अभिशाप से थक सा गया है । उपभोग की सारी चीजें और उन्नति बेकार हो जाती हैं ।   वह अभिशाप कोई और नही हमारे जीवन में उत्पन्न तनाव है ।समस्याओं के कारण हम तनाव से ग्रसित नहीं हैं बल्कि हमारे तनावग्रस्त होने से समस्याएँ होती हैं।  हमारे चारों ओर घाट रही घटनाओं और मन में चल रही अंतरी मनोवैज्ञानिक संदेशों को खतरे के रूप में देखने या समझने के फलस्वरुप जो प्रतिक्रिया की जाती हैं , वही तनाव है। जब हमारे मन मस्तिष्क से भयभीत, बेचैन, अशांत, दुविधाजनक पूर्ण, थके हुए, उबावपन ,उलझे हुए   एवं द्वंद्वग्रस्त महसूस करते हैं ,तो उसे ही   हम तनाव कहते हैं। जब हम अपने जीवन

मेले के बाद का मेला

मै आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहा हूं जो सबों के माननीय है। इनकी उम्र लगभग पचपन साल है।  सुखी संपन्न और बड़ा परिवार  का मुखिया है।गांव के सभी लोग उनका कहना मानते हैं। गांव में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे, समझदार और सुलझे हुए आदमी है। हर विषय की थोड़ी ना थोड़ी जानकारी जरुर होती है उनके पास ।गांव के सभी लोग सलाह मशवरा के लिए उनके पास आया करते हैं। गांव में सबों के साथ बड़ा प्रेम भाव से मिला करते हैं।  मिलनसार प्रवृति के होने के कारण सभी लोग उन्हें पहचानते हैं।  जीवन यापन के लिए वह व्यवसाय के साथ खेती किसानी किया करता है। उनकी दुकान में हमेशा भीड़ लगी ही रहती हैं। तीन चार लोग उनके under काम करते हैं।वे खुद ही बहुत मेहनत से काम करते है। एक बार की बात है, उनके रिश्तेदारों के यहां बड़ा मेला लगा। सपरिवार जाने का अमंत्रणा भी आ गया। परिवार के सभी लोग बड़ा खुश हुए और जाने को राजी हो गए। जब परिवार के मुखिया से पूछा गया तो बोले कि मेरा उम्र मेला सेला देखने का अब नहीं है ।मै तो बूढ़ा हो गया हूं। तुमलोगों का समय है, तुमलोग जाओ।मै तो मेले के बाद जाऊंगा। क्या था ? बच्चे सब चले गए। फिर क्या था

सफलता से दो क़दम दूर

मंजिल से दो क़दम दूर हम सबों के जीवन के किसी ना किसी मोड़ में कभी ना कभी ऐसा जरूर होता हैं कि सफलता मिलने ही वाली होती है और हम मंजिल की आस छोड़ चुके होते हैं। जबकि सफलता या मंजिल को प्राप्त करने वाले प्रोसेस या नियम का पालन बड़ी ही शिद्दत से की हुई होती है। उसमें हम अपना बहुत सारा समय और ऊर्जा लगा चुके होते हैं। मंजिल से बस कुछ ही दूरी पर थक हारकर रुक जाते हैं और बाज़ी कोई और ही मार जाता है और अपने सर पर विजय मुकुट पहन लेता है। हमें पछतावा के अलावा और कुछ नहीं मिलता। सोने की खान सब दो फीट दूर "सफलता से दो कदम दूर" इस शीर्षक को और ठीक से समझने के लिए मै आपको एक कहानी सुनाता हूं।    एक बार किसी कालखंड में एक कारोबारी होता है। वह बहुत मेहनती और साहसी था। कारोबार में रिस्क उठाने से वह पीछे नहीं हटता था। वह बहुत ज्यादा धन अर्जित करके सबसे ज्यादा धनवान बनना चाहता था। वह अमीरी पसंद व्यक्ति था। वह हमेशा कारोबार के नए मौके के ही तलाश में रहता था। उसी जानकारी मिली कि बगल वाले राज्य में सोने का खान मिला है। फिर क्या था जानकारी इकट्ठा करने में लगे गए। जानकारी पुख्ता होने पर माइनिंग करन

GOOD TOUCH BAD TOUCH

कुछ चीजें ऐसी है जिसके ऊपर कभी हमारा ध्यान गया ही नहीं। भागदौड़ भरे इस जीवन में हमारे पास समय का बड़ा अभाव रहता है। हम अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते। काम के सिलसिले में हम अक्सर बच्चों से दूर रहते हैं । हम अपने बच्चों को जरूरत की सारी चीजें देते हैं। हम उनका लालन पालन राजकुमार या राजकुमारी की तरह करते हैं। लेकिन बच्चों को सीखाई जाने वाली कुछ जरूरी चीजें ऐसी भी होती हैं , जिसका जिक्र न तो पाठ्यक्रमों में होता है और न ही हमारे या शिक्षकों के ध्यान में ही होता है। बहुत बार हमारे ध्यान में होने के बावजूद हम संकोच या झिझक महसूस करते है।  चलिए आज हम समझते हैं गुड और बैड टच क्या है के बारे में। यह लेख एस्पेशियली अभिभावकों, माता पिता,परिवार जनों और शिक्षकों के लिए है। क्योंकि बच्चों को क्या गलत है और क्या सही है के बारे में बताने की जिम्मेवारी इन्हीं लोगों की होती है। यही बच्चों के प्रथम शिक्षक होते हैं।  BAD TOUCH और GOOD TOUCH क्या है   Bad Touch(गलत स्पर्श):- बैड टच का मतलब ऐसे गलत स्पर्श से है जो ममता से रहित हो और जो बच्चों को असहज महसूस कराए। जिस स्पर्श से बच्चों में सेंस आफ सिक्