आज हमारे पास विज्ञान के हजारों वारदान प्राप्त हैं और दिन प्रतिदिन प्राप्त हो भी रहें हैं । ऐसे ऐसे उपकरण अपने पास उपलब्ध हैं, जिनकी कार्य प्रणालियां हमें अचंभित कर देती हैं । आज हम चाँद तक में भी अपना परचम लहरा चुके है ।समुद्र की गहराइयों को नाप चुके हैं । बौजुद इसके आज मनुष्य एक अभिशाप से थक सा गया है । उपभोग की सारी चीजें और उन्नति बेकार हो जाती हैं । वह अभिशाप कोई और नही हमारे जीवन में उत्पन्न तनाव है ।समस्याओं के कारण हम तनाव से ग्रसित नहीं हैं बल्कि हमारे तनावग्रस्त होने से समस्याएँ होती हैं।
हमारे चारों ओर घाट रही घटनाओं और मन में चल रही अंतरी मनोवैज्ञानिक संदेशों को खतरे के रूप में देखने या समझने के फलस्वरुप जो प्रतिक्रिया की जाती हैं ,वही तनाव है।
जब
हमारे
मन
मस्तिष्क
से भयभीत, बेचैन, अशांत, दुविधाजनक पूर्ण, थके
हुए, उबावपन
,उलझे
हुए
एवं
द्वंद्वग्रस्त
महसूस
करते
हैं
,तो
उसे
ही हम
तनाव
कहते
हैं।
जब
हम अपने जीवन में किसी इच्छित फल की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं तो उससे उत्पन्न प्रतिक्रिया को तनाव कहते ।
इसको हम ऐसे भी समझ सकते हैं । यह एक ऐसी रथ है, जिसमें कई घोड़े अलग-अलग दिशाओं में जुते हुए हैं, जो अपनी-अपनी दिशा में रथ को खींच रहे है । इसी परस्पर खींच-तान को तनाव कहते हैं ।
तनाव को परिभाषित करने का कोई निश्च्चित पैमाना नहीं हैं । मन एक सुपर कंप्यूटर हैं जिसमे एक साथ सैकड़ों विचार चल रहे होते हैं ।
तनाव का होना साफ शब्दों में कहें तो
यह एक मानसिक स्थिति है जो कि हमारे दिमाग में चल रहा होता है । घटनाएँ सदैव तनाव
का कारण नहीं होती हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि आप घटनाओं को किस रूप में लेते और
उनसे कितना प्रभावित होते हैं। घटना की
व्याख्या एवं विश्लेषण से हमारा रवैया तय होता है। हमारा रवैया ही तनाव होने और
नहीं होने का कारण है।
उदाहरण के तौर पर, अगर हम कहते हैं कि 'क्या फर्क पड़ता है , तो मुझे कोई तनाव नहीं होता है । यदि हम यह सोचते हैं कि 'बहुत फर्क पड़ता है , तो तनाव का बढ़ना स्वाभाविक हैं ।
तनाव बहुआयामी है। मानसिक तनाव होने से हर व्यक्ति का अनुभव
भिन्न-भिन्न होते हैं और प्रभाव भी अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग होता है। इसलिए
इनको जीतने की एक ही विधि नहीं हो सकती है। हम तनावों से क्यों घिरे हुए हैं?
अनुमानतः कहा जाए तो तनाव इसलिए भी हैं , क्योकि हमारा जीवन जीने की तरीका अव्यवस्थित और लक्ष्य हीन हैं
। यह तनाव स्वयं के द्वारा पैदा किए हुए
हैं । तनाव हमारे लालच और इज्जत के कारण बनता हैं।
तनावों को हम बेवजह भी पैदा करते हैं। इसको हम एक उदहारण से इस प्रकार से भी समझ सकते हैं ।
एक रेलगाड़ी तेज गति से भागी जा रही थी, उसमें बैठे एक यात्री
को सभी दूसरे यात्री डिब्बे में आते-जाते देख रहे थे । वह यात्री अपने सिर पर
अटैची व बिस्तर रखे हुए था। वह स्वयंसेवक की तरह आदर्शवादी आदमी दिखाई पड़ता था।
एक व्यक्ति ने पूछा, 'भाई साहब सिर पर सामान क्यों उठाए हुए
हो ?'उस व्यक्ति ने जवाब दिया, 'मैं अपना बोझ स्वयं उठाता हूँ, किसी
अन्य पर वजन नहीं लादता हूँ।'
जब स्वयं ट्रेन में बैठा है तो वजन रेल पर नहीं पड़ रहा है, यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था। ठीक वैसे ही हम भी बहुत से तनाव सिर पर उठाए चल रहे हैं।जबकि उन्हें नीचे रखा जा सकता है।
मित्रो कुछ भार सूक्ष्म व अदृश्य होते हैं, जो दिखते तक नहीं हैं। तनाव ठीक इसी प्रकार के भार हैं, जो हमें दिखाई नहीं पड़ते हैं।स्थूल बोझ दिख जाता है। असली दिक्कत यही है कि इन तनावों को हम अपने सिर पर लादे हुए हैं।कहीं हम अपने सिर पर पेटी बिस्तर पकड़कर तो रेलगाड़ी में नहीं बैठे हैं। क्योंकि हमने बहुत से यात्रियों को निम्न प्रकार का बोझ अपने सिर पर लादे हुए देखा है।
अतीत का बोझ, स्मृति का बोझ, पश्चात्ताप का बोझ, शिकायतों का बोझ,सपनों का बोझ, इच्छा का बोझ, महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ, कल्पनाओं का बोझ, 'मैं' का बोझ, 'मेरेपन' का बोझ, तुलना का बोझ , मुख्य होने का बोझ, सामाजिक भय का बोझ ,प्रतिष्ठा का बोझ ,परंपरा का बोझ ,व्यक्तिगत रहस्यों का बोझ, प्रेम संबंधों का बोझ, बदले का बोझ, अज्ञात व अनजान बोझ
जानवरों को कोई तनाव नहीं होता है, क्योंकि
वे प्रकृति प्रदत्त सहज जीवन जीते हैं। जीवन शैली में उन्होंने अपनी टाँग नहीं
अड़ाई है। इसीलिए उनको डॉक्टरों की जरूरत हमसे कम पड़ती है।
तनाव हमेशा ही शत्रु नहीं होते हैं। वे हमें समय-समय पर
चेतानेवाले मित्र भी हो सकते है। परीक्षा के तनाव से विद्यार्थी तैयारी अच्छी करता
है, अभिनेता डर से अच्छा अभिनय करता है।
सफलता का प्रयास एक प्रकार का तनाव ही तो है। इस तरह के तनाव हमारे मित्र भी होते
हैं। अनेक बार ऐसे तनाव हमें उत्पादक व रचनात्मक बनाते हैं।
तनाव के साथ जीना सीखने की जरूरत है। प्रेरक गुरु प्रेरित करने
के लिए जो तनाव बढ़ाते है, ये लाभदायक होते हैं। तनाव बिजली की तरह
एक खराब मालिक एवं अच्छा नौकर है।
जैसे बिजली का उपयोग मालिक बनकर अनेक तरह से किया जा सकता। जब
व्यक्ति बिजली को नियंत्रित नहीं करता है
तो वहीं बिजली व्यक्ति को अपार क्षति पंहुचा सकता । इसलिए तनाव का उपयोग अपने पक्ष
में करने के लिए उस पर नियंत्रण जरूरी है। पानी और भोजन की तरह उससे बचा नहीं जा
सकता है। संतुलित जीवन जीने के लिए उसका यही उपयोग करना आना चाहिए।
तनाव एक शक्तिशाली स्थिति है, जो या तो बहुत लाभदायी या नुकसान का कारण हो सकती है। यह बहती नदी के समान है जब आप इस पर बाँध बनाते हैं तो पानी की दिशा को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं; परंतु जब नदी पर बाँध नहीं होता हैं तो उसके जल का इच्छित उपयोग संभव नहीं है तनाव के साथ भी ऐसा ही है।
यदि हम तनाव का प्रबंधन ठीक से नही करते है तो कई प्रकार की शारीरिक बीमारियाँ, जैसे- उच्च रक्तचाप, हृदयरोग,
मधुमेह आदि पैदा कर
सकता है और कर रहा है। तनाव का उपचार सभी चाहते हैं, लेकिन
तनाव हो ही नहीं, इसकी व्यवस्था बहुत कम लोग कर पाते हैं।
जैसा कि सभी जानते हैं की ईलाज से बेहतर उसको आने से रोकना ।
यानी रोग को आने ही न दें इसलिए तनाव को
आरंभिक स्तर पर रोकना उचित हैं । मात्र बुद्धत्व प्राप्त व्यक्ति को ही तनाव नहीं
होता है। तनाव तो होगा, पर उसे रोका जा सकता है।सफलता प्राप्ति
के प्रयत्नों में बहुत से तनाच आते हैं। इन तनावों के आने से कई बार सफलता भी भार
लगने लगती है। ऐसे में तनाव मुक्त सफलता प्राप्त करें। वैसे सफलता के लिए भाग दौड़,
कड़ी मेहनत, संघर्ष एवं स्वयं को दबाना पड़ता है।
अनेक तरह के समझौते करने पड़ते हैं। मन को केंद्रित करना पड़ता है। इस प्रक्रिया
में तनाव सहज आ जाते हैं। कई बार तो ये तनाव सफलता तक को बेकार कर देते हैं।
सभी तनाव घातक नहीं होते हैं। कुछ तनाव जीवन में आवश्यक होते
हैं। हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे तनावों को हम अच्छे तनाव कह
सकते हैं। कुछ तनाव प्रारंभ में घातक नहीं होते हैं। इस संबंध में लचीलेपन के नियम
को जानना अच्छा है। किसी भी ठोस को उसकी एक लचीलेपन की सीमा तक खींचा जाए तो वह
खींचना बंद करने पर फिर से पहले वाली अवस्था में आ जाता है। लेकिन उसको लचीलेपन से
अधिक खींचा जाए तो वह स्थायी रूप से विकृत हो जाता है , अपनी
पहलेवाली अवस्था में नहीं आता है। इसी तरह तनावों की भी एक सीमा होती है। व्यक्ति
के तनाव सहने की शक्ति अलग-अलग होती हैं, जैसे
भय को लें भय तब तक उपयोगी है जब तक वह कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन
ज्यों ही भय की मात्रा बढ़कर इतनी हो जाए कि भयभीत व्यक्ति कार्य न कर सके और वह
हतोत्साहित हो जाए।
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- सामाजिक नशाखोरी-II
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