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समस्याओं के मूल कारण को खोजना ही समस्या का हल है

समस्या को एक चिकित्सक की तरह देखें किसी भी समस्या को हल करने से पहले हमें समस्या को देखने की नजरिया को बदलना होगा। समस्या के उत्पत्ति के कारणों को जानना होगा। जैसे कि एक पेशेवर चिकित्सक किसी बीमारी के सभी संभावित कारणों के बारे में पता लगाने की कोशिश करता है। बीमारी के लक्षणों के आधार पर सभी उपयोगी इन्वेस्टिगेशन कराता है। इन्वेस्टिगेशन  रिपोर्ट्स के आधार पर बीमारी के मूल कारण तक पहुंचने की कोशिश करता है। बीमारी के मूल कारण का पता लग जाने पर उपयोगी योग्य दवा देता है।  बीमारी का सही दवा, सही समय पर , दिए जाने पर तुरंत ठीक भी होने लग जाती है।  कंपनियां ऐसे करती समस्या का निदान इसी तरह कोई बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी सही समय तक इच्छित परिणाम हासिल करने में नाकामयाब रहता है। इच्छित परिणाम हासिल ना कर पाने की, सभी संभावित कारणों का एक सर्वे कराता है। सर्वे के रिपोर्ट के अनुसार सभी कमियों को एनालिसिस करके , उपयोगी सुधार को अमल में लाता है। अगले प्रोजेक्ट में उन कमियों पर विशेष ध्यान रखता है और अपने इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति करता है। समस्या का मूल कारण में छिपी है हल साफ शब्दों में कहें तो हमें हम

मनोरम झलकियां प्राकृतिक पर्व सरहुल की

ASSRB द्वारा प्राकृतिक पर्व सरहुल मानने का  नायाब तरीका पहान बाबा द्वारा पूजा अर्चना ASSRB सैनिकों द्वारा बनाया गया एक चैरिटेबल ट्रस्ट है। सेवारत और सेवानिवृत सैनिक इसके सदस्य है। सैनिक जिस कर्तव्य परायणत ,अनुशासन , कर्मनिष्ठता और मनोयोग से देश की सेवा में अपने बहुमूल्य समय देते है उसी तर्ज पर सामाजिक कल्याण का काम करना चाहते है। इस तरह के भावनाओं का उद्गमन अपने आप में अनूठा है। मुख्य अतिथि श्री जितबहान उरांव (DSP) मैं आप को एक बात से अवगत कराना चाहूंगा कि सरहुल पर्व आदिवासियों का सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व है। यह पर्व तब मनाया जाता है जब पृथ्वी हरियाली का आवरण ओ‌‌ढ़ रही होती है। रंग बिरंगी फूलों से सज रही होती है। यूं कहें की नया रूप धारण कर रही होती है। यही मौसम भारतीय आदिवासियों का नया साल का होता है। प्रकृति के बिना इस पृथ्वी पर मनुष्य जाति का अस्तित्व संभव नहीं है। आदिवासी समाज इस को बखूबी समझती है। इसीलिए प्रकृति के संरक्षण संवर्धन और उनके पोषित के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है। मंच में मुख्य और विशिष्ट अतिथि गन ASSRB इस पर्व को एक कदम और आगे ले गई । समाज में जितने भी सेवानिवृत सैनि

धीमे चलें पर पिछड़े नहीं

  जय धर्मेश                                    जय चाला हम सबकी अक्सर कम मेहनत करके कम समय में अधिक धनवान होने की चाह   होती है । लेकिन हकीकत में ऐसा बिलकुल भी नही होता । इसके लिए हमें   छोटे छोटे सार्थक काम निरंतरता के साथ प्रतिदिन करना पड़ता है । साथ में जरुरत के हिसाब से इसमें समय समय पर  सुधार भी करते रहना पड़ता है । तब जाकर हम कहीं  स्थायी और मनचाही बड़ी सफलता हासिल कर सकते है । किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम शुरू में ही बहुत ज्यादा जोर लगा देते हैं। लक्ष्य प्राप्त होने से पहले ही थक जाते हैं। एनर्जी को रिस्टोर करने के लिए काम को छोड़कर रुक जाते हैं। इस प्रक्रिया में टाइम की बर्बादी होती है। योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला हमारा प्रतिद्वंदी हम से आगे निकल जाता है। हम पीछे ही रह जाते हैं । शुरुआत धीमी ही क्यों ना हो लेकिन निरंतरता बनाए रखना बहुत जरूरी है। लेकिन कई बार लक्ष्य प्राप्ति का ये रास्ता काफी लम्बा और थका देने वाली होती है। हमारा जो लक्ष्य निर्धारित होता है वह भी भूमिल प्रतीत होते जान पड़ता है।हम भी शिथिल होने लग जाते है। परन्तु यही वह समय है जहाँ हमें मजबूत

जैसा देश वैसा भेष

परिवेश का असर हम सभी को यह पता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। हम सभी एक व्यवस्थित शांतिपूर्ण और सभ्य समाज में रहना पसंद करते हैं। समाज में हम अपने दोस्तों रिश्तेदारों करीबियों और अपने परिवार वालों के साथ सामंजस्य के साथ रहते हैं। हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में इन्हीं लोगों के प्रभावों का बहुत बड़ी भूमिका होती है। हम जिस तरह के समाज यह परिवेश से आते हैं उसका असर हमारे व्यक्तित्व में पड़ता है। अगर हमारा संपर्क अच्छे लोगों से होगा तो अच्छा ही असर हम पर भी पड़ेगा। बुरे लोगों से होगा तो बुरा असर पड़ेगा। बहुत बार अपने करीबियों की उम्मीदों के दबाव के कारण हमारे अंदर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के दृष्टिकोण विकसित होते हैं। माहौल के अनुरूप रहने की आदत हमारे अंदर स्वाभाविक तौर पर माहौल के अनुरूप रहने की आदत होती है। अक्सर हम अपनी पहचान अपने आसपास के लोगों के पहचान से ही जोड़ कर रखना पसंद करते हैं। यह हमें मानसिक सुरक्षा की अनुभूति का एहसास कराता है।समाज के साथ में जुड़कर रहने की हमारी हमेशा से ही यही प्रवृत्ति रही है। हम हमेशा से ही अपने समाज से प्रभावित होते हैं या तो उन्हें प्रभा

स्वयं को जीतना दुनिया जीतने के बराबर

हमारे जीवन में बहुत बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जिसमें किसी एक समस्या का समाधान  दूसरी समस्या को जन्म देती है। लेकिन दूसरी समस्या का समाधान पहली समस्या को फिर वापस ला देती है। जैसे कि हम अपने जीवन में किसी काम की विफलता के कारण तनाव में रहने लगते है। उस तनाव को दूर करने के लिए हम नशीली चीजों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते है। नशीली पदार्थों के लगातार इस्तेमाल से उसका बुरा असर हमारे शरीर और रोज़मर्रा के जीवन में पड़ने लगता है। यह देखकर हम और तनाव में आ जाते है।   जैसे हम टीवी देखते हुए सुस्ताने लग जाते है। फिर कुछ और ना कर पाने की स्थिति में और टीवी देखने लग जाते है। इसी तरह अनेकों उदाहरण है कि किस तरह हम जाने अंजाने में ही समस्याओं के जाल में फंसते चले जाते हैं ।    पर काम आता है आत्मनियंत्रण(Self-control) । लेकिन लंबे समय तक अपने आप को self-control में रखना संभव नहीं है । ये लंबे समय तक काम नहीं करती । दीर्घकालीन परिणामों के लिए हमें सुनियोजित तरीकों को अपनाने की जरूरत होती है। क्योंकि हर बार हम अपनी इच्छा शक्ति पर काबू नहीं रख पाएंगे। हम अपनी बुरी आदतों को रोक तो

विनती, भजन, प्रार्थना की महिमा

प्रार्थना के औजार के रूप में हम गीत,संगीत,भजन, मंत्र, ध्यान, मनन,जाप, मौन आदि का उपयोग करते है। ब्रह्मांड की असीम शक्ति से जुड़ने की प्रक्रिया है प्रार्थना। प्रार्थना हमें परम शक्ति के समीप महसूस कराती है। प्रार्थना हमें परम शांति, संतुष्टि, प्रबुद्धता और संपूर्णता की अनुभूति दिलाती है।  प्रार्थना मनुष्य की स्वभाव बदलने की प्रक्रिया है। शक्ति के असीम सागर से कुछ ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया है प्रार्थना । विनम्रता पूर्वक या इमानदारी से दूसरे पक्ष से कुछ प्रदान करने को कहना है प्रार्थना। प्रार्थना में हम संपूर्ण रूप से अपने आप को सुपर पावर के आगे समर्पित कर देते हैं।  समर्पण का भाव है प्रार्थना। अलौकिक शक्ति से जुड़ना है प्रार्थना। ईश्वर से अपने मन और हृदय की बात कहना है प्रार्थना। प्रार्थना के माध्यम से हम अपने या दूसरों की इच्छा पूर्ति का प्रयास करते हैं। जब हम भगवान से बात करते हैं तो हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले शब्द , गीत,भजन ,मंत्र,ध्यान, मनन और जाप ये सब प्रार्थना है। प्रार्थना मनुष्य और ईश्वर के बीच आध्यात्मिक संचार का माध्यम है। प्रार्थना ईश्वर सेवा का ही एक रूप है। प्रा

लक्ष्य प्राप्ति के प्रोसेस को याद रखें लक्ष्य को नहीं

यह सुनने में बड़ा अटपटा लगता है कि कोई लक्ष्य तय कर के ,लक्ष्य को ही भूल जाएं।यह बातें इसीलिए कहीं गई है क्योंकि जब कभी भी हम अपना लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं। उसके बाद में हम काम ना भी करें तो क्या फर्क पड़ने वाला है। हमें तो अचीवमेंट मिल चुका ना। इसे हम ऐसे समझते हैं। हम एक चुस्त-दुरुस्त तंदुरुस्त बॉडी पाने का लक्ष्य तय करते हैं। उस लक्ष्य के अनुरूप काम करना भी शुरू कर देते हैं।महीनों या सालों की मेहनत के बाद वह मनोवांछित परिणाम हमें मिल भी जाती है। इच्छित परिणाम की प्राप्ति के उपरांत हम थोड़े ढीले पड़ जाते हैं । उस प्रोसेस या तरीके को भूल जाते हैं जिसका अनुसरण करते हुए इच्छित फल की प्राप्ति करते हैं। इसीलिए यहां पर इस बात पर जोर देकर कहीं गई है कि,लक्ष्य को भूल कर उस प्रोसेस पर ध्यान दें जिसकी वजह से हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन  आ रही है ।  लक्ष्य से वह परिणाम है जिसे कि हम सभी पाना चाहते हैं। और व्यवस्था वह प्रक्रिया  या तरीका है जिसकी वजह से हम सफलता की ओर ले अग्रसर होते हैं।    इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। रेस में भागने वाले सभी खिलाड़ी का एक ही लक्ष्य होता है