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कल को हम आज कैसे नष्ट कर रहें हैं।

कल को नष्ट करने के बजाय, आज को सही से जीने का समय है। आप अपने आज को बेहतर बनाएं और अपने लक्ष्यों की ओर प्रगति करें। इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं , एक उदाहरण है कि मान लीजिए आप आज से स्वस्थ जीवनशैली अपनाने का निर्णय ले सकते हैं। इसके लिए आप सुबह व्यायाम कर सकते हैं, स्वस्थ भोजन खा सकते हैं और अपने मन को शांत और प्रसन्न रखने के लिए ध्यान कर सकते हैं। इससे आपका आज बेहतर और संतुलित होगा, और आने वाले कल को भी प्रभावित करेगा। आप आज के दिन में अपने कार्यक्रमों को संगठित रूप से पूरा कर सकते हैं। अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें, समय प्रबंधन करें और अपने लक्ष्यों की दिशा में प्रगति करें। यह आपको न केवल आज को बेहतर बनाएगा, बल्कि आपके भविष्य को भी सशक्त बनाएगा। आप अपने परिवार और मित्रों के साथ समय बिता सकते हैं। उनके साथ बातचीत करना, उनका साथ लेकर कुछ मजेदार कार्यों में भाग लेना और उनके साथ साझा करना आपको आज को यादगार बना सकता है। इससे आपके संबंध मजबूत होते हैं और आपका मन भी प्रसन्न रहता है। आप आज को किसी नए कौशल का सीखने का मौका भी देख सकते हैं। यह आपके जीवन में नए दरवाजे खोल

प्रकृति तब भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी

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प्रकृति तब भी थी, जब हम मे से कोई नहीं थे। प्रकृति अभी भी हैं, जब हम सभी हैं। प्रकृति तब भी रहेगी, जब हम मे से कोई भी  नहीं होंगा। एक प्रकृति ही है जो हमेशा ही रहने वाली है। ब्रह्माण्ड में जब तक पृथ्वी अस्तित्व मे रहेगी, प्रकृति की अस्तित्व जुड़ी हुई रहेगी। प्रकृति सिर्फ़ और सिर्फ देना जानती है, लेना नहीं। बावजूद इसके, प्रकृति को सिर्फ़ हमने लूटा बहुत है।  संतुलन को हम बिगड़ रहे है। प्रकृति  संवर्धन करने के ऊपर हमने कभी ध्यान दिया ही नहीं। हमारे समाज में एक बहुत ही अच्छी कसौटी काम करती है चाहे आप किसी भी परिवेश में हो। वह कसौटी है गिव एंड टेक(Give and take) अगर आपको समाज से कुछ लेना है तो पहले आपको कुछ देना पड़ेगा। अगर आपको सिर्फ लेना आता हो और देना नहीं आता, तो रिश्ते समाप्त होने में ज्यादा टाइम नहीं लगता। गिव एंड टेक की कसौटी हमारे और प्रकृति के बीच भी  same तरीके से काम करती है। प्रकृति से हमने तो सिर्फ ले ही रहें हैं, बदले में कुछ नहीं दिया। बदले का मतलब प्राकृतिक संवर्धन के ऊपर काम नहीं कर रहे हैं जिस लेवल से काम होनी चाहिए।  विकास के नाम पर हम प्राकृतिक संसाधनों का बे

एक संदेश समाज के नाम

पेड़ लगाकर हों किसी भी कार्यक्रम का शुभ आरंभ जो प्रकृतिवादी हैं, जो अपने आपको प्रकृति पूजक कहते हैं , उनका तो प्रकृति संरक्षण में सबसे बड़ा हाथ होना चाहिए । हर पर्व - त्योहार या किसी भी कार्यक्रम का शुरूवात पेड़ लगाकर करना चाहिए। चाहे वह शादी - विवाह हो, त्योहार हो या जन्म दिन हो। इन सब मौकों का शुरूवात वृक्षारोपण के साथ करना चाहिए। क्यों कि वृक्ष ही प्रकृति का गहना होता है। शृंगार को बनाएं रखना हमारे अस्तित्व को बनाएं रखने जैसा है। तभी हम सही मायने में प्रकृति पूजक कहे जाएंगे।  अपने सुपर फूड का संवर्धन करें जिस लजीज प्राकृतिक  खान पान के कारण हमारे पूर्वज तंदुरुस्त और निरोग हुआ करते थे । आज हमें उसका स्वाद पसंद नहीं है। हमारे बच्चों ने तो उसका स्वाद चखा ही नहीं कभी और न हमने कभी बताना ज़रूरी ही समझा। जैसे कि कटाई साग, फुटकल साग, कोईनार साग, बेंग साग, चाकोड साग, और न जाने कितने ही है। फिलहाल यह हमारे मेनू से गायब है। यह आदिवासी सुपर फूड हमारे प्रति रक्षा प्रणाली को बूस्ट करने का काम करती है। यह सुपर फूड विटामिन और मिनरल्स का भंडार है। अब यह हमारी जिम्मेवारी है कि इन सुपर फूड का संवर्धन

ईश्वर के लिए सब एक हैं

चलिए आज हम प्रकृति के ऐसे यूनिवर्सल प्राकृतिक शक्ति के बारे में बात करेंगे जो ब्रह्मांड के संपूर्ण वस्तु या जीव पर विद्यमान है। यह एक ऐसी शक्ति है जिसके बूते सारा ब्रह्मांड चलता है। यही बल सारा ब्राह्मणडीय पिंडों को व्यवस्थित रखता है। हमारा मनुष्य जीवन भी इससे अछूता कतई नहीं है।  वह बल है गुरुत्वाकर्षण बल। किन्ही दो वस्तुओं के बीच लगने वाले बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं । यदि उनमे से एक पृथ्वी हो तो, ऐसी स्थिति में यह बल  गुरुत्व बल कहलाता है।  यहाँ पर इस शक्ति की व्याख्या हम गणितीय रूप मे नहीं करेंगे। मैं आपको यहां पर यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि किस तरह से प्राकृतिक शक्तियां किसी पर कोई भेद नहीं करती। चाहे वह जीव हो या निर्जीव, छोटा हो या बड़ा,अमीर हो या गरीब, विद्वान हो या मूर्ख।  चलिए इसको समझने के लिए एक प्रयोग करते हैं। इस प्रयोग को करने के लिए हम कुछ चीजों की जरूरत पड़ेगी।  1. दो किलो का एक पत्थर का टुकड़ा।  2. एक किलो का एक लकड़ी का टुकड़ा।  3. एक किलो रुई।  4. एक किलो मिट्टी ।  5. एक पानी का बोतल भरा हुआ बिना वजन के।  इन अलग अलग सामानों को पकड़ने के लिए पांच अलग अलग लोग च

अंधविश्वास।

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  अंधविश्वास क्या है।  ऐसे तर्कहीन धारणाएं, मान्यताएं या विश्वास , जिसका कोई  युक्ति संगत वैज्ञानिक आधार नहीं होता है। घटनाओं का कारण हमेशा पीछे छिपी, अदृश्य अलौकिक शक्तियों का ,हाथ होने की मनगढ़ंत, आधारहीन व्याख्या की जाती है ।  कारणों को लेकर हमेशा गलत अवधारणाएं होती हैं । अदृश्य , अलौकिक शक्तियों का अंजाना डर बना रहता है। और यह डर ,जीवन भर रहता है।  जब तक ज्ञान रूपी प्रकाश से अज्ञानता रूपी पर्दा हट नहीं जाता।  हमारे जीवन में बहुत से ऐसी घटनाएं होती है ,जिन घटनाओं के कारणों के बारे  में हमें पता नहीं होता ,और उन कारणों के पीछे अज्ञानतावस हम अदृश्य शक्ति का होना मान लेते हैं। यह मन मस्तिष्क में ऐसे बैठ जाती है जो कभी जाते हीं नहीं।  अंधविश्वास इतना प्रचलित क्यों है।  विज्ञान का काम करने का एक तरीका होता है ।किसी भी घटनाओं को वैज्ञानिक कसौटी या सिद्धांतों से सिद्ध करने के लिए अनेक प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। सबसे पहले घटनाओं को बहुत ही बारीकी से अवलोकन किया जाता है। घटना की प्रकृति को समझने की कोशिश की जाती है।  घटनाओं से रिलेटेड सभी जरूरी जानकारी इकट्ठा की जाती

आदिवासियों से दुनियां क्या सीख सकती है।

     अगर दुनिया को बचाना है तो हमें आदिवासियों की तरह प्रकृति प्रेमी होना पड़ेगा। हमें प्रकृति के साथ सह अस्तित्व की जीवन शैली अपनानी होगी। आदिवासियों का प्रकृति प्रेम जीवन के प्रारंभ से लेकर जीवनपर्यंत तक रहता है। सच मायने में अगर देखा जाए तो एक सच्चा आदिवासी एक प्रकृति विज्ञानी से कम नहीं होता। उन्हें अपने वातावरण के सम्पूर्ण पेड़ पौधों की उपयोगिता और उनकी महत्व के बारे में जानकारी जन्म से ही होती है। क्योंकि उनके पूर्वजों के द्वारा ये जानकारी उन्हें स्वता ही मिल जाती है।  पेड़-पौधे का कौन सा भाग खाया जाता है ? कौन सा भाग औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है कब खाया जाता है कैसे खाया जाता है उन्हें सब कुछ पता होता है। ऐसे ऐसे चीजों के बारे में उन्हें पता होता है जिनके बारे में लगभग पूरे दुनिया के लोगों को पता नहीं होता है। आदिवासी अपने आप में एक इंस्टीट्यूट के समान है।अपने आप में ही वे ऑटोनॉमस बॉडी है। हमें बहुत नजदीक से प्रकृति से उनके जुड़ाव को सीखने की जरूरत है।मौसमों के बदलाव का असर उनके शरीर पर बहुत कम होता है।इसको पूरा दुनिया मानती है।आदिवासी हार्ड इम्युनिटी वाले होते है। उन्हें

सुविधाएं कैसे काम करती है?

सुविधाएं उत्पादकता बढ़ाती है सुविधाएं हमारी कार्य क्षमता को बढ़ाती है। जिसके परिणाम स्वरूप प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। सुविधाएं ऐसे औजार या साधन होते हैं जो काम हम कर रहे होते हैं उस काम को बेहतर और सुंदर ढंग से कम समय में करने के लिए हमारा सहायक होता है। आधुनिक युग में हम सुविधाएं प्रदान करने वाली साधनों से गिरे हुए हैं। आधुनिक युग में हम मनुष्य का जीवन इस तरह से बदल चुका है कि सुविधाओं के बिना जीवन की कल्पना करना एकदमएकदम ही मुश्किल है। जीवन इसके बिना एकदम से रुक जाएगी। जीवन में हर वो काम जो हमें जीवित रहने के लिए करना पड़ता है उन सभी चीजों को करने के लिए साधन उपलब्ध है। सुविधाएं हम मनुष्य जीवन को चमत्कारिक रूप से बदल दिया है। सबों को सभी सुविधाएं उपलब्ध हो यह जरूरी नहीं है। सभी को सब कुछ प्राप्त नहीं है। उनके लिए एक निश्चित धनराशि जो चुकानी पड़ती है। सुविधाओं के साधन हमारे समय को काफी बचा दिया है। दिनों का काम घंटों में हो जा रहा है। और घंटों का काम मिनटों में सटीकता के साथ हो रहा है। हम मनुष्य का जीवन पूरी तरह से सुविधाओं के साधनों पर निर्भर  हो गया है। हम पूरी तरह से सुविधाओं के साधनो