आज हम भगवान बिरसा मुंडा के 122 वीं शहादत दिवस मना रहे हैं। इस अवसर पर हम उनके जीवन के कुछ प्रेरणादायी अनछुए पहलुओं को जानेंगे कि कैसे बिरसा मुंडा , हमारे धरती आबा और फिर हम आदिवासियों के भगवान कहे जाने लगे। 25 साल की जिंदगी और भगवान का दर्जा मिलना कोई छोटी बात नहीं है l
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को रांची जिले के उलीहातू गांव में हुआ था। आदिवासी रीति रिवाज के अनुसार बिरसा मुंडा का नाम बिरसा बृहस्पतिवार दिन में पैदा होने के कारण रखा गया था । उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम कर्मी था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा चाईबासा के इंग्लिश मीडियम स्कूल में हुई । आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सके ।
बचपन से ही बिरसा क्रांतिकारी विचारों के साहसी बालक थे। वे हमेशा न्याय के पक्षधर थे और न्याय के पक्ष में हमेशा खड़ा रहते थे । सच्चाई का साथ देना उनका स्वभाव था । वे बहुत बहादुर और साहसी प्रवृत्ति के थे । उनको बांसुरी बजाने का बड़ा शौक था। उन्होंने कद्दू से एक-एक तारवाला वाद्य यंत्र तूइला बनाया था। जिसे भी वे बजाया करते थे। उनका कुछ रोमांचक पल गांव के आखरा में बीता करता था।बड़ों का वे खूब आदर करते थे। बच्चों के प्रति उनके हृदय में गहरा प्रेम था ।
बड़े होने पर खेती बारी के साथ-साथ पशुओं को चराया करते थे l उस समय भी वे अपने साथियों को अच्छी-अच्छी बातें सिखाया करते थे l जैसे कि झूठ नहीं बोलना , चोरी नहीं करना l शराब पीने को पाप समझते थे l वे स्वयं मांस मछली नहीं खाते थे और दूसरों को भी खाने से मना करते थे l वे सबों को प्रेम और भाईचारे का पाठ पढ़ाया करते थे और इनका प्रचार प्रसार भी किया करते थे l आदिवासी लोग उनके गुणों से प्रभावित होकर उनका आदर करने लगे l उनके जीवन में नया मोड़ तब आया जब वे स्वामी आनंद पांडे के संपर्क में आए l कहा जाता है कि 1895 में उनके जीवन में कुछ ऐसी ऐसी आलौकिक घटनाएं घटी जिसके कारण लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे l लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाता है l जन सामान्य में बिरसा काफी प्रसिद्ध थे l उनकी बातों को सुनने के लिए काफी संख्या में लोग एकत्रित होने लगे l लोगों को एकत्रित करने की अद्भुत क्षमता थी भगवान बिरसा के पास। एक आवाज में अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई में सैकड़ों आदिवासी कूद जाते थे। बिरसा ने पुराने अंधविश्वासों का खंडन किया l लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी l उनके बातों का प्रभाव यह पड़ा कि ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी और जो ईसाई बन गए थे, वे फिर से अपने पुराने धर्म में लौटने लगे l भगवान बिरसा हमेशा लोगों को प्रकृति का हमारे जीवन में क्या महत्व है, के बारे में समझाते।
भारत के आजादी के परिपेक्ष में देखा जाए तो आदिवासी अंग्रेजो के खिलाफ जंग छेड़ने वाले देश में पहले थे। 1857 से पहले कई लड़ाइयां आदिवासी वीरों के द्वारा अंग्रेज़ो के खिलाफ लड़ी गई। लेकिन यह हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है कि इसे आजादी की पहली लड़ाई में शुमार नहीं किया गया। इसके पीछे हमेशा यह तर्क दिया जाता रहा है कि यह लड़ाइयां क्षेत्र विशेष तक ही सीमित थी। हमें गर्व होनी चाहिए की अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ने में हम आदिवासी सबसे पहले थे।
भगवान बिरसा के तीन उद्देश्य थे l
- जल जंगल जमीन जैसे संसाधनों की रक्षा करना
- नारी सशक्तिकरण और उनकी सम्मान की रक्षा करना
- समाज की संस्कृति की मर्यादा को बनाए रखना
मुंडा विद्रोह का नेतृत्व
1894 तक जैसे-जैसे अंग्रेजों का दखल आदिवासी इलाकों में पड़ने लगा , स्वतंत्रता और स्वायत्तता की खतरा महसूस होने लगी थी l अंग्रेजों के आने से पहले आदिवासी इलाकों में इनका राज था l हम आदिवासी लोग सैकड़ों सालों से जंगल जल और जमीन के सहारे खुली हवा में अपना जीवन जीते आए हैं l हम कभी भी किसी के गुलामी में नहीं रहे हैं l हम आदिवासी समाज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अन्य समुदायों की अपेक्षा अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों को लेकर ज्यादा संवेदनशील रहे हैं l अंग्रेजों ने खेती के लिए जंगलों को काटना शुरू किया और मनमाने ढंग से कर वसूलने लगे l बिरसा मुंडा ने सफेद झंडा लेकर तीर धनुष के साथ सभी आदिवासियों को एकत्रित किया और अंग्रेजों के विरुद्ध उलगुलान शुरू किया और अंग्रेजों अपने देश वापस जाओ का नारा दिया l
1895 में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके हजारीबाग केंद्रीय कारागार में 2 साल की कारावास की सजा दी गई l
बिरसा मुंडा के जल जमीन और जंगल की रक्षा के इस नेतृत्व से आदिवासी लोग इतना प्रभावित हुए और उन्हें महापुरुष का दर्जा दिया l वे धरती आबा के नाम से पुकारे जाने लगे l
1897 से लेकर 1900 के बीच आदिवासियो और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे l बिरसा और उनके चाहने वालों ने अंग्रेजों के नाक में दम कर रखा था l अगस्त 1897 में बिरसा और उनके 400 सैनिकों ने तीर कमान से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला l मजबूरन अंग्रेजों को कब्जा किए हुए जमीन को छोड़कर पीछे हटना पड़ा l 1898 मे तांगा नदी के किनारे आदिवासियों की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें अंग्रेजो को हार का मुंह देखना पड़ा l
1900 में डुमाबरी पहाड़ी पर जहां से बिरसा मुंडा ने अपने सभा का नेतृत्व किया करते थे अंग्रेजों ने गोला बारूद और तोपों के साथ में हमला किया l इस संघर्ष में बहुत से लोग मारे गए और बहुत सारे विरसा के शिष्यों की गिरफ्तारियां हुई l बिरसा मुंडा का अंग्रेजों पर इतना भय था कि उनको गिरफ्तार करने में नाकामयाब रही l अंग्रेज सरकार बिरसा मुंडा को पकड़ने के लिए ₹500 का इनाम रखा था l यह रकम अभी के समतुल्य में 50 लाख से कम नहीं है
4 फरवरी 1900 को जराइकेला के रोगतो में सात मुंडाओं ने ₹500 की लालच में आकर सोते हुए बिरसा मुंडा को खाट समेत बांधकर बंदगांव लाकर अंग्रेजों को सौंप दिया l जहां बिरसा मुंडा पर झूठा मुकदमा चलाकर जेल में डाल दिया गया l कहा जाता है कि जेल में उन्हें खाने में स्लो पॉयजन देकर मार डाला गया l और यह झूठी खबर फैलाई गई कि उनकी स्वाभाविक मृत्यु हुई ताकि आदिवासियों में रोस की भावना ना फैले l बिरसा ने अपनी अंतिम सांसे 9 जून 1900 को रांची कारागार में लीं l
भले आज भगवान बिरसा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा बताए शिक्षा सदैव हमारे बीच मौजूद रहेगा l हमारे देश में उनको समर्पित कई शिक्षण संस्थाएं , कई सरकारी इमारतें , विमानपत्तन, अंतर राज्य बस अड्डा , और कई चौक चौराहे हैं l
झारखंड राज्य का निर्माण भी भगवान बिरसा को समर्पित है l आज हम जिस CNT Act 1908 की बात करते हैं वह धरती आबा बिरसा मुंडा की देन है उनके सम्मान में 15 नवंबर को ही झारखंड स्थापना दिवस भी मनाया जाता है l सबसे गौरव की बात यह है कि वह एक अकेले आदिवासी जननायक है जिनका तस्वीर भारतीय संसद में लगा हुआ है l भारत सरकार ने भगवान बिरसा के जन्मदिवस को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के रुप में मनाए जाने की घोषणा किया है l
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