05 अक्टूबर 2022

सफलता से दो क़दम दूर

मंजिल से दो क़दम दूर

हम सबों के जीवन के किसी ना किसी मोड़ में कभी ना कभी ऐसा जरूर होता हैं कि सफलता मिलने ही वाली होती है और हम मंजिल की आस छोड़ चुके होते हैं। जबकि सफलता या मंजिल को प्राप्त करने वाले प्रोसेस या नियम का पालन बड़ी ही शिद्दत से की हुई होती है। उसमें हम अपना बहुत सारा समय और ऊर्जा लगा चुके होते हैं। मंजिल से बस कुछ ही दूरी पर थक हारकर रुक जाते हैं और बाज़ी कोई और ही मार जाता है और अपने सर पर विजय मुकुट पहन लेता है। हमें पछतावा के अलावा और कुछ नहीं मिलता।

सोने की खान सब दो फीट दूर


"सफलता से दो कदम दूर" इस शीर्षक को और ठीक से समझने के लिए मै आपको एक कहानी सुनाता हूं। 
  एक बार किसी कालखंड में एक कारोबारी होता है। वह बहुत मेहनती और साहसी था। कारोबार में रिस्क उठाने से वह पीछे नहीं हटता था। वह बहुत ज्यादा धन अर्जित करके सबसे ज्यादा धनवान बनना चाहता था। वह अमीरी पसंद व्यक्ति था। वह हमेशा कारोबार के नए मौके के ही तलाश में रहता था। उसी जानकारी मिली कि बगल वाले राज्य में सोने का खान मिला है। फिर क्या था जानकारी इकट्ठा करने में लगे गए। जानकारी पुख्ता होने पर माइनिंग करने की योजना पर काम करना प्रारंभ कर दिया। माइनिंग की परमिशन मिल जाने के बाद अपना सब कुछ बेच कर और कुछ रुपए अपने दोस्त यारों और रिश्तेदारों से उधार लेकर माइनिंग में उपयोग होने वाली माइनिंग मशीन और कुछ औजार भाड़े पर लिया और पहुंच गए माइनिंग साइट पर। खुदाई प्रारंभ करने के 10 से 15 दिन के भीतर ही सोने का एक खेप मिल गया। वह खुशी से उछल पड़ा और उसे बेचकर सारे उधार चुका दिए। खुदाई के कामों में अब पहले से और तेजी आ गई। लेकिन क्या था महीनों खुदाई करने के बाद भी सोने का एक भी कन नहीं मिला। सारा धन लगाकर खुदाई का काम फिर भी जारी रखा । लेकिन क्या था महीनों के खुदाई के बाद भी उनके हाथ अब भी कुछ नहीं लगा।  उनका सारा धन लगभग समाप्त ही हो चुका था। उनका हिम्मत अब जवाब दे चुका था। खुदाई का काम आगे जारी रखना उसके लिए पॉसिबल नहीं था। खुदाई का काम को अब रोकना ही वह सही समझा। माइनिंग की सारी मशीनों और औजारों को औने पौने दामों में  किसी कबाड़ी वाले को बेच कर घर वापस लौट गया।
यह कबाड़ी वाला बड़ा होशियार निकला। वह माइनिंग में हुई ना कामयाबी के कारणों को पता लगाने की सोची।इसके लिए उसने माइनिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह ली। माइनिंग विशेषज्ञों की एक टीम साइट पर आई और रिपोर्ट तैयार करके उस कबाड़ी वाले को सौंप दी। विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर उस कबाड़ी वाले ने माइनिंग के काम को फिर से शुरू किया। फिर क्या था खुदाई का काम मात्र 2 फीट ही हुआ था और सोने का एक बहुत बड़ा खेप कबाड़ी वाले के हाथ लग गया। कबाड़ी वाले की सोच बुझ ने उसे सबसे बड़ा धनवान इंसान बना दिया।

मंजिल से ठीक पहले रुक जाना दुर्भाग्यपूर्ण


देखा ना दोस्तों कैसे वह कारोबारी अपने मंजिल हासिल करने से ठीक 2 फीट पहले अपना काम छोड़ दिया।अगर वह थोड़ी और हिम्मत दिखाई होती तो सबसे अधिक धनवान आदमी बनता। उसकी जिंदगी में नया मोड़ आ जाता। अब उसके पास पछताने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। और कैसे वह कबाड़ी वाला अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए खनन क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह ली और किसी दूसरे का मेहनत का क्रेडिट हासिल हासिल किया।

यह कहानी सिर्फ उस कारोबारी का ही नहीं हम सब का भी है। हम अक्सर ही अपने जीवन में इस तरह के परिस्थितियों का सामना करते हैं। जहां हम थक हार कर बैठ जाते हैं। हमारे जीवन में भी सफलता से 2 फीट पहले वाली सिचुएशन जरूर आती है। जहां से हमें सफलता की स्वर्णिम रोशनी दिखाई पड़ने लगती है बस उसे पहचानने की जरूरत है। जरूरत पड़े तो किसी अनुभवी लोगों की सलाह लेने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। सफलता से दो कदम दूर एक ऐसी अवस्था है जहां हमें अपना संपूर्ण शक्ति बटोर कर आगे बढ़ना चाहिए। हमारे जीवन की यह अवस्था यह तो 1 मिनट की हो सकती है ,1 घंटे की हो सकती है, 1 दिन की हो सकती है ,1 महीने की हो सकती है।इससे ज्यादा नहीं हो सकती है जहां हम हार मान बैठते हैं। 

इनको हम इन उदाहरणों से भी समझते हैं।


मान के चलिए तेज धारा प्रवाह वाली एक नदी पार करनी है। हमें तैरना भी आता है और हममें हिम्मत भी है। नदी का वह भाग जहां ज्यादा पानी भी है और उसका प्रवाह भी तेज है उसको हम आसानी से पार कर जाते हैं।लेकिन नदी का वह हिस्सा जहां पर ना तो ज्यादा पानी है और ना ही प्रवाह ही तेज है वहां हम बह जाते हैं या यूं कहें कि डूब जाते हैं जबकि हमें नदी का किनारा भी साफ साफ दिखाई दे रहा होता है।

मान लीजिए हमें कहीं जाना है और हम बस का इंतजार कर रहे हैं। स्टॉपेज पर बस आने का नियत समय सुबह 9:00 बजे है बस छूट ना जाए यह सोचकर हम सुबह 8:30 बजे ही स्टॉपेज पर पहुंच जाते हैं। और बस का वेट करने लग जाते हैं। किसी कारणवश उस दिन बस 5 मिनट के लिए लेट हो जाता है। इससे हम परेशान होकर 5 मिनट के लिए इधर उधर चले जाते हैं। और उसी 5 मिनट में बस आप ही जाती है और चली भी जाती है और हम छूट जाते हैं।

मान लीजिए हमें किसी सरकारी दफ़्तर या किसी डॉक्टर के क्लिनिक में कोई काम है। जब हम वहां पहुंचे तो पता चला कि अमुक अधिकारी या डॉक्टर अभी आया नहीं है। हम उनका वेट करने लग जाते हैं। उनका वेट करते-करते हम थक जाते हैं और वापस चले जाते हैं। बाद में पता चलता है कि हमारे जस्ट निकलने के बाद ही वह आ गए । जल्दी बाजी के चक्कर में हमारा काम उस दिन नहीं हो पाया।

इन सभी उदाहरणों से यही बात निकालकर सामने आती है कि मंजिल तक पहुंचने से ठीक दो कदम दूर जीत की आस छोड़ देते है और इसका खामियाजा यह होता है कि इसको जिंदगी भर नहीं भूल पाते हैं। यह हमारे जिंदगी दशा और दिशा दोनों को बदल कर रख देता है।

 अगर आपके भी जीवन में इस तरह के परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है तो कमेंट में जरूरी लिखिये । यह लेख यदि आपको अच्छा लगा तो समझेंगे कि हमारा मेहनत जाया नहीं गया। इसमें कोई सुधार हो तो अपना बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें। ताकि आगे और बेहरत काम कर सकें। अगर आपको लगता है कि किसी विशेष टॉपिक पर लेख लिखा जाय तो हमें अवश्य बताएं। इसी तरह के लेख से जुड़े रहने के लिए सरना बिल्ली को अवश्य फ़ॉलो करें।


धन्यवाद।









04 अक्टूबर 2022

GOOD TOUCH BAD TOUCH

कुछ चीजें ऐसी है जिसके ऊपर कभी हमारा ध्यान गया ही नहीं।

भागदौड़ भरे इस जीवन में हमारे पास समय का बड़ा अभाव रहता है। हम अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते। काम के सिलसिले में हम अक्सर बच्चों से दूर रहते हैं । हम अपने बच्चों को जरूरत की सारी चीजें देते हैं। हम उनका लालन पालन राजकुमार या राजकुमारी की तरह करते हैं। लेकिन बच्चों को सीखाई जाने वाली कुछ जरूरी चीजें ऐसी भी होती हैं , जिसका जिक्र न तो पाठ्यक्रमों में होता है और न ही हमारे या शिक्षकों के ध्यान में ही होता है। बहुत बार हमारे ध्यान में होने के बावजूद हम संकोच या झिझक महसूस करते है। 
चलिए आज हम समझते हैं गुड और बैड टच क्या है के बारे में। यह लेख एस्पेशियली अभिभावकों, माता पिता,परिवार जनों और शिक्षकों के लिए है। क्योंकि बच्चों को क्या गलत है और क्या सही है के बारे में बताने की जिम्मेवारी इन्हीं लोगों की होती है। यही बच्चों के प्रथम शिक्षक होते हैं। 

BAD TOUCH और GOOD TOUCH क्या है
 
Bad Touch(गलत स्पर्श):- बैड टच का मतलब ऐसे गलत स्पर्श से है जो ममता से रहित हो और जो बच्चों को असहज महसूस कराए। जिस स्पर्श से बच्चों में सेंस आफ सिक्योरिटी की भावना का लोप हो। बेचैनी और घबराहट हो। इस तरह के स्पर्श को Bad Touch कहा जाता है।

Good Touch (अच्छे स्पर्श):- Good Touch ,bad touch के जस्ट उलट है। इसमें सहजता की अनुभूति होती है। मन में सेंस आफ सिक्योरिटी की भावना उत्पन्न होती है। अच्छेे स्पर्श के द्वारा हम अपने बच्चोंं के ऊपर अपने प्यार को व्यक्त करते हैं। दुलारना पुचकारना और शरीर के ऊपर हाथ फेरना जो उन्हें सुरक्षा की अनुभूति दिलाती है अच्छे स्पर्श होते हैं। माता-पिता और परिजनोंं का प्यार इसी श्रेणी मेंं आता है।

अब बात आती है हम अपने बच्चों को गुड टच और बैड टच की फर्क कैसे दिलाएं।

यह हमारे लिए बहुत बड़े जिम्मेवारी का काम है। क्योंकि बच्चे बिल्कुल अबोध होते हैं। उन्हें कुछ भी पता नहीं होता है। सबसे पहले हमें अपने बच्चों को उनके शरीर के प्रत्येक अंग बारे में बताना होगा। उन्हें यह एहसास दिलाना होगा कि यह शरीर तुम्हारा है। शरीर के प्रत्येक अंग में तुम्हारा अधिकार है। तुम्हारे अनुमति के बगैर इसे कोई छू नहीं सकता। तुम्हारे और माता-पिता के अलावा तुम्हारे शरीर को छूने का अधिकार किसी में नहीं है। 
बच्चों को उनके शरीर के प्राइवेट पार्ट्स की जानकारी अवश्य दें। विशेषकर इन प्राइवेट पार्ट को किसी को भी छूने का अधिकार नहीं है। प्राइवेट पार्ट कहे जाने वाले कुछ अंग इस तरह से हैं। जैसे कि गाल, होठ, गर्दन, छाती, गुप्तांग और बुट्टॉक आदि। जब तक बच्चों को इसके बारे में जानकारी होती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं। तो हम सब की यह मोरल रेस्पोसीबिलिटी होती है कि समय रहते ही हम इसकी जानकारी देकर उन्हें सचेत करना ।बच्चों को स्पर्श की भिन्नता को समझाएं। ताकि कुछ गलत ना हो। कुछ उपयोगी जानकारी इस तरह से हैं।

जब कोई प्राइवेट पार्ट्स को स्पर्श करता है तो क्या करें।

जब कोई प्राइवेट पार्ट्स जैसे कि गाल, होठ,गर्दन ,छाती ,गुप्तांग या बुट्टॉक को टच करता है तो जोर जोर से चिल्लाना है। चिल्लते हुए बोलना है  नो(No).....No . नहीं मतलब बिल्कुल ही नहीं। आप इस तरह से नहीं छू सकते। इस स्थिति में बच्चों को बताए की घबराना बिल्कुल भी नहीं ,हिम्मत से काम लेना चाहिए।  इस तरह की अगर घटना होती है तो समझाएं की छिपाना नहीं है। इसकी जानकारी अपने माता पिता या परिजनों को अवश्य दें।  
  • अगर कोई ग़लत तरीके से गाल या होठ को छूता या चूमता है तो जोर से चिल्लाकर मना करना है और बोलना है. नो मतलब नो बिल्कुल नहीं।
  • अगर कोई छाती में हाथ लगाता है तो जोर से मना करते हुए बोलना है                                                              नो मतलब नो बिल्कुल नहीं।
  • अगर कोई गुप्तांग या बुट्टॉक को टच करता है तो चिल्लाकर बोलना है नो मतलब नो बिल्कुल भी नहीं।

बच्चों के ऊपर इस तरह की जाने अंजाने में होने वाली यौन शोषण का विरोध करना सीखना उनके भविष्य के लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि बच्चों को कुछ भी पता नहीं चलता। बच्चों में इस तरह की घटना को लेकर सेंस ही डिवेलप नहीं हुआ होता है। उन्हें पता ही नहीं होता कि उनके साथ क्या हो रहा है या क्या हुआ है। 

कुछ और भी जरूरी बातें हैं जिन्हें हमारे बच्चों को सिखाने की जरूरत है।

  • बच्चों को यह सिखाना है कि यदि कोई अनजान व्यक्ति उन्हें कुछ खाने को देता है तो मना करना है।
  • अनजान व्यक्तियों से ज्यादा घुलना मिलना नहीं है।
  • बच्चों को गलत चीजों के प्रति विरोध करना सिखाना है।
  • यदि कोई बच्चों को गलत टच करता है और उन्हें डरा कर या खाने पीने की चीज देकर उन्हें यह बोलता है कि इसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताना है। बच्चों को अवश्य बताएं कि इन सब चीजों को छिपाना नहीं बल्कि अपने मम्मी पापा या अभिभावकों को बताना जरूरी है।
  • बच्चों में अनजान लोगों को परखने की समझ विकसित करें।
यहां पर अभिभावकों की सबसे बड़ी जिम्मेवारी बनती है कि वे अपने बच्चों को हमेशा अपने सुपर विज़न में रखें। यह अवश्य नजर रखें कि कौन-कौन है जो बच्चों के नजदीक है या आने की कोशिश करता है। बच्चों को लेकर हमेशा हमें अवेयर रहने की जरूरत है। जहां तक हो सके बच्चों को कभी भी अनजान लोगों के देखरेख में ना रखें। क्योंकि अबोध अवस्था में ही बच्चों के साथ चाहे किसी भी रूप में हो, यौन शोषण हो चुका होता है। ये ऐसी यौन शोषण है जो कभी भी प्रकाश में नहीं आ पाता। बैड टच भी एक तरह का यौन शोषण का ही रूप है। इस तरह की घटनाएं अभी के समय में धड़ल्ले से बढ़ रहा है। इस तरह की घटनाएं हमेशा देखने सुनने को मिल रही है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 90% तक की इस तरह की घटनाएं बच्चों के ऊपर उनके परिजनों के द्वारा ही की जाती है। हमेशा सचेत रहें और अपने बच्चों को भी aware रखें।

अगर यह लेख उपयोगी लगी है तो कमेंट में जरूर लिखें ।अगर कोई सुधार की संभावना है तो अपने कीमती सुझाव अवश्य दें। सामाजिक मुद्दों की जानकारी के लिए हमेशा सरना बिल्ली से जुड़े रहे।

धन्यवाद।



15 अगस्त 2022

अभी नहीं तो फिर कभी नहीं

लाखों करोड़ों साल से इस पृथ्वी पर मानव निवास करता आ रहा है। तब से लेकर आज तक मनुष्य, जरूरत की चीजों का इजात करता रहा है। जीवन जीने की तौर-तरीकों में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसका केवल और केवल एक ही कारण है, और वह कारण है, अपने अस्तित्व को कायम रखते हुए जीवन जीने की आवश्यकता की पूर्ति हेतु निरंतरता के साथ बौद्धिक शक्ति का इस्तेमाल करना और आने वाले पीढ़ियों तक पहुंचाना (upcoming generation)। क्योंकि आज तक जो कुछ भी हमने सीखा है ,पूर्वर्ती (ancestors) लोगों को देखकर ही सीखा और उनके द्वारा अर्जित ज्ञान को आधार बनाकर कुछ नया करने की कोशिश करते हैं। तब से लेकर आज तक यही प्रक्रिया लगातार चलती ही आ रही है। किसी भी काम विशेष को निरंतरता के साथ करते रहने पर कार्यकुशलता (work Efficiency) के साथ  परिपक्वता (Maturity) बढ़ती हैं। दुनियां में हर रोज कुछ ना कुछ नया होता है जो पहले कभी नहीं हुआ । इस बदलाव का असर हम सभी पर पड़ता है। 

 हमारे जीवन को सरल बनाने में सबसे ज्यादा अगर किसी का योगदान है तो वह हैं वैज्ञानिकों (sciencetist) का। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जिस पर वैज्ञानिकों ने काम नहीं की हों। हर वो भौतिक चीजों को बनाकर वैज्ञानिकों ने हमें दी हैं जो हमारे जीवन को सरल और सुगम बनता हैं। वैज्ञानिकों ने पूरे दुनिया को एक ग्लोबल विलेज में बदल दिया है। हम कभी भी ,किसी से भी , कहीं से भी देख सुन और बातचीत कर सकते हैं। हमने भौतिक दूरियों पर विजय प्राप्त कर लिया है।हमारे पास यातायात की अनेकों साधन उपलब्ध हैं। आज हम अंतरिक्ष तक पहुंच चुके हैं। दुनियां का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा जिसको मनुष्य ने एक्सप्लोर ना किया हो। मनुष्य ने अधिकतम ऊंचाई और अधिकतम गहराई दोनों को फतेह कर लिया है। 
कृषि के क्षेत्र में अगर हम बात करें तो पाएंगे की अभी के समय में हमारे पास अत्याधुनिक कृषि उपकरण मौजूद है। घंटों का काम को हम मिनटों में कर दे रहे हैं। सिंचाई के लिए हमारे पास अत्याधुनिक इरिगेशन सिस्टम है। हमारे पास उन्नत बीज और खाद उपलब्ध है। इन सब चीजों ने कृषि उत्पादकता को कई गुना बढ़ा दिया है।

अगर हम खबरों की बात करें तो देश दुनिया की खबर हम घर बैठे ही देख सकते हैं। देश दुनिया में घट रही घटनाओं से हम रूबरू हो सकते हैं। सोशल मीडिया नेटवर्क हमें न्यूज को न्यूज एजेंसियों से भी पहले दे देती हैं।
इंटरटेनमेंट के लिए सैकड़ों टीवी चैनल हमारे पास उपलब्ध है। खेल की सारी चैनल हमारे पास उपलब्ध है। मूवी देखने के लिए आज हमें कहीं और जाने की जरूरत नहीं होती। Entertainment की सारी सुविधाएं आज हमारे घर में ही उपलब्ध है।

चिकित्सा क्षेत्र में आज हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं। हमारे पास चिकित्सीय जांच करने के लिए ऐसे ऐसे उन्नत चिकित्सीय यंत्र है जिसकी कार्यप्रणालियां किसी चमत्कार से कम नहीं है। हमारे पास सैकड़ों असाध्य मर्ज की दवा उपलब्ध है।
अगर हम बात करें शिक्षा की तो शिक्षा प्राप्त करने की सैकड़ों वर्चुअल प्लेटफार्म उपलब्ध है। सभी विषयों के जानकार ऑनलाइन उपलब्ध है। हमें किसी गुरु के पास जाने की जरूरत भी नहीं है। एजुकेशन की सभी जानकारियां इंटरनेट पर उपलब्ध है। बस हमें सर्चिंग आना चाहिए। अभी के समय में पढ़ाई लिखाई से संबंधित कोई भी टॉपिक अनसोल्वड नहीं है। सभी टॉपिक्स की विस्तृत जानकारियां उपलब्ध है। अगर हमें किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त करनी हो हर तरह की जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है। अभी के समय में स्मार्टफोन किसी यूनिवर्सिटी से कम नहीं हैं।

अभी के समय में घर बनाने की उन्नत से उन्नत तकनीकियां हमारे पास उपलब्ध है। जिसकी मदद से हम आलीशान घर बना सकते हैं। 

घर में उपयोग होने वाले ऐसे ऐसे उपकरण है जो हमें  गर्मी में शीतलता का एहसास दिलाती है और कड़ाके की ठंड में गर्मी का एहसास दिलाती है। काली अंधेरी रात को चीरने वाली प्रकाश है हमारे पास। सोने के लिए मखमली बिस्तर है। खाना पकाने के लिए इलेक्ट्रिक स्टोव और एलपीजी गैस उपलब्ध है।

इन सब उदाहरणों के द्वारा मैं यह कहना चाहता हूं कि अभी के समय में मनुष्य जाति का जीवन कितना सरल हो गया है। रोजमर्रा के कामों को करने के लिए हमारे पास सभी उपयोगी चीजें हैं। मनुष्य पृथ्वी पर अभी जिस कालखंड में रह रहा है वह गोल्डन एरा है। पृथ्वी पर इस तरह की स्थितियां कभी नहीं रही। देश में शासन संविधान के आधार पर चलता है। वृहद स्तर की लड़ाइयां अब नहीं होती। लड़ाइयों के दुष्परिणाम क्या होते हैं सभी को पता है। सभी इनसे बचना चाहते हैं। देश चलाने के लिए सभी देशों की अपनी-अपनी संविधान है। संविधान के दृष्टि से सभी मनुष्य एक समान है। सविधान सभी को समानता का अधिकार देती है। संविधान के द्वारा किसी को भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। पहले के समय में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थिति थी। संविधान सभी को प्रतिनिधित्व का मौका देता है। संविधान के बाहर कोई भी चीज नहीं होती। सविधान की व्यवस्था को बनाए रखने में ही संपूर्ण सिस्टम काम करती है। 

इतनी सारी सुविधाओं के बारे में यहां जो हमने चर्चा की। क्या निम्न स्तर के लोगों तक यह सभी चीजें पहुंच पाई है। क्या उन्हें इन सभी चीजों के बारे में जानकारी भी है। अगर नहीं है तो क्या कारण है। इसका जिम्मेदार कौन है। यह सभी चीजें निम्न तबके के लोगों के लिए किसी विलासिता से कम नहीं है।
इसका केवल और केवल एक ही कारण है और वह है गरीबी और अशिक्षा। जागरूकता की कमी। हमें अपनी स्थिति के लिए किसी दूसरे को दोष नहीं दे सकते। इसका जिम्मेवार हम खुद होते हैं। अपनी स्थिति को सुधारने के लिए अभी के समय में हमारे पास अभी चीजें उपलब्ध है। हमें उसका उपयोग करना होगा। काम करने के परंपरागत तौर तरीके को बदलना होगा। हमें ऑटोमेशन का उपयोग करना होगा। हमें शिक्षा पर ध्यान देना होगा। अगर जीवन जीने की उपयोगी स्किल सीखना हो तो सभी चीजें इंटरनेट में उपलब्ध है। बस हमें सीखने की ललक होनी चाहिए। कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। 

अभी के समय में अगर आप कुछ करना चाहते हैं और कुछ हासिल करना चाहते हैं तो उस मंजिल को हासिल करने में आपको कोई नहीं रोक सकता। कुछ नहीं करके हम समय को अपना दुश्मन बना लेते हैं। अभी के समय में करने को काम की कोई कमी नहीं है। और किसी भी काम को करने के लिए एक से बढ़कर एक हमारे काम को आसान कर देने वाली साधन उपलब्ध है। किसी भी चीज की जानकारी या स्किल्ड होने के लिए और इस स्किल को बताने वाले गुरुओं की कोई कमी नहीं है। हमें यह नहीं आता, यह हम से नहीं होगा, इस तरह की अनेकों बहाना लिए फिरते हैं। दरिद्रता अभाव और अशिक्षा का सबसे बड़ा कारण अगर कोई है तो वह खुद हम हैं। खुद हम अपने आपका दुश्मन बन बैठे हैं। अगर हमारे पास किसी चीज की कमी है तो यह कमी हमें यह बताती है कि हमें उस कमी को पूरा करने के लिए काम करना चाहिए। उसके बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहिए। और यथोचित काम करना चाहिए।

अभी के समय में हर चीज की जानकारी वेब में तैर रही है। जानकारी की भाषा की बाध्यता तो अब रही ही नहीं। हर तरह की जानकारी जनसामान्य की भाषा में उपलब्ध है। सिर्फ हमें यह डिसाइड करना है कि हमें चाहिए क्या। हमें वेब सर्चिंग करने का तरीका आना चाहिए। इसके लिए हमें टेक्निकली अवेयर होने की जरूरत है। इंटरनेट में हमें अपनी ही जरूरत की चीजों को खोजना आना चाहिए। इंटरनेट में हम 1 दिन में घंटों समय बिता देते हैं लेकिन अपने काम की कोई भी चीज नहीं सीखते या कहें कि हम सीखना ही नहीं चाहते। इंटरनेट में जानकारियों का अंबार है। अभी के समय के जैसा पहले कभी नहीं था। यहां पर सब उनके लिए एक ही प्रकार का जानकारी उपलब्ध है। उन जानकारियों को हासिल करने के लिए कोई आप को रोकता नहीं है और रोकेगा भी नहीं। फिर भी हम अपने आप को गुणवत्तापूर्ण या अपने स्किल को ठीक नहीं करते। ऐसे ही समय को फालतू की चीजों में बर्बाद करते रहते हैं।


इस लेख को लिखने का मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य था कि अगर आपको कोई भी चीज सीखने की ललक है तो उसे सीखने में आपको कोई नहीं रोक सकता और उस चीज से संबंधित सभी जानकारियां हमारे पास उपलब्ध है। इतनी सारी साधनों और जानकारियों के रहते हुए भी अगर हमने कुछ नहीं सीखा तो हम अपने आप के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इसीलिए मैं लास्ट में कहना चाहूंगा अगर अभी नहीं हुआ तो फिर कभी नहीं होगा।

धन्यवाद।

यह लेख आपको कैसी लगी ,कॉमेंट में जरूर लिखेगा। अगर कोई सुधार की जरूरत है तो अवश्य अवगत कराइए। और साथ में इसी तरह के लेख के साथ जुड़े रहने के लिए हमें Sarna Billie को फॉलो अवश्य करें।





ऐसी होती हैं समस्याओं का multiplication

समस्याओं को नजरअंदाज करने और समस्याओं का हल नहीं ढूंढने से समस्याएं नासूर बन जाती है। Unsolved समस्याएं कई समस्याओं को जन्म देती है। समय के साथ समस्याएं और भी विकराल रूपधारण कर लेती हैं। समय के साथ समस्याओं का हल नहीं होने पर कई गुना दुष्कर हो जाता है। समस्याओं को नासूर बनने से पहले ही जड़ सहित समाप्त  कर देना ही समझदारी है। समस्याओं को हल कर देने के बाद नई समस्याएं उत्पन्न होने से पहले ही समाप्त हो जाती है। वैसे अगर बात किया जाए तो मनुष्य के जीवन ही समस्याओं का अंबार है। लेकिन जीवन में वही मनुष्य सफल हो पाता है जिन्होंने समस्याओं को हल करने का तरीका सीख लिया हो। मनुष्य जीवन में लगभग सभी लोगों का समस्याएं एक सी होती है। सेम समस्याओं को हल करने का तरीका  अलग-अलग लोगों का अलग अलग होता है। बहुत से ऐसे मनुष्य होते हैं जिन्हें अपने जीवन की बेसिक समस्याओं को हल करने में ही जिंदगी निकल जाती है।

इस लेख में हम बात करेंगे कि कैसे unsolved समस्याओं का मल्टीप्लिकेशन होता है। हमारे जीवन की पच्चीस छब्बीस साल तक का उम्र बेसिक पढ़ाई लिखाई करने की होती है। आने वाला समय हमारा कैसा होगा यह इन्हीं वर्षों में डिसाइड हो जाता है। जीवन के इस दौर में अगर हमने ठीक ढंग से पढ़ाई नहीं की या स्किल्ड नहीं हुए तो इसका खामियाजा ता उम्र झेलनी पड़ेगी। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का अभाव या स्किल की कमी की वज़ह से अच्छी सैलरी वाला नौकरी या काम नहीं मिलेगी। ज्यादातर मामलों में लोग बेरोजगार ही रहते हैं। पैसे की कमी के चलते हम अपने बेसिक जरूरतों को भी पूरा करने में असमर्थ होने लगते हैं। हमारे जीवन स्तर का ग्राफ नीचे और भी नीचे गिरने लगता है। शादी के बाद भी मैरिज लाइफ में भी इसका असर दिखने लगता है। गरीबी के कारण खान पान भी ठीक से नहीं हो पाती है। जब अभिभावकों के शरीर में पौष्टिकता की कमी होगी तो उत्पन्न बच्चा भी कमजोर होगा। गरीबी के कारण बचपन से ही बच्चे को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाएगा। बच्चे कमजोर होंगे बौद्धिक विकास भी ठीक से नहीं हो पाएगा। धन अभाव के कारण बच्चे का शिक्षा दीक्षा भी अच्छे स्कूलों में नहीं हो पाएगी। जब शिक्षा-दीक्षा अच्छे स्कूलों में नहीं होगी तो उनको नौकरी भी कम सैलरी वाला मिलेगी। 
इसी तरह से हम और एक उदाहरण की बात करते हैं। किस उदाहरण में हम अपने शरीर के स्वास्थ्य के बारे में बात करेंगे। मान लीजिए  जीवन के किसी पड़ाव में यह पता चला कि हमें रक्तचाप की शिकायत है। वैसे तो रक्तचाप एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई परमानेंट हल नहीं है। लेकिन इसे संयमित जीवन चर्या के साथ पूरी तरह से कंट्रोल में रखा जा सकता है।  मान लीजिए बीमारी रूपी की समस्या को हल्के में ले लिया। उच्च रक्तचाप से संबंधित रिस्ट्रिक्टेड डाइट चार्ट को फॉलो नहीं किया। शारीरिक एक्सरसाइज पर ध्यान नहीं दिया। ऑयली चीजों को खाने से नहीं बचे। नियमित रक्तचाप की जांच नहीं कराई। रक्षा से संबंधित ब्लड टेस्ट नहीं कराए। तो होगा क्या कि रक्तचाप का असर हमारे किडनी पर पड़ेगा और किडनी की कार्य क्षमता धीरे-धीरे घटने लगेगी। इसका असर धीरे-धीरे हमारे लीवर पर पड़ेगा। लीवर का एंजाइम बढ़ने लगेगा। हमारा ब्लड शुगर  लेवल भी अप होने होगा। इसका असर हमारे आंखों के विजन पर पड़ेगा। हमारे शरीर के जितने भी मेजर ऑर्गन है वह प्रभावित होना स्टार्ट हो जाएगा। देखते ही देखते मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर का शिकायत उत्पन्न होगी। इसके बाद क्या होगा इसका अंजाम यह हम सबको पता ही है। मूल कारण एक थी लेकिन मूल कारण को नजरअंदाज करने से उससे संबंधित कितनी समस्याएं उत्पन्न हो गई।

इसी तरह हमारे समाज में भी कई ऐसी बेसिक समस्याएं हैं जिसको हमने हमेशा से नजरअंदाज करते आए हैं। अगर हम बात करें नशा पान की , तो नशा पान के कारण कई समस्याएं उत्पन्न होती है, जिसको कि हम रोक सकते थे। परिवारों में हमेशा कलह होती ही रहती है। आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। जीवन का स्तर बदतर हो जाता है। सामाजिक प्रतिष्ठा का ह्रास होता है। शारीरिक रूप से हम कमजोर होने लगते हैं। हमारे क्रिएटिविटी और प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है। देखिए यहां पर एक समस्या ने कितने समस्याओं को जन्म दे दिया।
अंधविश्वास भी एक ऐसी समस्या है जो अनेक समस्याओं की जनक है। अंधविश्वास हमें कभी भी सच्चाई क्या है वहां तक पहुंचने नहीं देती। अंधविश्वास हमें सच्चाई से कोसों दूर रखती है। अंधविश्वास सकारात्मक तर्कशक्ति को समाप्त कर देती है। अंधविश्वास  हमारे आंखों के सामने झूठ का पर्दा डाला हुआ रहता है। अंधविश्वास हमें मानसिक रूप से वैचारिक बीमार बना देती है। अंधविश्वास नई चीजों की खोज के रास्ता को बंद कर देता है। अंधविश्वास में हम तथ्यों का  कुतर्कय विश्लेषण करते हैं। सच्चाई से कोसों दूर हो जाते हैं। सच कहा जाए तो सच्चाई को जाना ही नहीं चाहते। अंधविश्वास हमारे लॉजिकल तर्कशक्ति को खत्म कर देती है। 
अशिक्षा और गरीबी हमारे समाज के सभी समस्याओं का जनक है। अशिक्षा है तो गरीबी है। गरीबी अशिक्षा को बढ़ावा देती है। धन अभाव के कारण गरीब व्यक्ति खाना-पीना में ,पढ़ाई लिखाई में, रहन-सहन में, यात्रा में, घर परिवार में जीवन स्तर को सुधारने में, पहनावे में उतना पैसा खर्च नहीं कर सकता जितना खर्च करना चाहिए। ज्यादातर मामलों में गरीबी से उबर नहीं पाते हैं। और गरीबी के जंजाल में फंसते चले जाते हैं।

वर्तमान समय में यदि इलेक्ट्रिसिटी ना हो तो किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मनुष्य का जीवन एकदम से थम सा जाएगा।इसके बिना डिजिटल लाइफ कि जो हम बात करते हैं कल्पना के परे। यहां गौर करने वाली बात यह है की एक चीज का ना होना कितनी समस्याओं को पैदा कर सकती है।
यहां पर इलेक्ट्रिसिटी का उदाहरण देने का मात्र एक ही उद्देश्य है और आपको यह बताना है कि किस तरह किसी एक चीज के नहीं होने से उनसे जुड़ी हुई सारी चीजें प्रभावित होती हैं।

हम सब के जीवन में कोई ना कोई ऐसी समस्याएं जरूर होती हैं जो हमारे समस्त जीवन के कामों को तो वही करती है। सभी समस्याओं का मूल वहीं पर अटका हुआ होता है। और ऐसा बात बिल्कुल भी नहीं है कि हमें उस समस्या के बारे में विदित नहीं है। अभी सब कुछ पता होते हुए भी हम कुछ नहीं कर सकते। हम सबके जीवन में ,हम सभी की यह परम कर्तव्य बन जाता है कि उस समस्या का फंड आउट करें और यथासंभव उस समस्या को हल करने की कोशिश करें।

जिस तरह से अनसोल्ड समस्या हमारे जीवन को प्रभावित करती है उससे भी कहीं ज्यादा समस्या को हल करने के बाद हमारे जीवन में परिवर्तनों का प्रकाश उदय होता है। उन से जुड़े कई एक अच्छे काम अपने आप शुरू हो जाते हैं। प्रगति की सभी दिशाएं खुल जाती है। इसीलिए हमें जीवन के हर एक मोड़ पर समस्याओं को निर्मूल करने के बारे में ही विचार विमर्श करते रहना चाहिए।

हम सबके जीवन में स्मार्टफोन का क्या अहमियत है हम सभी को पता है। इसके बिना जीवन की सुगमता एकदम से कठिन हो जाएगी। इसके ना होने मात्र से हमारे कितने ही काम प्रभावित होंगे।

इन उदाहरणों  से हम समझ सकते हैं कि अगर मूल समस्या को उचित समय में हल नहीं करने से समस्याएं कितनी गुनी बढ़ जाती है। बेसिक समस्या ही समस्याओं को जन्म देती है। समस्याओं का मल्टीप्लिकेशन हो जाता है। समस्याओं का मल्टीप्लिकेशन होने से पहले ही उसका हल किया जाना चाहिए। तभी जीवन में सार्थकता और सुगमता आएगी।

17 जुलाई 2022

सामाजिक पिछड़ेपन के कारण

पढ़ाई का बीच में छूट जाना



आदिवासी समाज चूंकि हमेशा से ही पढ़ाई लिखाई से वंचित रहा हैै। शायद इसीलिए समाज में कभी शैक्षणिक माहौल नहीं बन पाया। श्रम प्रधान समाज होने के कारण शारीरिक परिश्रम करके जीवन यापन को तवाज्जू दी गई। जैसे कि खेती करना, मजूरी करना, भार ढोना आदि। हर वो काम जिसमें ज्यादा बल की जरूरत होती हैं। आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण अच्छे स्कूलों को अफोर्ड नहीं कर सकते। आदिवासी समाज के मैक्सिमम बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में करा दी जाती है। सरकारी स्कूलों का पढ़ाई का स्तर क्या है हम सभी को पता है। इसमें किसकी गलती है उसमें नहीं जाना चाहता। चुकीं हम पढ़ाई में खर्च नहीं करते , इसीलिए इसकी शुद्धि भी नहीं लेते। हमने तो बच्चे का एडमिशन करा करके अपने जिम्मेवारी से मुक्ति पा लिया। बच्चे का पढ़ाई लिखाई कैसे चल रही है इसका खबर भी नहीं लेते।  समय के साथ जरूरतें भी बढ़ती है। शारीरिक श्रम करके एक अकेला या परिवार उतना नहीं कमा पाता। ज्यादा कमाने के लिए ज्यादा संख्या और ज्यादा शारीरिक बल की आवश्यकता होती हैं। फिर क्या बच्चे भी श्रम कार्य में उतर जाते हैं। और फिर बाहर के प्रदेशों में श्रम कार्य करने चले जाते हैं। जब तक समझ में आएं तब तक धीरे धीरे बच्चे का स्कूल छुट चुका होता है। दशवी कक्षा तक आधे से ज्यादा बच्चे स्कूल ड्रॉपआउट होते हैं। बारहवीं कक्षा तक तो सिर्फ 10-12% हीं पहुंच पाते हैं। ग्रेजुएशन तो 1% से भी कम लोग कर पाते हैं।और इसके ऊपर की पढ़ाई के बारे में क्या बोलें।

टेक्निकल नॉलेज पर ध्यान नहीं देना

मैं आपको पहले ही बता चुका हूं कि आदिवासी समाज एक श्रम प्रधान समाज है। आदिवासी समाज टेक्निकल नॉलेज के मामले में बहुत पीछे हैं।  वैसे काम जिसमें थोड़ा टेक्निकल नॉलेज की जरूरत पड़ती है करना नहीं करते। बहुत से ऐसे आदिवासी युवक हैं जिन्होंने  टेक्निकल संस्थानों से टेक्निकल नॉलेज ले रखी है, लेकिन उस नॉलेज को अर्थोपार्जन में उपयोग नहीं करते। अभी के समय में एक क्लिक मात्र से दुनिया की सारी उपयोगी जानकारी हमारे सामने होती हैं।अगर हम स्मार्ट फोन का सही उपयोग करके सीखना चाहें तो सब कुछ सीख सकते हैं। सीखने की कोई उम्र तो होती नहीं। कॉम्प्लिकेटेड मशीनों को देखकर घबरा जाते हैं। सारी मशीनें इंस्ट्रक्शन से चलती है बस उसे हमें फॉलो करना होता है।भाषा बैरियर का बात तो अभी है ही नहीं। हम छोटी से छोटी जानकारी के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं।कोई भी काम करने से पहले टेक्निकल नॉलेज का अभाव होता हैं।बड़ी आस की नजरों से इस उम्मीद में रहते हैं कि कोई हमें बताएं या मदद कर दें। आज से ही हमें टेक्निकली स्मार्ट बनने की दिशा में काम करना शुरू कर देना चाहिए। क्या आप टेक्निकली स्मार्ट हैं। बताइएगा जरूर।

सामाजिक नशाखोरी


सामाजिक नशाखोरी सामाजिक पिछड़ेपन के सबसे बड़े कारणों में से एक हैं।  का एक बड़ा हिस्सा नशापान के गिरफ्त में हैं। बच्चे,जवान, बूढ़े सभी नशाखोरी में संलिप्त हैं। लगातार नशापान के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। कमजोर स्वास्थ्य के कारण अपने कामों में कन्सन्ट्रेट नहीं कर पाते। समुच्चय में समाज के प्रोडक्टिविटी में इसका असर पड़ता है।  आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण समाज की दरिद्रता बढ़ती हैं। 

सीखने की ललक का अभाव


सीखने की कोई उम्र नहीं होती।कहीं भी, कभी भी, किसी से भी, काम की चीजों की जानकारी सीखी जा सकती हैं। जरूरत पड़ने पर उम्मीद भरी नज़रों से दूसरे की आश लगाए रहते हैं कि कोई हमारी मदद कर दें। बहुत बार छोटी से छोटी चीजों को कराने के लिए pay करना पड़ता है।
देखा ये जाता है कि जब हमारी पढ़ाई पूरी हो जाती है या किसी कारणवश छुट जाती हैं। उसी दिन से हम सीखना छोड़ देते हैं। लिखाई पढ़ाई से हमारा वास्ता खत्म हो जाता है। जब हम जीविका उपार्जन के कामों में लग जाते हैं। उन्हीं सब कामों को ज्यादा तबज्जु देते हैं या करना पसंद करते हैं जिसको कि हम अपने बाप दादाओं को करते हुए देखा होता है। कोई नया काम सीखना नहीं चाहते। काम के बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जिन क्षेत्रों में हमारे लोगों का अभी तक कदम भी नहीं पड़ा है।हम अपने कंफर्ट जॉन से बाहर निकलकर कोई नया काम नहीं करते।
कहा जाता है ना कि कोई भी काम छोटा नहीं होता हैं। इसमें बहुत बड़ी कहानी छुपी हुई होती हैं। हम छोटी काम को भी बड़ी बना सकते हैं। काम से संबंधित नित्य नई अपडेट सीखते रहना पड़ेगा। नई नई टेक्नोलॉजी का उपयोग करना पड़ेगा।मान लीजिए हम खेती ही करते है तो हमे ज्यादा पैदावार और ज्यादा आमदनी के लिए परंपरागत तरीका छोड़कर खेती करने की आधुनिक तरीकों को अपना पड़ेगा। हम अपना काम करने के लिए आधुनिक तरीकों का उपयोग नहीं करते। साफ कहें तो हम सीखना ही नहीं चाहते और परम्परागत तरीकों पर हीं अटके रहते हैं।

हमेशा अपने आपको कमतर आंकते हैं


चाहे हम किसी भी विषय विशेष पर या किसी भी काम विशेष पर पारंगत हासिल किया हो।किसी दूसरे का बात सुनकर अपने आपको बौना या कम निपुण महसूस करते हैं। सामने वाला हमसे कम नॉलेज वाला ही क्यों ना हो। उसी को ज्ञानी या काबिल समझते हैं। और अपना कॉन्फिडेंस लेवल खो देते हैं। हमारी चेहरे की तेज कम पड़ जाती हैं। हम अपने बातों को जनसभाओं में या लोगों के सामने उस तरीके से रख नहीं पाते जिस तरीके से हम सोचते हैं। या कहें कि अपने आपको जोरदार तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पाते। अपना लोहा नहीं मनवा पाते। हमारी बातों को सुनकर लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे। इसी उधेड़ बुन में फसे रहा जाते हैं और लोग आगे निकल जाते हैं। क्या आप भी यही सोचते हैं क्या ? बताइएगा ज़रूर।

पैट्रिक संपति पर इतराना


पैट्रिक संपति पर नाज़ होना भी चाहिए। क्योंकि यह हमें आशीर्वाद स्वरूप अपने बाप दादाओं से मिली हुई होती हैं।इसका संरक्षण करना चाहिए और इसमें इज़ाफ़
 भी करते रहना चाहिए। हम में से ज्यादातर लोग पढ़ाई ठीक से ध्यान देकर नहीं करते। पढ़ाई में जुनूनी ललक नहीं दिखते। बहुत ही पूअर परफॉर्मेंस होता हैं।  मौज मस्ती और पीने खाने में लगे रहते हैं। पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। कोई भी नई काम को ध्यान लगाकर नहीं सीख पाते।पढ़ाई के साथ सीख कर निपुणता हासिल नहीं कर पाते। हमारे लोगों में सबसे बड़ी भयानक सोच यह है कि पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए या किसी कार्य विशेष को सीख नहीं पाए तो कोई बात नहीं बाप दादाओं का ज़मीन तो है ही हमारे पास।उसी में खटकर/कमाकर खायेंगे। जरूरत पड़ी तो मजदूरी भी करेगें और बाहर प्रदेशों में कमाने भी जाएंगे। यह सोच हमारे समाज को पीछे और बहुत पीछे खींचकर ले जाता हैं। इस बात में कितनी सच्चाई है हमें जरूर बताएं।

सीखने में खर्च नहीं करते


दुनियां में सीखने के लिए बहुत कुछ हैं। दुनियां में काम की कोई कमी नहीं हैं। सीखाने वालों की भी कमी नहीं हैं। बसरते सीखने की ललक तो हों। हमें सब कुछ पता होता है लेकिन करना ही नहीं चाहते। बहुत सी जरूरत की चीजें ऐसी होती हैं जिसको सीखने के लिए बहुत ही कम पैसों और समय की जरूरत होती हैं। अपनी वैल्यू बढ़ाने के लिए अपने उपर खर्च करने से बचते हैं। बहुत मामलों में हमारे पास पैसों की कोई कमी भी नहीं होती। बेकार के कामों में पैसा उड़ा देंगे पर अपनी गुणवत्ता नहीं बढ़ाएंगे। क्या ये बात सही हैं?

लड़की बच्ची के पढ़ाई पर ध्यान नहीं देना


 वैसे तो हमारे समाज में लड़का लड़की में कोई भेदभाव नहीं किया जाता। परिवार में दोनों का दर्जा एक समान हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि जब पढ़ाई में खर्चे की बात आती हैं तो हम में से ज्यादातर घरों में लड़कियों को लेकर हमारी हाथ थोड़ा तंग हो जाती हैं। हम लड़कों के पढ़ाई में दिल खोलकर खर्च करते हैं और उन्हें अच्छे स्कूलों में भेजते हैं और लड़कियों को सरकारी या कम खर्च वाली स्कूलों में। लेकिन सभी माता पिता इस सोच के नहीं होते ।अंदरूनी दलील यह होती है कि लड़की को तो शादी करके दुसरे के ही घर जाना है। इस तरह की सोच हमारे समाज को पीछे ले जाता है। लड़कियों को हम पढ़ाई में पूर्ण मौका नहीं देते। 
लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि पढ़ाई में लड़की की अच्छी होती है। हम यह भूल जाते हैं की एक अच्छी पढ़ी लिखी मां ही एक अच्छा परिवार का निर्माण कर सकती है। जहां बात मम्मी पापा के सेवा की है तो इस मामले में लड़कियां लड़कों से बेहतर है। इस बात में कितनी सच्चाई है बताइएगा जरूर।

समाज का बुद्धिजीवी वर्ग


हमारे समाज में एक भी वर्ग ऐसा है जो well educated, well settled, ब्यूरोक्रेट्स, लीडर,विचारक, अच्छे कारोबारी और नौकरी करने वाले हैं। इनमे से ज्यादातर लोग अलग ही status maintain किए हुए हैं। इनलोगों के पास बड़ी ही अच्छी समझ होती हैं।  समाज के सभी विसंगतियों के बारे में इनको पता होता है। अगर ये सभी अपने जीवन के व्यस्ततम समय में से जब कभी भी possible हो, थोड़ी सी समय समाज के लिए , अपनी सोशल रिस्पांसिबिलिटी को समझते हुए सुधार की पहल करेंगे या समाज के लोगों के बीच अच्छे जानकारी देंगे तो हमारा समाज एक दिन में तो नहीं लेकिन  एक दिन जरूर बदलेगा। और ऐसा भी नहीं कि समाज के ये अग्रिम लोग समाज हित में काम नहीं कर रहे हैं। लेकिन बड़ा परिवर्तन के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत हैं।

समाज के पिछड़ेपन का कारण हम ख़ुद हैं


समाज के backwardness के सबसे बड़े कारणों में से हम खुद हैं।अगर हम बेरोजगार हैं या हमारे पास करने को कोई काम नहीं है तो इसके लिए हम किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते। काम करने को तो बहुत कुछ हैं लेकिन अपने हाथ में कुछ भी नहीं । इसका केवल और केवल एक ही कारण हो सकता है । या तो हमने पढ़ाई ठीक से नहीं की हैं या हमने कोई काम सीखा नहीं हैं। इनमे से अधिकतर लोग गलत आदतों के ज़ंजीरों में जकड़े हुए होते हैं और अपनी गुणवत्ता बढ़ाने वाली कामों में ध्यान नहीं देते। इनमें से ज्यादातर लोग अपनी हालत सुधारने की कोशिश नहीं करते और अपनी स्थिति को बदतर कर देते हैं। इसका सम्मुच्य असर समाज के productivity और गुणवत्ता पर पड़ता है। अगर हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा।

कुरीतियों के जंजाल में फसा होना


नशापान हमारे समाज में ऐसा रच बस गया है कि इससे बाहर आना लगभग नामुमकिन सा जान पड़ता है। कोई भी अवसर ऐसा नहीं होता हैं जिसमे इसका उपयोग ना होता हो। चाहे नॉर्मल सिचुएशन हो, खुशी का अवसर हो या दुःख का। सबसे दुःख की बात यह है कि इसे हम अपने संस्कृति का हिस्सा मानते हैं और बेतुकी तर्क देकर इसको बढ़वा देते हैं। ये समाज के लिए दुर्भाग्य की बात है।
 
जब हमारे समाज में कोई बीमार पड़ता है या कुछ हो जाता है तो इसका जो वास्तविक कारण है उसको जानना नहीं चाहते या जानते ही नहीं और इसका कुछ अलग ही एंगल ढूंढने लग जाते हैं। सच्चाई से हम कोशो दूर रहते हैं। अंधविश्वास समाज का हिस्सा ही बन गया है। 



  • हमारे लोगों में रोजगार उन्मुखी कोर्स या वोकेशनल कोर्स नहीं करते।
  • अधिकतर लोगों में कॉम्पिटिशन की भावना का अभाव होता है।
  • देश दुनिया में घट रही घटनाओं की जानकारी नहीं रखते।
  • बिजनेस करने के प्रति हमारे लोगों में उदासीनता हमारे समाज को पीछे खींच के ले जाता है।
  • हम अपने बच्चों के पढ़ाई लिखाई के लिए अच्छा माहौल नहीं बना सकते।
  • समाज से  परे लोगों के साथ हमारा इंटरेक्शन बहुत ही कम होता है। इसीलिए संगठित समाज के अच्छी चीजों को नहीं सीख पाते।
  • हम देश दुनिया तो घूमते हैं लेकिन देश दुनिया की अच्छी चीजों का अपने समाज में नहीं ला पाते।
  • हमारे समाज में विजनरी लोगों की कमी होती हैं।
  • हमारे जनप्रतिनिधि हमारे सवालों को जोरदार तरीके से सरकार के समक्ष नहीं उठा पाते। हमारे समाज में समस्याओं का अंबार होते हुए भी बेसिक फैसिलिटी नहीं दिला पाते।
  • आदिवासी इलाकों के सरकारी स्कूल कॉलेज का खस्ता हाल होना है।
  • आदिवासी समाज की सबसे बिकट स्थिति यह है कि हमारे माताएं एवम् बहनें ज्यादा काम करती हैं और पुरुष बैठकर टाइम पास करते हैं।
  •  बहुत बार देखा यह जाता है कि समाज के पिछड़ेपन के कारणों में अपने ही समाज के लोग होते है। अपना मतलब पूरा करने के लिए भीड़ का उपयोग करते हैं और मतलब सिद्ध हो जाने के बाद गायब हो जाते हैं। हमारे पास कई एक ऐसे उदाहरण है।
  • ग़रीबी और अशिक्षा हमारे समाज के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण हैं। ये दोनों ऐसी स्थिति हैं जो कभी समाज को आगे नहीं बढ़ने देती।
  • हमारे लोगों में लीड करने की भावना का अभाव होता है। आगे आना नहीं चाहते हैं।
  • हमारे लोग संगठन में तो होते हैं लेकिन संगठन का उत्तरदायित्व को नहीं समझते। संगठन के ताकत के एहसास नहीं होता।
  • सांस्कृतिक विरासत के इंपॉर्टेंट को नहीं समझते।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण नहीं करते।
  • अपना लिविंग स्टैंडर्ड को नहीं सुधारते।
  • हमारे अधिकांश लोग मुख्यधारा के साथ जुड़े हुए नहीं होते।
  • लेखन जारी है

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नोट:- इस लेख के बारे में अपना बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें।आप की संरचनात्मक सुझाव हमें दिशा प्रदान करेगी। सरना बिल्ली में हमारे समाज में व्याप्त विसंगतियों के सभी पहलुओं पर चर्चा की जाएगी।नित्य नई Case study के साथ जुडे रहने के लिए Follow करे। बदलाव की शुरुआत पहले कदम से होती है।



01 जुलाई 2022

समाज से परे रहना नामुमकिन

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।


 मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी इसीलिए 
क्योंकि हम समाज से परे बहुत लंबे समय तक सरवाइव नहीं कर सकते। हमें अपने जैसे लोगों के साथ रहने की आदत है। हम सामाजिक बंधनों से बंधे हुए होते हैं। हम अपने परिजनों, सगे संबंधियों , करीबियों और दोस्त यारों से जुड़े हुए होते हैं। हम समाज से ही अपने रिश्ते को निभाना सीखते हैं। हम अपने समाज से ही मानवीय गुणों को ग्रहण करते हैं। हम अपने समाज से ही चलना बोलना, रहन सहन  और धार्मिक मान्यताओं को सीखते हैं। हमारी शिक्षा दीक्षा समाज में ही होती है। जीवन जीने के सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हम समाज से ही करते हैं। 


समाज से हम है या समाज हमसे हैं।

ये बड़ा विरोधाभास वाली बात है। दोनों ही बातें पूर्णता सही भी नहीं हैं और पूर्णता गलत भी नहीं।  चलिए इसे हम समझने की कोशिश करते हैं। ज्यादातर मामलों में हम जिस समाज से आते हैं उस समाज की छाप हम पर दिखाई देती है। क्योंकि हम समाज के जिस परिवेश में रहते हैं उस परिवेश का असर हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है। चाहे नकारात्मक हों या सकारात्मक , बिना प्रभावित हुए बच नहीं सकते।  जीवन जीने की शैली हम समाज से ही सीखते हैं। रिश्ते नातों की महत्त्व को हम समाज से ही सीखते हैं। अपने भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाली भाषा को सीखते हैं। हंसना बोलना और खेलना सीखते हैं।हमारे में जो भाव भंगिमाएं हैं वह समाज से हीं आती हैं।  समाज से संबंधित दंतकथाओं और ऐतिहासिक तथ्यों को जानते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक विरासतों से अवगत होते हैं। धार्मिक मान्यताओं को अनुसरण करना सीखते हैं। धार्मिक शिक्षा का अनुपालन करते हैं। खाने पीने की जो चीजें और आदतें हैं उसे हम समाज से ही सीखते हैं। अगर हम बात करें आदिवासी समाज की तो उनकी खाने पीने की चीजें और से बिल्कुल अलग हैं। चुकी आदिवासियों का प्रकृति प्रेम ज्यादा होने के कारण उनका जुड़ाव भी ज्यादा होता हैं। प्राकृतिक चीजों की जानकारी उनको ज्यादा होती है। इसीलिए खानपान में भी इन सब चीजों का समावेश औरों से ज्यादा होता है। और ना जाने कितनी ही ऐसी चीजें हैं जो हमें अपने समाज से सीखने को मिलती है। इन सब चीजों को स्कूलों या शैक्षिक संस्थानों में नहीं बल्कि समाज से सीखते हैं।


अब हम एक दूसरे पहलुओं की बात करते हैं। जब हम ज्ञान प्राप्त करने के बाद लायक बन जाते हैं। जब हम अपने जीवन में शिक्षक ,नौकरशाह, इंजीनियर, डॉक्टर ,नेता, समाजसेवी,धर्म का जानकार या सफल कारोबारी बनते हैं। समाज में रहते हुए समाज की विसंगतियों और कमियों से अवगत होते हैं। तो यह हमारी भी सोशल रिस्पांसिबिलिटी बनती है कि हम भी समाज के बेहतरी के लिए अपने स्तर से जितना हो सके काम करें। एक शिक्षक ज्ञान के प्रकाश के द्वारा पूरे समाज का तस्वीर बदल सकता है। एक ब्यूरोक्रेट्स और नेता जनकल्याण की योजनाओं को जनता तक पहुंचा कर उनकी दशा और दिशा बदल सकता है। एक अच्छा समाजसेवी समाज में विभिन्न लोगों के बीच सामंजस्य का माहौल उत्पन्न कर सकता है। एक अच्छा धर्मगुरु, धर्म का जानकार समाज को जीवन जीने की कला सीखा सकता है। एक अच्छा डॉक्टर या स्वास्थ्य कर्मी लोगों की स्वास्थ्य की देखभाल कर सकता है।  एक अकेला आदमी भी समाज में बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। तरह से अनेकों ऐसे उदाहरण है जिसमें कि हम अपने अर्जित ज्ञान और अनुभव को समाज की भलाई में लगा सकते हैं। 

इन दोनों तथ्यों से यही साबित होता है कि हम समाज से प्रभावित होते हैं और समाज हमसे प्रवाहित होता है। समाज अच्छा हो तो उसका अच्छा प्रभाव हमारे ऊपर भी पड़ेगा। अगर हम बुरे होंगे तो बुरा प्रभाव समाज पर भी पड़ेगा।

समाज में पॉजिटिव बदलाव नहीं आने का मुख्य वजह समाज के जानकार या ज्ञानी लोगों का समाज के प्रति मुखर भाव का उत्पन्न होना है। 

Sense of security की अनुभूति
सामाजिक प्राणी होने के नाते हम समूह में रहना पसंद करते हैं। अपने लोगों के साथ में अपने तरह के माहौल में रहना पसंद करते हैं। हमारी भाषाएं हमारी पसंद नापसंद रहन-सहन के तौर तरीके एक से होते हैं। हमारी मान्यताएं एक होती है। जिस वजह से हमें odd फील्डिंग की अनुभूति नहीं होती।हम अपने लोगों से खुलकर मिलते हैं और बातें करते हैं। बड़ा ही सुकून महसूस होता है। समूह में रहने की वजह से हमारे मस्तिष्क में सेंस ऑफ सिक्योरिटी की फीलिंग उत्पन्न होती है। 

ठीक इसके  विपरीत जब हम अपने समाज से परे होते हैं तो हमें बड़ा ही असहज महसूस होता है। अनजान लोगों से हम अपने लोगों की तरह नहीं मिल पाते। Sense of security की अनुभूति नहीं होती। देखा यह भी जाता है कि जब कभी हम बाहर होते हैं तो वहां की आबोहवा हमें सूट नहीं करती और हम बीमार पड़ जाते हैं। जैसे ही अपना घर आते हैं सब कुछ अपने आप ठीक हो जाता है। पता नहीं यह क्या है और ऐसा क्यों होता है।

यूनिवर्सल समाज

पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज है। सभी देश आपस में किसी ना किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस जुड़ाव का सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है और वह है हमारी आवश्यकताएं। आवश्यकताओं का कोई भी रूप हो सकता है। कोई भी देश लंबे समय तक अलग-थलग नहीं रह सकता। इसी तरह से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अलग अलग समाज आपस में जुड़े होते हैं। क्योंकि कोई भी इंडिविजुअल समाज अपनी समस्त जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता। यहां पर कोई धर्म की बातें नहीं करता। अपनी भाषा का use नहीं करता। उन्हीं भाषा का इस्तेमाल करता है जो सबके लिए कॉमन हो। जैसे कि हिंदी और इंग्लिश । कोई अपनी मातृभाषा या लोकल भाषा उपयोग नहीं करता। बाज़ार सबसे उपयुक्त उदाहरण है।
आजकल काम के आधार पर सोसाइटी का निर्धारण होता है। चाहे वह किसी भी जाति ,समुदाय,धर्म ,भाषा या रंग रूप के हों। एक तरह का काम करने वाले लोगो एक साथ रहना पसंद करते हैं। शैक्षिक कार्यों से जुड़े हुए लोगों टीचिंग सोसाइटी में रहना पसंद करते हैं। इसी तरह से डॉक्टरों की अलग सोसाइटी होती है। वकीलों की अलग। सैन्य कर्मियों की अलग सोसाइटी होती है। कामगारों या मजदूरों की अलग सोसाइटी होती है। इसी तरह से अनेकों ऐसी सोसाइटी हैं जो काम के आधार पर अलग बंटी हुई हैं। इनका एक ही आधार हैं वो हैं कार्य की एकरूपता। 

कोरोना काल

हमारा देश तो क्या पूरा विश्व इसकी दंश झेल चुका है। कोरोना काल के शुरुवाती दौर में social distancing को बहुत ही शक्ति से follow किया गया था। जिस वजह से हम अपने घरों में कैद हो गए थे। लोगों से अनावश्यक मिलना जुलना लगभग बहुत ही कम हो गया था जब तक की कोई इमरजेंसी ना हों।social activities बिल्कुल बंद थीं। मेला बाज़ार सभी बंद थे। उस समय की स्थिति को देखते हुए संक्रमण की chain को तोड़ने के लिए इसकी सक्त जरूरत थी। चुकी हैं सभी समाजिक प्राणी हैं और लोगों से मिलने जुलने की आदत हैं। कोरोना काल ने हमें सांसारिक जीवन में समाज की क्या importance है बहुत अच्छी तरह से समझा दिया। उनसे पूछिए जिन्होंने उस दौर में क्वारंटाइन और isilation की अवधि काटी हों।इसका सबसे ज्यादा असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा था।क्योंकि हम कभी इस तरह की जिंदगी जीने की आदत नहीं थीं।

  • ऊपर जो बातें कही गई हैं वह सभी बातें सांसारिक लोगों के लिए है।
  • वैराग्य की जीवन जीने वाले साधु संत जिन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दी हो । उन्हें समाज से परे रहने में कोई दिक्कत नहीं होती। क्योंकि उन्होंने अकेले रहना सीख लिया है।
  • बेहतर जिंदगी की उम्मीद या किसी के बहकावे में आकर अपनी रास्ता बदल लेते हैं। शुरू में सब कुछ अच्छा लगता है। लेकिन टाइम के साथ यह एहसास होने लगता है कि जो मान सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिलता। अपनापन महसूस नहीं होता। रास्ता बदलने के कारण अपनी वास्तविक सांस्कृतिक पहचान खो बैठते हैं।
  •  आप जिस रास्ते में चल रहे हो उसी रास्ता में चले। अगर आपको लगता है कि यह गलत है तो उसको सुधारने की कोशिश करें। अपनों के बीच रहकर ही खुशियां तलाशने की कोशिश करें।
  •  बहुत सारे बगुलों के बीच कौवा आसानी से पहचाना जाता है। 
धन्यवाद।


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नोट:- इस लेख के बारे में अपना बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें।आप की संरचनात्मक सुझाव हमें दिशा प्रदान करेगी। सरना बिल्ली में हमारे समाज में व्याप्त विसंगतियों के सभी पहलुओं पर चर्चा की जाएगी।नित्य नई Case study के साथ जुडे रहने के लिए Follow करे। बदलाव की शुरुआत पहले कदम से होती है।










26 जून 2022

अच्छे कामों को आसान और बुरे कामों को मुश्किल बनाएं

 


Past, वर्तमान का आधार होता है।

प्रत्येक मनुष्य का वर्तमान स्थिति उनके द्वारा जीवन में लिए गए सही या गलत फैसलों का समुच्चय होता है। हमारा भूतकाल वर्तमान का आधार होता है। हमारे जितनी भी फ़ैसले होते हैं सभी कहीं ना कहीं पहले किये गया कार्यों से प्रेरित होता है। हमारे द्वारा किये गए हर एक अच्छा काम नेक्स्ट अच्छा काम को कंटिन्यू करने को प्रेरित करता है। हमारे द्वारा किये गए बुरे काम बुरा काम को जारी रखने को प्रेरित करता है।मतलब साफ है ।आज अच्छा करोगे तो कल अच्छा होगा और आज बुरा करोगे तो कल बुरा होगा। 


अगर कोई मनुष्य महीने का 10000 रुपए कमाता है। इसका मतलब है कि वह उतना ही कमाने के लायक है। अगर उसमें ज्यादा काबिलियत होगी तो  वह अपना earnings को भी बढ़ा लेगा। otherwise fixed रहेगी या फिर कम होती जाएगी।हमारे द्वारा अर्जित धन हमारी काबिलियत का पैमाना होता है। हमारी वर्तमान स्थिति हमारी  (past )भूतकाल की कार्य प्रणाली की जानकारी देता है। हमारी earnings भी हमारे योग्यता के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकता है। यह पूर्ण रूपेण हम पर निर्भर करता है।


हम मनुष्य की फितरत होती है कि किस तरह से कम मेहनत करके अधिक से अधिक परिणाम हासिल किया जा सके। हमारे मस्तिष्क का भी प्रोग्रामिंग ऐसा हो रखा है कि हमेशा कम मेहनत वाला काम ही पसंद करता है। परन्तु किसी भी काम की जटिलता और सरलता हमारे काम करने के तरीके पर डिपेंड करता है। जो काम करना हमारे लिए सही है उसे हम किस तरह से आसान बनाते हैं। ठीक इसके विपरीत जो काम करना हमारे लिए गलत है उसे हम किस तरह से मुश्किल बनाते हैं।

चलिए इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए हम अमुक तारीख को अमुक जगह घूमने जाने का प्लान बनाया है।  इसके लिए हमें सभी जरूरी चीजों का चेक लिस्ट बनाना पड़ेगा। जैसे कि ट्रैवल बैग, वाटर बोतल ,पावर बैंक, एयर फोन कैमरा ,मोबाइल फोन , Power Bank और भी बहुत कुछ। जिस दिन हमें घूमने जाना होगा जरूरत के सारी चीजें हमारे पास होंगी। हमें ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 


पूर्व प्लान सही नहीं होने से होगा क्या कि जिस दिन हमें घूमने जाना होगा उस दिन ना तो हमें अपना वॉलेट मिलेगा ना तो मोबाइल चार्जर मिलेगा ना चश्मा मिलेगा ना जूते मिलेंगे ना मोजे मिलेगा। मेन टाइम में ढूंढते ढूंढते परेशान हो जाएंगे और घूमने चले भी जाएं तो जरूरी सामान तो घर में ही रह गया फिर घूमने जाने का मजा ही किरकिरा हो जाएगा। कहने का मतलब है किसी भी कार्य को आसान बनाने के लिए पूर्व प्लानिंग बहुत जरूरी है। नहीं तो ऐन मौके पर बहुत सारी प्रोब्लेम्स का सामना करना पड़ता है।


जो चीजें हमें करनी है उसे हमें आसान बनाना चाहिए । तब काम करने में मजा आएगा। टाइम कंजूमिंग वाला काम से बोरियत होने लगती हैं।

मान लीजिए हमें गाजर का हलवा बनाना है। तो गाजर का हलवा बनाने से पहले गाजर बनाने में उपयोग होने वाले सभी सामग्रियों को  एकत्रित करना पड़ेगा। ताकि हमें हलवा बनाने के समय में इजीली सभी सामान एक जगह हमें मिल सके।


कोई काम ऐसा है जो गलत है। जिसको कि हमें करना नहीं चाहिए। उस काम को अवरोधों से भर कर बहुत जटिल बना दो। व्यर्थ का टीवी देखना टाइम कंजूमिंग वाला काम है। टीवी को बेडरूम से हटा देना चाहिए। रिमोट का सेल को निकालकर कहीं ऐसा जगह रखना चाहिए ताकि मिले ना। जब कभी भी हमें टीवी देखने का मन करेगा तो हमें बहुत सारा काम करना पड़ेगा। और हमारा मानव मस्तिष्क मन ऐसा है कि जिस काम को करने में ज्यादा मेहनत लगता है उसे करने से बचता है। और हमें पता भी नहीं चलेगा कि टीवी देखने का टाइम कंजूमिंग वाला जो काम है वह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा।


मान लीजिए हमें शराब पीने की बुरी लत है। इससे हम छुटकारा कैसे पाएं। जैसे कि मै पहले ही बता चुंका हूं कि जो काम गलत है उसे अवरोधों से भर दो या मुश्किल बना दो।  तो चलो समझते है। उस दुकान में जाना छोड़ दें जहां ये मिलता है। उन लोगों से दूरियां बना लें जिनसे आप प्रेरित होते हैं। उन लोगों से नजदीकियां बढ़ाएं जो शराब में लिप्त ना हों। अगर पीना ही है तो highest band ki शराब पियो जो की काफी costly होती हैं। ये सभी दुकानों में easily available नहीं होती। इसके लिए आपको दूर जाकर ज्यादा पैसा खर्च करके खरीदनी पड़ेगी। इसका सीधा असर आपके पॉकेट और समय पर पड़ेगा। मै आपको पहले ही बता चुका हूं कि मनुष्य मस्तिष्क की फितरत मुश्किल और पेचीदा कामों को लम्बे समय तक करने की नहीं होती। हमारा मस्तिष्क बड़ा कामचोर होता है। हमेशा आसान काम ही करना पसंद करता है। इस चक्कर में हमारी बुरी लत भी छूट जायेगी।


हम अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। लेकिन समय अभाव के कारण हम इसमें ध्यान नहीं दे पा रहें है। इसका सबसे अच्छा उपाय यह है कि हम उस एरिया की zym ज्वॉइन करें जो हमारे ऑफिस जाने वाले रास्ते में हों। इससे होगा क्या कि हमारे zym जाने की निरंतरता बनी रहे और हमे एक्स्ट्रा टाइम निकालने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

इसी तरह हम ट्यूशन भी स्कूल कॉलेज वाले रास्ते में ही ढूंढे। इस तरह से हम अपने जरूरी काम को आसान बना सकते हैं।


अगर हमें स्मार्ट फोन use करने की बुरी लत है तो मोबाइल के पासवर्ड को बहुत कॉम्प्लिकेटेड बना दो। ज्यादा मेहनत वाला काम होगा तो अपने आप उपयोग करना कम होने लगेगा।

मान लीजिए कि आपको घूमने फिरने का बहुत ही ज्यादा शौक हैं। आप अपने इस आदत से परेशान हैं। आप चाह के भी अपने इस आदत से निजात नहीं पा रहे हैं। तो मै आपको एक उपाय बताता हूं। अगर कार में घूमने जाते हैं तो बाइक में जाएं। अगर बाइक में जाते हैं तो साइकिल में जाएं। साइकिल में जाते हैं तो पैदल ही चले जाएं। आपकी घूमने फिरने की आदत कब चली जाएगी पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि मै आपको को पहले ही बता चुका हूं कि हमारी मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग ऐसी हो रखी है कि मुश्किल वाला काम लगातार करना ही नहीं चाहता। ये बात proved है।


हम लोग सभी अभी डिजिटल एरा में रह रहे हैं। रोजमर्रा की सभी चीजें डिजिटल प्लेटफॉर्म में हो रहा है। शॉपिंग के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। ऑनलाइन ट्रांजैक्शन कैश के प्रचलन को बहुत कम कर दिया है। एटीएम के बाहर लंबी कतारें अब देखने को नहीं मिलती। आज के समय में कोई अपने पास कैश रखना पसंद नहीं करता। आज के समय में मैक्सिमम लोगों के पास स्मार्टफोन होता है। स्मार्ट फोन में गूगल पे, फोन पे ,पेटीएम जरूर इंस्टॉल होता है। पहले जब हम कैश के साथ शॉपिंग करने जाते थे तो लिमिट कैश के साथ शॉपिंग करते थे और जरूरत का ही सामान खरीदते थे। लेकिन अभी का स्थिति ये हैं कि कैश का झंझट तो है नहीं । जितना मर्जी शॉपिंग करो जब तक कैश ख़तम ना हों। वे सभी चीजें खरीदते हैं जिसका की फिलहाल जरूरी नहीं होता है। ईज़ी डिजिटल कैश फ्लो के कारण हम जरूरत से कहीं ज्यादा खर्च कर बैठते हैं। और हमारा महीने भर का बजट बिगड़ जाता है।फिजूलखर्ची को रोकने के लिए क्या करना चाहिए। मै ये नहीं कहता कि हमें ऑनलाइन ट्रांजैक्शन नहीं करना चाहिए। लेकिन लिमिट सेट जरूर करें।हो सके तो कैश में हीं शॉपिंग करें। कैश में शॉपिंग करना हमें मितव्ययई  बनता है। कैश में शॉपिंग अनुपयोगी कैश फ्लो को रोकता है। क्योंकि आप चाह के भी अधिक कैश अपने पास नहीं रख सकते। आज के टाइम में कोई ज्यादा कैश लेकर नहीं चलता।


धन्यवाद 

अपना संरचनात्मक सुझाव अवश्य दें।


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