01 मई 2023

आदिवासियों से दुनियां क्या सीख सकती है।

     अगर दुनिया को बचाना है तो हमें आदिवासियों की तरह प्रकृति प्रेमी होना पड़ेगा। हमें प्रकृति के साथ सह अस्तित्व की जीवन शैली अपनानी होगी। आदिवासियों का प्रकृति प्रेम जीवन के प्रारंभ से लेकर जीवनपर्यंत तक रहता है। सच मायने में अगर देखा जाए तो एक सच्चा आदिवासी एक प्रकृति विज्ञानी से कम नहीं होता। उन्हें अपने वातावरण के सम्पूर्ण पेड़ पौधों की उपयोगिता और उनकी महत्व के बारे में जानकारी जन्म से ही होती है। क्योंकि उनके पूर्वजों के द्वारा ये जानकारी उन्हें स्वता ही मिल जाती है।  पेड़-पौधे का कौन सा भाग खाया जाता है ? कौन सा भाग औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है कब खाया जाता है कैसे खाया जाता है उन्हें सब कुछ पता होता है। ऐसे ऐसे चीजों के बारे में उन्हें पता होता है जिनके बारे में लगभग पूरे दुनिया के लोगों को पता नहीं होता है। आदिवासी अपने आप में एक इंस्टीट्यूट के समान है।अपने आप में ही वे ऑटोनॉमस बॉडी है। हमें बहुत नजदीक से प्रकृति से उनके जुड़ाव को सीखने की जरूरत है।मौसमों के बदलाव का असर उनके शरीर पर बहुत कम होता है।इसको पूरा दुनिया मानती है।आदिवासी हार्ड इम्युनिटी वाले होते है। उन्हें कोई गंभीर बीमारियों की समस्या भी बहुत ही कम होती है। आदिवासी बहुत बड़े प्रकृति पूजक होते हैं। उनके सारे के सारे पर्व त्यौहार प्रकृति से ही जुडी हुई होती हैं  । हमेशा से ही प्रकृति को बचाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।प्रकृति को कभी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि उनका संरक्षण और संवर्धन करते हैं।क्योंकि उन्हें बखूबी पता है कि प्रकृति है तो हम हैं। प्रकृति के बिना धरती पर मनुष्य जाति का अस्तित्व ही नहीं है।


आदिवासी गाँवों के नाम होते बहुत ख़ास है। 

आदिवासियों के जीवन में प्रकृति से जुड़वों  की घनिष्ठता इतनी प्रबल है कि उनके गाँवों के नामों में भी इसका असर दिखता है। पेड़ पौधों से इनका संबंध बहुत गहरा है। और हो भी क्यों न। क्योकिं प्रकृति हमें जीवन देती है। इसी लिए वे प्रकृति का संरक्षण भी करते है। अक्सर देखा ये जाता है कि किसी भी जगह ,गाँव, कस्बा  या शहर का नाम हमेशा किसी व्यक्ति विशेष, लैंड मार्क , ऐतिहासिक या धार्मिक महत्व के आधार पर रखा हुआ होता है। लेकिन आपको यह जान कर बड़ा अचंभा होगा कि अक्सर उनके गाँवों का नाम पेड़ों के नाम पर होता है। अगर किसी गाँव में पीपल का पेड़ ज्यादा होगा तो उस गाँव का नाम पीपल/पिपर टोली होगा। बांस ज्यादा होने पर बांस टोली होगा।  इसी तरह से बर (बरगद) टोली, जामुन टोली, आम्बा(आम) टोली, करंज टोली, तेतर टोली(इमली),सेंबर टोली(सेमल) आदि। और ना जाने कितने ही ऐसे गाँवों के नाम होंगे जो कि पेड़ों के नाम पर रखा हुआ है। और खास बात यह है कि जिस गांव का नाम जिस पेड़ के नाम से पड़ा हुआ होता है, उस गांव के लोग उनका यह परम कर्तव्य होता है कि उस प्रजाति के पेड़- पौधों का संरक्षण करें । वे उस विशेष प्रजाति के पेड़ का संरक्षण भी करते हैं। इस तरह का परंपरा शायद ही कहीं देखने सुनने को मिलती है।  हमें ऐसी परंपरा को बनाये रखने और फैलाने की जरूरत है ताकि प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन हो सके। 

आदिवासियों के सरनेम होते बड़े ख़ास

इस पृथ्वी पर मानव जीवन का अस्तित्व में बने रहना तभी संभव है ,जब प्रकृति की कृपा हम पर होगी। प्रकृति को "जीवनदाता" कहना, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। लगभग हम, सभी आवश्यकताओं के लिए, प्रकृति पर ही निर्भर है। मनुष्य हमेशा से ही प्रकृति का दोहन करता रहा है। हम में से बहुत कम लोग ही Nature preventive होते हैं। आदिवासी लोग प्रकृति की importance को हमेशा समझा है। हमेशा से ही प्रकृति का संरक्षण करता रहा है। आप को यह जान कर बड़ा अचंभा होगा कि इन्होंने कैसे कैसे नायाब तरीके अपनाये हैं। इस तरह का इंप्रेसिव तरीके और कहीं देखने सुनने को नहीं मिलती। 

इनमें से एक तरीका है, अपने नाम के साथ पेड़ पौधों, पक्षियों, जानवरों, सरीसृपों, जालीय जीव और धातुओं के नामों को जोड़ना। जैसे- टोप्पो, खलखो, मिंज, लकड़ा, किसपोट्टा,धान, आदि। इसी प्रकार से और भी कई एक सरनेम हैं जिसका संबंध जीव जंतुओं या पेड़ पौधों से हैं । प्राकृतिक सरनेम रखने के पीछे आदिवासियों का main moto प्रकृति संरक्षण और एको सिस्टम को कायम रहना है । इसको हम इस तरह से समझते है। पक्षी की एक विशेष प्रजाति का नाम टोप्पो होता है। टोप्पो सरनेम वाला व्यक्ति उस पक्षी विशेष का संरक्षण करेगा। उसको कभी भी क्षति नही करेगा।अगर कोई व्यक्ति क्षति पहुँचाने की कोशिश करता है तो उसको रोकेगा। उस जीव विशेष का भक्षण जीवन में वह कभी नही करेगा। एको सिस्टम में महत्व रखने वाले लगभग सभी जीव जंतुओं के नाम से उनके सरनेम हैं। दर्जनों सरनेम का मतलब, दर्जनों जीव जंतुओं और वनस्पतियों का संरक्षण और संवर्धन । प्रकृति को बचाए रखने और एको सिस्टम को कायम रखने का यह तरीका बहुत ही प्रभावशाली है। 

 आदिवासी  superfood

 आदिवासियों के खानपान में सम्मिलित खाद्य पदार्थ अन्यों  से  बिलकुल ही भिन्न हैं । दुनिया का ध्यान कभी इनके फूडिंग हैबिट्स  (Fooding habits ) पर गया ही नहीं । इनके  superfood की  जानकारी इन्टरनेट तक में भी उपलब्ध नही  है। यह अभी तक  commercialized हुआ नही हैं । लोगों को इनके बारे में जानकारी नही होने के कारण availability सिर्फ limited क्षेत्रों में ही हैं जहाँ ये रहते हैं । सभी फूड्स इम्युनिटी बूस्टिंग (immunity  boosting) हैं। यही वजह है कि इनको use करने वाले  लोग बीमार बहुत कम पड़ते हैं और यदि  बीमार पड़ भी गये तो  बहुत जल्द रिकवर हो जाते हैं। इनके सभी superfood पूर्ण रूप वनस्पतिक हैं । उनमे से कुछ एक  की  जानकारी निम्न हैं।

जैसे फुटकल साग ,कोयनर साग ,टूम्पा साग ,कटाई साग ,तीसरी साग ,धेपा साग ,सनई साग , चिमटी साग ,बेंग साग। लेकिन  आधुनिकता की असर इसमें बहुत ज्यादा पड़ा है। उन सब चीजों का खानपान में चलन  कम होता जा रहा है ।कुछ चीजों का वर्णन करने जा रहा हूँ । हमें इनको बचाकर रखने की जरुरत है। फुटकल साग झारखंड में निवास करने वाले लगभग सभी आदिवासियों को इसके बारे में जानकारी है। इन्हें बनाने की कई एक विधियां है। जिन्होंने भी इसको खाया है वह इन्हें कभी भूल नहीं सकता। यह खटाई के लिए जानी जाती है। इनमें कई एक औषधीय गुण पाए जाते हैं। इनका आचार भी बनाया जाता है।चटनी बहुत लाजवाब होता है। दुनिया इसकी स्वाद को अभी तक चखा ही नहीं होगा। यह किसी सुपर फूड से कम नहीं है। एक बार आप सभी इसका स्वाद जरूर लें।  

सादगी के मूरत

सादगी और ईमानदारी आदिवासियों की पर्याय होती है। बेईमानी धोखाधड़ी और छल कपट इन से कोसों दूर है। आदिवासी विश्वास के पर्याय हैं। बहुसंख्यक आदिवासी सादा जीवन जीते हैं। ये बहुत शांतिप्रिय और अपने एरिया में रहना पसंद करते हैं। उनकी रहन-सहन मान्यताएं और खानपान और से बिल्कुल भिन्न है। यह प्रकृति के बहुत बड़े उपासक होते हैं। अपने आप को प्रकृति पूजक कहते हैं। और हो भी क्यों ना क्योंकि इनकी सारी धार्मिक मान्यता है प्रकृति से जुड़ी हुई है। यह अपने पुरखों से प्राप्त ज्ञान का अनुसरण करते हैं। पुरखों से प्राप्त सारा ज्ञान इनके गीतों में समाहित है। इनकी इतिहास गीतों में ही लिखी है। हर मौसम के लिए अलग गीत और नृत्य है। गीत संगीत और नृत्य इनके जहन में रचा बसा है। 

दहेज़ प्रथा 

आदिवासी समाज की सबसे अच्छी बात दहेज प्रथा का प्रचलन में नहीं होना है। दहेज प्रताड़ना की घटना कभी सुनने को नहीं मिलती। दहेज के लिए कोई भी बेटियाँ सताई या मारी नहीं जाती।बेटियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। बेटियां कभी बोझ नहीं मानी जाती। बेटियों के विवाह को लेकर कभी कोई समस्या नहीं होती। आदिवासी समाज में कभी कन्या भ्रूण की घटना देखने सुनने को नहीं मिलती। 

आदिवासी महिला 

आदिवासी अर्थव्यवस्था में महिलाओं का भागीदारी बराबरी का होता है।परिवार चलने में घर की महिलाओं की अहम भागीदारी होती है। हर काम में महिलाएं हाथ बटाती हैं।आदिवासी महिला सशक्त और मजबूत होती हैं। धार्मिक क्रियाकालापों में महिलाएं एक्टिवली भाग लेती हैं।

ज्ञान का केंद्र

धर्मकुड़िया आदिवासियों का सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। यह आदिवासियों की बहुउद्देशीय शैक्षणिक संस्थान है। यहां पर हर विधा की जानकारी दी जाती हैं। चाहे वह धार्मिक हो, सांस्कृतिक हो, कानून व्यवस्था की हो, आर्ट ऑफ लिविंग हो या समय के मांग के हिसाब से कोई जरूरी चीज ही क्यों ना हो, की जानकारी दी जाती है। सप्ताह में एक दिन यहां पर धार्मिक सभाएं आयोजित की जाती है। उस दिन धर्म की बातें कही, सुनाई और बताई जाती है। गांव का शासन व्यवस्था किस तरह से हो इसके बारे में पहले से मौजूद नियम की जानकारी दी जाती है या तो फिर जरूरत पड़े तो नया नियम बनाए जाते हैं । जिसे सबको मानना होता है। जब इनका विशेष त्यौहार आने वाला होता है, तो उस  त्यौहार की तैयारी के लिए, उस त्यौहार में उपयोग होने वाले गीतों का रिहर्सल होता है । नृत्य का रिहर्सल  होता है।नई generation अपनी धार्मिक परंपरा की जानकारी हासिल करती है। 

विवादों का निपटारा भी धूमकुरिया में ही होता है। बच्चों को शिक्षित करने के लिए रात्रि पाठशाला चलाई जाती हैं। यह आदिवासियों के लिए ज्ञान का केंद्र होता है। 

चुनाव प्रक्रिया

आदिवासी समाज में चुनाव की प्रक्रिया सबसे अलग है। समाज में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित पद पाहान का होता है। बाकी सब उनके सहयोगी होते हैं। इस चुनाव प्रक्रिया को लेकर कभी विवाद नहीं होता। पद को चुनने की उनकी पारंपरिक विधि है। इसमें किसी एक व्यक्ति को चुनकर उनके आंखों में काली पट्टी बांधी जाती है। धार्मिक अनुष्ठान के बाद उस व्यक्ति को गांव के बीच में लाकर छोड़ दिया जाता है। आंखों में पट्टी बंधा व्यक्ति जिस किसी के घर में जाकर घुसता है, उसी घर के व्यक्ति को तीन वर्ष के पाहान के रूप में चुन लिया जाता है। गांव के सभी बड़े काम उनके आदेश से होंगे। 

आदिवासी विद्रोह

भारत के प्रसंग में यदि बात करें, तो 1857 के सिपाही विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई माना जाता है। लेकिन 1857 के पहले भी अंग्रेजों के विरुद्ध आदिवासियों द्वारा कई लड़ाइयां लड़ी गई। पराधीनता आदिवासियों को कभी भी मंजूर नहीं था। आदिवासी कभी अंग्रेजों के गुलाम नहीं रहे । जल जंगल जमीन भाषा संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए हमेशा अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते रहे । तिलका मांझी के नेतृत्व में 1785 की तिलकामांझी विद्रोह। वीर बुधु भगत के नेतृत्व में 1832 की लार्का विद्रोह।तिरोत गाओ की खासी विद्रोह 1833। तेलंगा खरिया की नेतृत्व में 1850 की तेलंगाना खरिया विद्रोह। सिद्धू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में 1855 की संथाल विद्रोह। निलंबार और पीतांबर का विद्रोह 1857। लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इनको वह जगह नहीं मिल पाई जो कि मिलनी चाहिए थी । 


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28 अप्रैल 2023

सुविधाएं कैसे काम करती है?

सुविधाएं उत्पादकता बढ़ाती है

सुविधाएं हमारी कार्य क्षमता को बढ़ाती है। जिसके परिणाम स्वरूप प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। सुविधाएं ऐसे औजार या साधन होते हैं जो काम हम कर रहे होते हैं उस काम को बेहतर और सुंदर ढंग से कम समय में करने के लिए हमारा सहायक होता है। आधुनिक युग में हम सुविधाएं प्रदान करने वाली साधनों से गिरे हुए हैं। आधुनिक युग में हम मनुष्य का जीवन इस तरह से बदल चुका है कि सुविधाओं के बिना जीवन की कल्पना करना एकदमएकदम ही मुश्किल है। जीवन इसके बिना एकदम से रुक जाएगी। जीवन में हर वो काम जो हमें जीवित रहने के लिए करना पड़ता है उन सभी चीजों को करने के लिए साधन उपलब्ध है। सुविधाएं हम मनुष्य जीवन को चमत्कारिक रूप से बदल दिया है। सबों को सभी सुविधाएं उपलब्ध हो यह जरूरी नहीं है। सभी को सब कुछ प्राप्त नहीं है। उनके लिए एक निश्चित धनराशि जो चुकानी पड़ती है। सुविधाओं के साधन हमारे समय को काफी बचा दिया है। दिनों का काम घंटों में हो जा रहा है। और घंटों का काम मिनटों में सटीकता के साथ हो रहा है। हम मनुष्य का जीवन पूरी तरह से सुविधाओं के साधनों पर निर्भर  हो गया है। हम पूरी तरह से सुविधाओं के साधनों से गरे हुए हैं। 

चाहे वह रसोई हो सड़क या अपना कोई भी कार्य क्षेत्र सुविधाओं के साधनों ने पूरी तरह से अपना स्थान पक्का कर लिया है। बीते कुछ सालों में यातायात और कम्युनिकेशन में सबसे ज्यादा परिवर्तन हुआ है। पूरे विश्व सुविधाओं के बाजारों से भरा पड़ा है। पूरी संसार सुविधाओं को जुटाने और सुविधाएं उपलब्ध कराने में लगी हुई है।

कहने के लिए तो हर काम को करने के लिए सुविधाओं के अनेक साधन उपलब्ध है । लेकिन क्या इन सुविधाओं के साधनों की उपलब्धता सबके लिए है। क्या बहुसंख्यक लोग इन सुविधाओं के साधनो को पाने में सक्षम है। 

चलिए इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं । 
हमारे देश के हर एक गाँव, कस्बा, तहसील, और शहरों में स्कूली शिक्षा की सरकारी व्यवस्था है। इसके बावजूद धड़ल्ले से अच्छे से अच्छे प्राइवेट स्कूल खुल रहे हैं।दोनों के शैक्षिक स्तर में काफी अंतर होता है। जब कि प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों का बेतन सरकारी के अपेक्षा बहुत ही कम होता है फिर भी private स्कूलों का परिणाम हमेशा से अच्छा रहा है। इसका कारण है अच्छी सुविधाएं। 

एक बच्चा जो कि सम्पन्न परिवार से आता है। उनके अभिभावक कभी सरकारी स्कूलों मे अपने बच्चों को नहीं भेजेगा। क्योंकि सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की अभाव होती है। शैक्षणिक स्तर  और शैक्षिक माहौल भी ठीक नहीं होती है। इंफ्रास्ट्रक्चर का बड़ा अभाव होता है । शिक्षकों का अभाव होता है। लाइब्रेरी या नहीं होती है। ना कंप्यूटर होता है और ना ही इंटरनेट की व्यवस्था। सरकारी स्कूल के बच्चों को एक्सपोजर बहुत कम मिलता है।

अगर हम बात करें प्राइवेट स्कूलों की तो वहां पर स्टूडेंट टीचर का अनुपात बिल्कुल सही होता है। बच्चों में कंपटीशन की भावना उत्पन्न की जाती है। प्राइवेट स्कूलों में शैक्षणिक माहौल को काफी ध्यान दिया जाता है। पढ़ाई लिखाई से संबंधित जितने भी आधुनिक चीजों की आवश्यकता होती है वह सभी प्राइवेट स्कूलों में उपलब्ध होती हैं। प्राइवेट स्कूल के बच्चे सुविधाओं के साथ पढ़ाई लिखाई में दौड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं जबकि साधन विहीन बच्चे पढ़ाई लिखाई में पैदल चल रहे हैं । इंटरनेट और कंप्यूटर की शिक्षा पर विशेष ध्यान दी जाती है। प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई ही नहीं बल्कि खेलकूद में बहुत ज्यादा ध्यान दिया जाता है। हर तरह के इंडोर गेम, हर वह गेम जिसकी जरूरत है सिखाई जाती है। लाइब्रेरी और लेबोरेटरी में विशेष ध्यान दी जाती है।
अभी के समय में अगर हम पढ़ाई लिखाई की बात करें तो कंप्यूटर और इंजीनियर दो ऐसे साधन है जो पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र को बहुत ज्यादा पोस्ट किया है। इंटरनेट में पढ़ाई लिखाई की वह सारी चीजें उपलब्ध होती है जो हमें चाहिए होती है अभी के समय में पढ़ाई लिखाई के लिए ऐसी ऐसी सुविधाएं अवैलाबल हैं जो हमारे स्टडी को बूस्ट करती है। अभी के समय में कोई भी सवाल unsolved नहीं रह जाता है अगर इनका सही इस्तेमाल किया जाय तो। 

एक गरीब परिवार का बच्चा चाहे वह कितना ही होशियार क्यों ना हो, सुविधाओं के अभाव में वह, वह मुकाम हासिल नहीं कर पाता जो सुविधा युक्त बच्चे करते हैं। ऐसे बहुत कम ही लोग होते हैं जो अभाव में रहकर बड़ी सफलताएं हासिल की हो। सुविधाओं से युक्त एक होशियार बच्चा बहुत बड़ी बड़ी सफलताएं हासिल कर सकता है। 
पैसा, सुविधा खरीदने का सबसे बड़ा यक्ति है। जिनके पास पैसा होता है वह सभी सुविधाएं जुटाने में लगा ही रहता है। और उन सुविधाओं से बड़ी बड़ी सफलता हासिल करता है। सुविधा विहीन लोग उसके बारे में सोच भी नहीं सकते। सुविधाएं हमें कहाँ से कहाँ ले जाती हैं। सुविधाएँ हमें मजबूती प्रदान करती हैं। साधनों के बिना विकास की रफ्तार बहुत ही धीमी होती है।

सुविधा के होने के वजह से एक दूसरा पक्ष भी उभर कर आती है। एक संपन्न परिवार का बच्चा सुविधाओं के साधनों से गिरा हुआ होता है । उनके पास अभाव नाम की कोई चीज नहीं होती। लेकिन वह उसकी इंपोर्ट्स को समझ नहीं पाता । सुविधाओं के साधनों का मिस यूज करता है। सेल्फ डेवलपमेंट एक्टिविटी में ध्यान नहीं देता। राजकुमार वाली जिंदगी जीता है। उन्हें पता होता है कि उनके पास सभी चीज अवेलेबल है। बाद में यही सोच उनके पतन का कारण बनता है।
वही एक गरीब परिवार का बच्चा सुविधाओं के अभाव में रहते हुए सुविधाओं के इंपोर्टेंस को समझता है। और ऐसे कोई भी काम नहीं करता है जो उसके पतन का कारण बने। वहां अपने सेल्फ बिल्डिंग के बारे में बहुत ज्यादा ध्यान देता है। जो कुछ भी सुविधाएं उसके पास उपलब्ध होती है उसका वह एक्सट्रीम लेवल पर यूज करता है ।
सुविधाएं अक्सर हमारे गति को तेज करने के लिए होती हैं ना की गति को रोकने के लिए। सुविधाओं के होते हुए भी पतन का होना सुविधाओं के मिस यूज को दिखाता है।

यह कहना तो बिल्कुल भी सही नहीं होगा की सुविधाएं हमें कमजोर भी बना रही है। लेकिन यह बिल्कुल सही है । आज के समय में हम अपने शरीर का उपयोग उतना नहीं कर पा रहे हैं जितना पहले सुविधा रह लोग किया करते थे। सुविधाओं के अभाव में हमारा शरीर काम भी नहीं कर पाता है। सुविधाओं के चलते हम दिनोंदिन शारीरिक रूप से कमजोर होते चले जा रहे हैं। पहले जमाने के तुलना में हम सारे ग्रुप से 10 परसेंट भी एक्टिव नहीं है । इसको हम कुछ इस तरह से समझते हैं। अभी के समय में खाली पैर चलना हमारे लिए बहुत मुश्किल की बात है । बिना जूते चप्पल के हमारे पैरों में दर्द होने लगते हैं। हम लंबी दूरी तक पैदल चल भी नहीं पाते। हमारी याद करने की क्षमता भी कम होती जा रही है क्योंकि हमें कोई भी चीज याद करने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि जरूरत की सारी चीज है हमारे स्मार्टफोन में उपलब्ध होती हैं । अभी के समय में हमें मुश्किल से एक या दो ही मोबाइल नंबर याद होते हैं या इतना भी नहीं। हमारे राइटिंग भी ठीक नहीं होती क्योंकि हम लिखते ही नहीं है। हमारी आंखें कमजोर होती जा रही हैं इनकी हम दिन भर स्मार्टफोन और टीवी में देखते रहते हैं । 

सुविधाएं हमें अपनों से वर्चुअली तो नजदीक लाया है लेकिन हम फिजिकली दूर होते चले जा रहे हैं। सुविधाओं के साधनों के द्वारा हम अभी जितने लोगों को जानते हैं वर्चुअली, ऐसा पहले कभी नहीं था। वर्चुअली हमारे सैकड़ों फ्रेंड होते हैं लेकिन शायद ही हम उनसे कभी मिल पाते हैं। हम अपनी संवेदनाओं को वर्चुअल ही व्यक्त करते हैं। कहने को तो हम दूसरे के नजदीक है लेकिन दूर होते चले जा रहे हैं। यह वर्चुअल दूरियां हमारे इमोशनल अटैचमेंट को खत्म कर रही है। सुविधाएं हमें अपने तक ही सीमित रहना सिखा रही है। हम अक्सर अपने में ही खोए हुए रहते हैं।

सुविधाएं हमें घर तक ही सीमित रख रही है। पहले जमाने के बच्चे खेलने के लिए दिन भर घर के बाहर हुआ करते थे अपने दोस्तों के साथ। बगीचा में खेतों में, खेल के मैदानों में धूल में खेलते रहते थे। लेकिन अभी के ज्यादातर बच्चे सुविधाओं के साधनों की गेम खेलते रहते हैं। अभी के ज्यादातर अभिभावक भी यही चाहते हैं कि उनके बच्चे ज्यादातर टाइम घर में ही रहे। इस वजह से बच्चे बचपन में ही मिट्टी से दूर हो जाते हैं। बचपन में खेले जाने वाले बहुत से ऐसे खेल तमाशे हुआ करते थे जो कि बिल्कुल ही विलुप्त होते चले जा रहे हैं। अभी के बच्चों को वह खेल के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं है। अभी के बच्चों में पहले के बच्चों के मुताबिक इम्यूनिटी बहुत वीक होती है । 
सुविधाओं के साधन हमें प्रकृति से दूर कर रही है। पहले के लोग जब कभी भी उदास या दुखी होते थे तो वह प्रकृति के बीच जाकर बैठ जाते थे और प्रकृति को अपना दुख दर्द सौंप देते थे । लेकिन अभी के समय में हम जब उदास या दुखी होते हैं तो सुविधाओं के साधन में दुख दूर करने की उपाय को ढूंढते हैं या दूर करने की कोशिश करते हैं। 








31 मार्च 2023

तनाव एक अदृश्य दुश्मन।

   

  आज हमारे पास विज्ञान के हजारों वारदान प्राप्त हैं और दिन  प्रतिदिन प्राप्त हो भी रहें हैं ऐसे ऐसे उपकरण अपने पास उपलब्ध हैं, जिनकी कार्य प्रणालियां हमें  अचंभित कर देती हैं आज हम चाँद  तक में भी अपना परचम लहरा चुके है ।समुद्र की गहराइयों को नाप चुके हैं बौजुद इसके आज मनुष्य एक अभिशाप से थक सा गया है उपभोग की सारी चीजें और उन्नति बेकार हो जाती हैं  वह अभिशाप कोई और नही हमारे जीवन में उत्पन्न तनाव है ।समस्याओं के कारण हम तनाव से ग्रसित नहीं हैं बल्कि हमारे तनावग्रस्त होने से समस्याएँ होती हैं। 

हमारे चारों ओर घाट रही घटनाओं और मन में चल रही अंतरी मनोवैज्ञानिक संदेशों को खतरे के रूप में देखने या समझने के फलस्वरुप जो प्रतिक्रिया की जाती हैं ,वही तनाव है।

जब हमारे मन मस्तिष्क से भयभीत, बेचैन, अशांत, दुविधाजनक पूर्ण, थके हुए, उबावपन ,उलझे हुए  एवं द्वंद्वग्रस्त महसूस करते हैं ,तो उसे ही  हम तनाव कहते हैं।

जब हम अपने जीवन में किसी इच्छित फल की प्राप्ति नहीं कर पाते  हैं तो उससे उत्पन्न प्रतिक्रिया को तनाव कहते

इसको हम ऐसे भी समझ सकते हैं ।  यह एक ऐसी रथ  है, जिसमें कई घोड़े  अलग-अलग दिशाओं में जुते हुए हैं, जो अपनी-अपनी दिशा में रथ  को खींच रहे है । इसी परस्पर खींच-तान को तनाव कहते हैं ।

 तनाव को परिभाषित करने का कोई निश्च्चित पैमाना नहीं हैं । मन एक सुपर कंप्यूटर हैं जिसमे एक साथ सैकड़ों विचार चल रहे होते हैं ।

तनाव का होना साफ शब्दों में कहें तो यह एक मानसिक स्थिति है जो कि हमारे दिमाग में चल रहा होता है । घटनाएँ सदैव तनाव का कारण नहीं होती हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि आप घटनाओं को किस रूप में लेते और उनसे  कितना प्रभावित होते हैं। घटना की व्याख्या एवं विश्लेषण से हमारा रवैया तय होता है। हमारा रवैया ही तनाव होने और नहीं होने का कारण है। 

उदाहरण के तौर पर, अगर हम  कहते हैं  कि 'क्या फर्क पड़ता है , तो मुझे कोई तनाव नहीं होता है । यदि हम यह सोचते हैं  कि 'बहुत फर्क पड़ता है , तो तनाव का बढ़ना स्वाभाविक हैं

 

तनाव बहुआयामी है। मानसिक तनाव होने से हर व्यक्ति का अनुभव भिन्न-भिन्न होते हैं और प्रभाव भी अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग होता है। इसलिए इनको जीतने की एक ही विधि नहीं हो सकती है। हम तनावों से क्यों घिरे हुए हैं? अनुमानतः कहा जाए तो तनाव इसलिए भी हैं , क्योकि हमारा जीवन जीने की तरीका अव्यवस्थित और लक्ष्य हीन हैं । यह तनाव स्वयं के द्वारा  पैदा किए हुए हैं । तनाव हमारे लालच और इज्जत के कारण बनता हैं।

तनावों को हम बेवजह भी  पैदा करते हैं। इसको हम एक उदहारण से इस प्रकार से भी समझ सकते हैं ।

 

एक रेलगाड़ी तेज गति से भागी जा रही थी, उसमें बैठे एक यात्री को सभी दूसरे यात्री डिब्बे में आते-जाते देख रहे थे । वह यात्री अपने सिर पर अटैची व बिस्तर रखे हुए था। वह स्वयंसेवक की तरह आदर्शवादी आदमी दिखाई पड़ता था। एक व्यक्ति ने पूछा, 'भाई साहब सिर पर सामान क्यों उठाए हुए हो ?'उस व्यक्ति ने जवाब दिया, 'मैं अपना बोझ स्वयं उठाता हूँ, किसी अन्य पर वजन नहीं लादता हूँ।'

जब स्वयं ट्रेन में बैठा है तो वजन रेल पर नहीं पड़ रहा है, यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था। ठीक वैसे ही हम भी बहुत से तनाव सिर पर उठाए चल रहे हैं।जबकि उन्हें नीचे रखा जा सकता है। 

मित्रो कुछ भार सूक्ष्म व अदृश्य होते हैं, जो दिखते तक नहीं हैं। तनाव ठीक इसी प्रकार के भार हैं, जो हमें दिखाई नहीं पड़ते हैं।स्थूल बोझ दिख जाता है। असली दिक्कत यही है कि इन तनावों को हम अपने सिर पर लादे हुए हैं।कहीं हम अपने सिर पर पेटी बिस्तर पकड़कर तो रेलगाड़ी में नहीं बैठे हैं। क्योंकि हमने बहुत से यात्रियों को निम्न प्रकार का बोझ अपने सिर पर लादे हुए देखा है।

अतीत का बोझ, स्मृति का बोझ, पश्चात्ताप का बोझ, शिकायतों का बोझ,सपनों का बोझ, इच्छा का बोझ, महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ, कल्पनाओं का बोझ, 'मैं' का बोझ, 'मेरेपन' का बोझ, तुलना का बोझ , मुख्य होने का बोझ, सामाजिक भय का बोझ ,प्रतिष्ठा का बोझ ,परंपरा का बोझ ,व्यक्तिगत रहस्यों का बोझ, प्रेम संबंधों का बोझ, बदले का बोझ, अज्ञात व अनजान बोझ

जानवरों को कोई तनाव नहीं होता है, क्योंकि वे प्रकृति प्रदत्त सहज जीवन जीते हैं। जीवन शैली में उन्होंने अपनी टाँग नहीं अड़ाई है। इसीलिए उनको डॉक्टरों की जरूरत हमसे कम पड़ती है।   

तनाव हमेशा ही शत्रु नहीं होते हैं। वे हमें समय-समय पर चेतानेवाले मित्र भी हो सकते है। परीक्षा के तनाव से विद्यार्थी तैयारी अच्छी करता है, अभिनेता डर से अच्छा अभिनय करता है। सफलता का प्रयास एक प्रकार का तनाव ही तो है। इस तरह के तनाव हमारे मित्र भी होते हैं। अनेक बार ऐसे तनाव हमें उत्पादक व रचनात्मक बनाते हैं।

तनाव के साथ जीना सीखने की जरूरत है। प्रेरक गुरु प्रेरित करने के लिए जो तनाव बढ़ाते है, ये लाभदायक होते हैं। तनाव बिजली की तरह एक खराब मालिक एवं अच्छा नौकर है। 

जैसे बिजली का उपयोग मालिक बनकर अनेक तरह से किया जा सकता। जब व्यक्ति बिजली को  नियंत्रित नहीं करता है तो वहीं बिजली व्यक्ति को अपार क्षति पंहुचा सकता । इसलिए तनाव का उपयोग अपने पक्ष में करने के लिए उस पर नियंत्रण जरूरी है। पानी और भोजन की तरह उससे बचा नहीं जा सकता है। संतुलित जीवन जीने के लिए उसका यही उपयोग करना आना चाहिए।

तनाव एक शक्तिशाली स्थिति है, जो या तो बहुत लाभदायी या नुकसान का कारण हो सकती है। यह बहती नदी के समान है जब आप इस पर बाँध बनाते हैं तो पानी की दिशा को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं; परंतु जब नदी पर बाँध नहीं होता हैं तो उसके जल का इच्छित उपयोग संभव नहीं है तनाव के साथ भी ऐसा ही है।

यदि हम तनाव का प्रबंधन ठीक से नही करते है तो  कई प्रकार की शारीरिक बीमारियाँ, जैसे- उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, मधुमेह  आदि पैदा कर सकता है और कर रहा है। तनाव का उपचार सभी चाहते हैं, लेकिन तनाव हो ही नहीं, इसकी व्यवस्था बहुत कम लोग कर पाते हैं। जैसा कि सभी जानते हैं की ईलाज से बेहतर उसको आने से रोकना । यानी रोग को आने ही न दें इसलिए तनाव को आरंभिक स्तर पर रोकना उचित हैं । मात्र बुद्धत्व प्राप्त व्यक्ति को ही तनाव नहीं होता है। तनाव तो होगा, पर उसे रोका जा सकता है।सफलता प्राप्ति के प्रयत्नों में बहुत से तनाच आते हैं। इन तनावों के आने से कई बार सफलता भी भार लगने लगती है। ऐसे में तनाव मुक्त सफलता प्राप्त करें। वैसे सफलता के लिए भाग दौड़, कड़ी मेहनत, संघर्ष एवं स्वयं को दबाना पड़ता है। अनेक तरह के समझौते करने पड़ते हैं। मन को केंद्रित करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में तनाव सहज आ जाते हैं। कई बार तो ये तनाव सफलता तक को बेकार कर देते हैं।

सभी तनाव घातक नहीं होते हैं। कुछ तनाव जीवन में आवश्यक होते हैं। हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे तनावों को हम अच्छे तनाव कह सकते हैं। कुछ तनाव प्रारंभ में घातक नहीं होते हैं। इस संबंध में लचीलेपन के नियम को जानना अच्छा है। किसी भी ठोस को उसकी एक लचीलेपन की सीमा तक खींचा जाए तो वह खींचना बंद करने पर फिर से पहले वाली अवस्था में आ जाता है। लेकिन उसको लचीलेपन से अधिक खींचा जाए तो वह स्थायी रूप से विकृत हो जाता है , अपनी पहलेवाली अवस्था में नहीं आता है। इसी तरह तनावों की भी एक सीमा होती है। व्यक्ति के तनाव सहने की शक्ति अलग-अलग होती हैं, जैसे भय को लें भय तब तक उपयोगी है जब तक वह कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन ज्यों ही भय की मात्रा बढ़कर इतनी हो जाए कि भयभीत व्यक्ति कार्य न कर सके और वह हतोत्साहित हो जाए

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30 नवंबर 2022

मेले के बाद का मेला

मै आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहा हूं जो सबों के माननीय है। इनकी उम्र लगभग पचपन साल है।  सुखी संपन्न और बड़ा परिवार  का मुखिया है।गांव के सभी लोग उनका कहना मानते हैं। गांव में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे, समझदार और सुलझे हुए आदमी है। हर विषय की थोड़ी ना थोड़ी जानकारी जरुर होती है उनके पास ।गांव के सभी लोग सलाह मशवरा के लिए उनके पास आया करते हैं। गांव में सबों के साथ बड़ा प्रेम भाव से मिला करते हैं। मिलनसार प्रवृति के होने के कारण सभी लोग उन्हें पहचानते हैं। 
जीवन यापन के लिए वह व्यवसाय के साथ खेती किसानी किया करता है। उनकी दुकान में हमेशा भीड़ लगी ही रहती हैं। तीन चार लोग उनके under काम करते हैं।वे खुद ही बहुत मेहनत से काम करते है।

एक बार की बात है, उनके रिश्तेदारों के यहां बड़ा मेला लगा। सपरिवार जाने का अमंत्रणा भी आ गया। परिवार के सभी लोग बड़ा खुश हुए और जाने को राजी हो गए। जब परिवार के मुखिया से पूछा गया तो बोले कि मेरा उम्र मेला सेला देखने का अब नहीं है ।मै तो बूढ़ा हो गया हूं। तुमलोगों का समय है, तुमलोग जाओ।मै तो मेले के बाद जाऊंगा। क्या था ? बच्चे सब चले गए।

फिर क्या था वह मेला के दूसरे दिन अपनी मोटर साइकिल निकली और चल पड़े। मेला का दूसरा दिन जिसको की हम बासी बोलते हैं ,सभी नाते रिश्तेदार ,दोस्त यार मौजूद होते हैं। सभी से भेंट मुलाकात बड़ी ही आसानी से हो जाती हैं। घर में भी इसी दिन के लिए ही तैयारी भी होती है। खाने पीने के लिए एक से एक लज़ीज़ पकवान बने होते हैं। इस दिन जम के एक दूसरे का घर धूम धूम कर मौज मस्ती होती हैं। मौज मस्ती हो और शराब ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। आज के दिन जमकर नशाखोरी होती हैं। लड़ाई झगड़ा की छोटी मोटी घटनाएं भी हो ही जाती हैं। बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं जो खा पीकर सो जाते हैं।लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मना करने के बाद घर जाने के लिए जिद्द करते हैं और निकाल पड़ते हैं।कुछ की तो घर जाना मजबूती होती हैं क्योंकि उनके घर में देख रेख करने वाला कोई नहीं होते।लेकिन कुछ लोग अपनी जिद्द और पहलवानी के चलते अपनी साइकिल या गाड़ी लेकर निकल पड़ते है। नशे के हालात में सड़क में चलना, अपने और राहगीरों दोनों के लिए खतरे की घंटी हैं। जब कोई नशे की हालत में चलता है तो गाड़ी चलता फिरता वेपन बन जाता है। इससे नुकसान कितना होगा इसका कोई अनुमान नहीं।

तो क्या था वह भी अपना मोटर साइकिल लेकर निकल पड़ता है। कुछ दूर तो वह ठीक ठाक ही ड्राइव करके चला गया। जैसे ही वह भीड़ भाड वाली चौक में पहुंचा और अपना नियंत्रण खोकर धड़ाम से गिरकर बेसुध हो गया। गनीमत यह हुआ कि कोई गंभीर चोटें नहीं आयी लेकिन मोटर साइकिल पूरी तरह चौपट हो गया। वहां उपस्थित लोगों से बीच बचाव करते हुए ,उसे उठाकर किनारे लिटा दिया। घंटों वहां बेसुध नशे की हालत में पड़ा रहा। कहीं जूता तो कहीं सामना और कपड़ा भी जैसे तैसे ढका हुआ। चुकी सब उनको पहचानते थे । और उनकी इस अवस्था को देखकर खूब जग हंसाई हुई। सारा इज्जत मिट्टी में मिल गया। जब उनको होश आया तो बहुत ही शर्मिंदा महसूस होने लगी। किसी से नज़र मिलने की हिम्मत नहीं होने लगी। इज्जतदार लोगों के लिए यह बहुत बड़ी लॉस है। क्योंकि इज्ज़त प्रतिष्ठा ही उनके लिए बहुत कुछ होता है। मान प्रतिष्ठा और इज्जत कामाने में वर्षों लग जाती हैं। हर कोई इसको हर हाल में बचाए रखना चाहता है।

आदिवासी समाज में यह स्थिति और भी बिकट है। नशा करने के बाद जब हम ड्राइव करते हैं तो गाड़ी पर से हमारा नियंत्रण कम हो जाता है और दुर्घटनग्रस्त हो जाते है। ऐसी दुर्घटनाएं कभी-कभार बहुत महंगी पड़ जाती है।  अंगभंग हो जाता है और जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाते है और परिवार का बोझ बन जाते हैं। कुछ बदनसीब परिवार ऐसे भी होते हैं जो अपने सहारे की लाठी को खो देते हैं । परिवार को इसका खामियाजा जिंदगी भर झेलना पड़ता है। बच्चों का भरण पोषण और पढ़ाई लिखाई भी प्रभावित होता है। 

हमारे पर्व त्योहार शादी विवाह और उत्सव सब मिलजुल कर खुशियां मनाने का एक तरीका है। इस दिन सभी नाते रिश्तेदार और दोस्त यार साथ में होते हैं। कभी कभार खुशियों के इस माहौल में अती हो जाता है। जाने अनजाने में एक दूसरे से झगड़ा कर बैठते हैं। खुशी का माहौल को गंभीन बना देते हैं। खुशियां मनाना हमारे लिए भारी पड़ जाता है। 

उत्सव में खाने पीने की ना तो कमी होती नहीं है और ना कोई लिमिट। बिना सोचे समझे हम बहुत कुछ बहुत ज्यादा कम टाइम में खा लेते हैं या खाते रहते हैं। इसका नतीजा यह होता है की हम अपच, बदहजमी और पेट दर्द का शिकार हो जाते हैं। इसको ठीक होने में कई दिन लग जाते हैं।

जब हम उत्सव में नशापान करके लड़ाई झगड़ा करते हैं ,हो हल्ला करते हैं या गाली गलौज करते हैं। इससे माहौल बिगड़ता है। क्योंकि हमारे साथ हमारे बच्चे भी होते हैं वे इन सब चीजों को देखते हैं। इन सब चीजों का उनके दिमाग में गहरा असर पड़ता है। इन सब चीजों को देखकर वे सीखते भी है और वैसे ही संस्कार बनते हैं।

समाज में अक्सर देखने को मिलता है कि उत्सव वाले माहौल को लंबा खींचने की कोशिश करते हैं। आदिवासी समाज में ऐसा देखने को अक्सर मिल जाता है। अगर गांव में  मेला या जतरा एक दिन का हो तो उसका असर घर में दो से तीन दिन और रहता है। लोगों का मिलना जुलना लगा ही रहता है। ये ठीक है या गलत है मै इसके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहता हूं। समय इसको अपने आप ही ठीक कर देगा। इससे काम काज बड़ा प्रभावित होता है। समय और पैसे दोनों की बर्बादी होती है। घर के लोग जो सेवा कार्य में लगे हुए होते हैं थक जाते हैं परेशान हो जाते हैं। शादी विवाह में तो स्थिति और बदतर होती हैं।

इस लेख के द्वारा हम यही जानने की कोशिश करी की किस तरह से आदिवासी समाज में मेले के बाद का माहौल होता है। आदिवासी गांव में असली मौज मस्ती तो मेले के बाद होता है। जमकर खाना पीना होता है। पूरे गांव में मेला सा लगा रहता है। 
 














05 अक्टूबर 2022

सफलता से दो क़दम दूर

मंजिल से दो क़दम दूर

हम सबों के जीवन के किसी ना किसी मोड़ में कभी ना कभी ऐसा जरूर होता हैं कि सफलता मिलने ही वाली होती है और हम मंजिल की आस छोड़ चुके होते हैं। जबकि सफलता या मंजिल को प्राप्त करने वाले प्रोसेस या नियम का पालन बड़ी ही शिद्दत से की हुई होती है। उसमें हम अपना बहुत सारा समय और ऊर्जा लगा चुके होते हैं। मंजिल से बस कुछ ही दूरी पर थक हारकर रुक जाते हैं और बाज़ी कोई और ही मार जाता है और अपने सर पर विजय मुकुट पहन लेता है। हमें पछतावा के अलावा और कुछ नहीं मिलता।

सोने की खान सब दो फीट दूर


"सफलता से दो कदम दूर" इस शीर्षक को और ठीक से समझने के लिए मै आपको एक कहानी सुनाता हूं। 
  एक बार किसी कालखंड में एक कारोबारी होता है। वह बहुत मेहनती और साहसी था। कारोबार में रिस्क उठाने से वह पीछे नहीं हटता था। वह बहुत ज्यादा धन अर्जित करके सबसे ज्यादा धनवान बनना चाहता था। वह अमीरी पसंद व्यक्ति था। वह हमेशा कारोबार के नए मौके के ही तलाश में रहता था। उसी जानकारी मिली कि बगल वाले राज्य में सोने का खान मिला है। फिर क्या था जानकारी इकट्ठा करने में लगे गए। जानकारी पुख्ता होने पर माइनिंग करने की योजना पर काम करना प्रारंभ कर दिया। माइनिंग की परमिशन मिल जाने के बाद अपना सब कुछ बेच कर और कुछ रुपए अपने दोस्त यारों और रिश्तेदारों से उधार लेकर माइनिंग में उपयोग होने वाली माइनिंग मशीन और कुछ औजार भाड़े पर लिया और पहुंच गए माइनिंग साइट पर। खुदाई प्रारंभ करने के 10 से 15 दिन के भीतर ही सोने का एक खेप मिल गया। वह खुशी से उछल पड़ा और उसे बेचकर सारे उधार चुका दिए। खुदाई के कामों में अब पहले से और तेजी आ गई। लेकिन क्या था महीनों खुदाई करने के बाद भी सोने का एक भी कन नहीं मिला। सारा धन लगाकर खुदाई का काम फिर भी जारी रखा । लेकिन क्या था महीनों के खुदाई के बाद भी उनके हाथ अब भी कुछ नहीं लगा।  उनका सारा धन लगभग समाप्त ही हो चुका था। उनका हिम्मत अब जवाब दे चुका था। खुदाई का काम आगे जारी रखना उसके लिए पॉसिबल नहीं था। खुदाई का काम को अब रोकना ही वह सही समझा। माइनिंग की सारी मशीनों और औजारों को औने पौने दामों में  किसी कबाड़ी वाले को बेच कर घर वापस लौट गया।
यह कबाड़ी वाला बड़ा होशियार निकला। वह माइनिंग में हुई ना कामयाबी के कारणों को पता लगाने की सोची।इसके लिए उसने माइनिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह ली। माइनिंग विशेषज्ञों की एक टीम साइट पर आई और रिपोर्ट तैयार करके उस कबाड़ी वाले को सौंप दी। विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर उस कबाड़ी वाले ने माइनिंग के काम को फिर से शुरू किया। फिर क्या था खुदाई का काम मात्र 2 फीट ही हुआ था और सोने का एक बहुत बड़ा खेप कबाड़ी वाले के हाथ लग गया। कबाड़ी वाले की सोच बुझ ने उसे सबसे बड़ा धनवान इंसान बना दिया।

मंजिल से ठीक पहले रुक जाना दुर्भाग्यपूर्ण


देखा ना दोस्तों कैसे वह कारोबारी अपने मंजिल हासिल करने से ठीक 2 फीट पहले अपना काम छोड़ दिया।अगर वह थोड़ी और हिम्मत दिखाई होती तो सबसे अधिक धनवान आदमी बनता। उसकी जिंदगी में नया मोड़ आ जाता। अब उसके पास पछताने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। और कैसे वह कबाड़ी वाला अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए खनन क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह ली और किसी दूसरे का मेहनत का क्रेडिट हासिल हासिल किया।

यह कहानी सिर्फ उस कारोबारी का ही नहीं हम सब का भी है। हम अक्सर ही अपने जीवन में इस तरह के परिस्थितियों का सामना करते हैं। जहां हम थक हार कर बैठ जाते हैं। हमारे जीवन में भी सफलता से 2 फीट पहले वाली सिचुएशन जरूर आती है। जहां से हमें सफलता की स्वर्णिम रोशनी दिखाई पड़ने लगती है बस उसे पहचानने की जरूरत है। जरूरत पड़े तो किसी अनुभवी लोगों की सलाह लेने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। सफलता से दो कदम दूर एक ऐसी अवस्था है जहां हमें अपना संपूर्ण शक्ति बटोर कर आगे बढ़ना चाहिए। हमारे जीवन की यह अवस्था यह तो 1 मिनट की हो सकती है ,1 घंटे की हो सकती है, 1 दिन की हो सकती है ,1 महीने की हो सकती है।इससे ज्यादा नहीं हो सकती है जहां हम हार मान बैठते हैं। 

इनको हम इन उदाहरणों से भी समझते हैं।


मान के चलिए तेज धारा प्रवाह वाली एक नदी पार करनी है। हमें तैरना भी आता है और हममें हिम्मत भी है। नदी का वह भाग जहां ज्यादा पानी भी है और उसका प्रवाह भी तेज है उसको हम आसानी से पार कर जाते हैं।लेकिन नदी का वह हिस्सा जहां पर ना तो ज्यादा पानी है और ना ही प्रवाह ही तेज है वहां हम बह जाते हैं या यूं कहें कि डूब जाते हैं जबकि हमें नदी का किनारा भी साफ साफ दिखाई दे रहा होता है।

मान लीजिए हमें कहीं जाना है और हम बस का इंतजार कर रहे हैं। स्टॉपेज पर बस आने का नियत समय सुबह 9:00 बजे है बस छूट ना जाए यह सोचकर हम सुबह 8:30 बजे ही स्टॉपेज पर पहुंच जाते हैं। और बस का वेट करने लग जाते हैं। किसी कारणवश उस दिन बस 5 मिनट के लिए लेट हो जाता है। इससे हम परेशान होकर 5 मिनट के लिए इधर उधर चले जाते हैं। और उसी 5 मिनट में बस आप ही जाती है और चली भी जाती है और हम छूट जाते हैं।

मान लीजिए हमें किसी सरकारी दफ़्तर या किसी डॉक्टर के क्लिनिक में कोई काम है। जब हम वहां पहुंचे तो पता चला कि अमुक अधिकारी या डॉक्टर अभी आया नहीं है। हम उनका वेट करने लग जाते हैं। उनका वेट करते-करते हम थक जाते हैं और वापस चले जाते हैं। बाद में पता चलता है कि हमारे जस्ट निकलने के बाद ही वह आ गए । जल्दी बाजी के चक्कर में हमारा काम उस दिन नहीं हो पाया।

इन सभी उदाहरणों से यही बात निकालकर सामने आती है कि मंजिल तक पहुंचने से ठीक दो कदम दूर जीत की आस छोड़ देते है और इसका खामियाजा यह होता है कि इसको जिंदगी भर नहीं भूल पाते हैं। यह हमारे जिंदगी दशा और दिशा दोनों को बदल कर रख देता है।

 अगर आपके भी जीवन में इस तरह के परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है तो कमेंट में जरूरी लिखिये । यह लेख यदि आपको अच्छा लगा तो समझेंगे कि हमारा मेहनत जाया नहीं गया। इसमें कोई सुधार हो तो अपना बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें। ताकि आगे और बेहरत काम कर सकें। अगर आपको लगता है कि किसी विशेष टॉपिक पर लेख लिखा जाय तो हमें अवश्य बताएं। इसी तरह के लेख से जुड़े रहने के लिए सरना बिल्ली को अवश्य फ़ॉलो करें।


धन्यवाद।









04 अक्टूबर 2022

GOOD TOUCH BAD TOUCH

कुछ चीजें ऐसी है जिसके ऊपर कभी हमारा ध्यान गया ही नहीं।

भागदौड़ भरे इस जीवन में हमारे पास समय का बड़ा अभाव रहता है। हम अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते। काम के सिलसिले में हम अक्सर बच्चों से दूर रहते हैं । हम अपने बच्चों को जरूरत की सारी चीजें देते हैं। हम उनका लालन पालन राजकुमार या राजकुमारी की तरह करते हैं। लेकिन बच्चों को सीखाई जाने वाली कुछ जरूरी चीजें ऐसी भी होती हैं , जिसका जिक्र न तो पाठ्यक्रमों में होता है और न ही हमारे या शिक्षकों के ध्यान में ही होता है। बहुत बार हमारे ध्यान में होने के बावजूद हम संकोच या झिझक महसूस करते है। 
चलिए आज हम समझते हैं गुड और बैड टच क्या है के बारे में। यह लेख एस्पेशियली अभिभावकों, माता पिता,परिवार जनों और शिक्षकों के लिए है। क्योंकि बच्चों को क्या गलत है और क्या सही है के बारे में बताने की जिम्मेवारी इन्हीं लोगों की होती है। यही बच्चों के प्रथम शिक्षक होते हैं। 

BAD TOUCH और GOOD TOUCH क्या है
 
Bad Touch(गलत स्पर्श):- बैड टच का मतलब ऐसे गलत स्पर्श से है जो ममता से रहित हो और जो बच्चों को असहज महसूस कराए। जिस स्पर्श से बच्चों में सेंस आफ सिक्योरिटी की भावना का लोप हो। बेचैनी और घबराहट हो। इस तरह के स्पर्श को Bad Touch कहा जाता है।

Good Touch (अच्छे स्पर्श):- Good Touch ,bad touch के जस्ट उलट है। इसमें सहजता की अनुभूति होती है। मन में सेंस आफ सिक्योरिटी की भावना उत्पन्न होती है। अच्छेे स्पर्श के द्वारा हम अपने बच्चोंं के ऊपर अपने प्यार को व्यक्त करते हैं। दुलारना पुचकारना और शरीर के ऊपर हाथ फेरना जो उन्हें सुरक्षा की अनुभूति दिलाती है अच्छे स्पर्श होते हैं। माता-पिता और परिजनोंं का प्यार इसी श्रेणी मेंं आता है।

अब बात आती है हम अपने बच्चों को गुड टच और बैड टच की फर्क कैसे दिलाएं।

यह हमारे लिए बहुत बड़े जिम्मेवारी का काम है। क्योंकि बच्चे बिल्कुल अबोध होते हैं। उन्हें कुछ भी पता नहीं होता है। सबसे पहले हमें अपने बच्चों को उनके शरीर के प्रत्येक अंग बारे में बताना होगा। उन्हें यह एहसास दिलाना होगा कि यह शरीर तुम्हारा है। शरीर के प्रत्येक अंग में तुम्हारा अधिकार है। तुम्हारे अनुमति के बगैर इसे कोई छू नहीं सकता। तुम्हारे और माता-पिता के अलावा तुम्हारे शरीर को छूने का अधिकार किसी में नहीं है। 
बच्चों को उनके शरीर के प्राइवेट पार्ट्स की जानकारी अवश्य दें। विशेषकर इन प्राइवेट पार्ट को किसी को भी छूने का अधिकार नहीं है। प्राइवेट पार्ट कहे जाने वाले कुछ अंग इस तरह से हैं। जैसे कि गाल, होठ, गर्दन, छाती, गुप्तांग और बुट्टॉक आदि। जब तक बच्चों को इसके बारे में जानकारी होती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं। तो हम सब की यह मोरल रेस्पोसीबिलिटी होती है कि समय रहते ही हम इसकी जानकारी देकर उन्हें सचेत करना ।बच्चों को स्पर्श की भिन्नता को समझाएं। ताकि कुछ गलत ना हो। कुछ उपयोगी जानकारी इस तरह से हैं।

जब कोई प्राइवेट पार्ट्स को स्पर्श करता है तो क्या करें।

जब कोई प्राइवेट पार्ट्स जैसे कि गाल, होठ,गर्दन ,छाती ,गुप्तांग या बुट्टॉक को टच करता है तो जोर जोर से चिल्लाना है। चिल्लते हुए बोलना है  नो(No).....No . नहीं मतलब बिल्कुल ही नहीं। आप इस तरह से नहीं छू सकते। इस स्थिति में बच्चों को बताए की घबराना बिल्कुल भी नहीं ,हिम्मत से काम लेना चाहिए।  इस तरह की अगर घटना होती है तो समझाएं की छिपाना नहीं है। इसकी जानकारी अपने माता पिता या परिजनों को अवश्य दें।  
  • अगर कोई ग़लत तरीके से गाल या होठ को छूता या चूमता है तो जोर से चिल्लाकर मना करना है और बोलना है. नो मतलब नो बिल्कुल नहीं।
  • अगर कोई छाती में हाथ लगाता है तो जोर से मना करते हुए बोलना है                                                              नो मतलब नो बिल्कुल नहीं।
  • अगर कोई गुप्तांग या बुट्टॉक को टच करता है तो चिल्लाकर बोलना है नो मतलब नो बिल्कुल भी नहीं।

बच्चों के ऊपर इस तरह की जाने अंजाने में होने वाली यौन शोषण का विरोध करना सीखना उनके भविष्य के लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि बच्चों को कुछ भी पता नहीं चलता। बच्चों में इस तरह की घटना को लेकर सेंस ही डिवेलप नहीं हुआ होता है। उन्हें पता ही नहीं होता कि उनके साथ क्या हो रहा है या क्या हुआ है। 

कुछ और भी जरूरी बातें हैं जिन्हें हमारे बच्चों को सिखाने की जरूरत है।

  • बच्चों को यह सिखाना है कि यदि कोई अनजान व्यक्ति उन्हें कुछ खाने को देता है तो मना करना है।
  • अनजान व्यक्तियों से ज्यादा घुलना मिलना नहीं है।
  • बच्चों को गलत चीजों के प्रति विरोध करना सिखाना है।
  • यदि कोई बच्चों को गलत टच करता है और उन्हें डरा कर या खाने पीने की चीज देकर उन्हें यह बोलता है कि इसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताना है। बच्चों को अवश्य बताएं कि इन सब चीजों को छिपाना नहीं बल्कि अपने मम्मी पापा या अभिभावकों को बताना जरूरी है।
  • बच्चों में अनजान लोगों को परखने की समझ विकसित करें।
यहां पर अभिभावकों की सबसे बड़ी जिम्मेवारी बनती है कि वे अपने बच्चों को हमेशा अपने सुपर विज़न में रखें। यह अवश्य नजर रखें कि कौन-कौन है जो बच्चों के नजदीक है या आने की कोशिश करता है। बच्चों को लेकर हमेशा हमें अवेयर रहने की जरूरत है। जहां तक हो सके बच्चों को कभी भी अनजान लोगों के देखरेख में ना रखें। क्योंकि अबोध अवस्था में ही बच्चों के साथ चाहे किसी भी रूप में हो, यौन शोषण हो चुका होता है। ये ऐसी यौन शोषण है जो कभी भी प्रकाश में नहीं आ पाता। बैड टच भी एक तरह का यौन शोषण का ही रूप है। इस तरह की घटनाएं अभी के समय में धड़ल्ले से बढ़ रहा है। इस तरह की घटनाएं हमेशा देखने सुनने को मिल रही है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 90% तक की इस तरह की घटनाएं बच्चों के ऊपर उनके परिजनों के द्वारा ही की जाती है। हमेशा सचेत रहें और अपने बच्चों को भी aware रखें।

अगर यह लेख उपयोगी लगी है तो कमेंट में जरूर लिखें ।अगर कोई सुधार की संभावना है तो अपने कीमती सुझाव अवश्य दें। सामाजिक मुद्दों की जानकारी के लिए हमेशा सरना बिल्ली से जुड़े रहे।

धन्यवाद।



15 अगस्त 2022

अभी नहीं तो फिर कभी नहीं

लाखों करोड़ों साल से इस पृथ्वी पर मानव निवास करता आ रहा है। तब से लेकर आज तक मनुष्य, जरूरत की चीजों का इजात करता रहा है। जीवन जीने की तौर-तरीकों में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसका केवल और केवल एक ही कारण है, और वह कारण है, अपने अस्तित्व को कायम रखते हुए जीवन जीने की आवश्यकता की पूर्ति हेतु निरंतरता के साथ बौद्धिक शक्ति का इस्तेमाल करना और आने वाले पीढ़ियों तक पहुंचाना (upcoming generation)। क्योंकि आज तक जो कुछ भी हमने सीखा है ,पूर्वर्ती (ancestors) लोगों को देखकर ही सीखा और उनके द्वारा अर्जित ज्ञान को आधार बनाकर कुछ नया करने की कोशिश करते हैं। तब से लेकर आज तक यही प्रक्रिया लगातार चलती ही आ रही है। किसी भी काम विशेष को निरंतरता के साथ करते रहने पर कार्यकुशलता (work Efficiency) के साथ  परिपक्वता (Maturity) बढ़ती हैं। दुनियां में हर रोज कुछ ना कुछ नया होता है जो पहले कभी नहीं हुआ । इस बदलाव का असर हम सभी पर पड़ता है। 

 हमारे जीवन को सरल बनाने में सबसे ज्यादा अगर किसी का योगदान है तो वह हैं वैज्ञानिकों (sciencetist) का। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जिस पर वैज्ञानिकों ने काम नहीं की हों। हर वो भौतिक चीजों को बनाकर वैज्ञानिकों ने हमें दी हैं जो हमारे जीवन को सरल और सुगम बनता हैं। वैज्ञानिकों ने पूरे दुनिया को एक ग्लोबल विलेज में बदल दिया है। हम कभी भी ,किसी से भी , कहीं से भी देख सुन और बातचीत कर सकते हैं। हमने भौतिक दूरियों पर विजय प्राप्त कर लिया है।हमारे पास यातायात की अनेकों साधन उपलब्ध हैं। आज हम अंतरिक्ष तक पहुंच चुके हैं। दुनियां का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा जिसको मनुष्य ने एक्सप्लोर ना किया हो। मनुष्य ने अधिकतम ऊंचाई और अधिकतम गहराई दोनों को फतेह कर लिया है। 
कृषि के क्षेत्र में अगर हम बात करें तो पाएंगे की अभी के समय में हमारे पास अत्याधुनिक कृषि उपकरण मौजूद है। घंटों का काम को हम मिनटों में कर दे रहे हैं। सिंचाई के लिए हमारे पास अत्याधुनिक इरिगेशन सिस्टम है। हमारे पास उन्नत बीज और खाद उपलब्ध है। इन सब चीजों ने कृषि उत्पादकता को कई गुना बढ़ा दिया है।

अगर हम खबरों की बात करें तो देश दुनिया की खबर हम घर बैठे ही देख सकते हैं। देश दुनिया में घट रही घटनाओं से हम रूबरू हो सकते हैं। सोशल मीडिया नेटवर्क हमें न्यूज को न्यूज एजेंसियों से भी पहले दे देती हैं।
इंटरटेनमेंट के लिए सैकड़ों टीवी चैनल हमारे पास उपलब्ध है। खेल की सारी चैनल हमारे पास उपलब्ध है। मूवी देखने के लिए आज हमें कहीं और जाने की जरूरत नहीं होती। Entertainment की सारी सुविधाएं आज हमारे घर में ही उपलब्ध है।

चिकित्सा क्षेत्र में आज हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं। हमारे पास चिकित्सीय जांच करने के लिए ऐसे ऐसे उन्नत चिकित्सीय यंत्र है जिसकी कार्यप्रणालियां किसी चमत्कार से कम नहीं है। हमारे पास सैकड़ों असाध्य मर्ज की दवा उपलब्ध है।
अगर हम बात करें शिक्षा की तो शिक्षा प्राप्त करने की सैकड़ों वर्चुअल प्लेटफार्म उपलब्ध है। सभी विषयों के जानकार ऑनलाइन उपलब्ध है। हमें किसी गुरु के पास जाने की जरूरत भी नहीं है। एजुकेशन की सभी जानकारियां इंटरनेट पर उपलब्ध है। बस हमें सर्चिंग आना चाहिए। अभी के समय में पढ़ाई लिखाई से संबंधित कोई भी टॉपिक अनसोल्वड नहीं है। सभी टॉपिक्स की विस्तृत जानकारियां उपलब्ध है। अगर हमें किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त करनी हो हर तरह की जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है। अभी के समय में स्मार्टफोन किसी यूनिवर्सिटी से कम नहीं हैं।

अभी के समय में घर बनाने की उन्नत से उन्नत तकनीकियां हमारे पास उपलब्ध है। जिसकी मदद से हम आलीशान घर बना सकते हैं। 

घर में उपयोग होने वाले ऐसे ऐसे उपकरण है जो हमें  गर्मी में शीतलता का एहसास दिलाती है और कड़ाके की ठंड में गर्मी का एहसास दिलाती है। काली अंधेरी रात को चीरने वाली प्रकाश है हमारे पास। सोने के लिए मखमली बिस्तर है। खाना पकाने के लिए इलेक्ट्रिक स्टोव और एलपीजी गैस उपलब्ध है।

इन सब उदाहरणों के द्वारा मैं यह कहना चाहता हूं कि अभी के समय में मनुष्य जाति का जीवन कितना सरल हो गया है। रोजमर्रा के कामों को करने के लिए हमारे पास सभी उपयोगी चीजें हैं। मनुष्य पृथ्वी पर अभी जिस कालखंड में रह रहा है वह गोल्डन एरा है। पृथ्वी पर इस तरह की स्थितियां कभी नहीं रही। देश में शासन संविधान के आधार पर चलता है। वृहद स्तर की लड़ाइयां अब नहीं होती। लड़ाइयों के दुष्परिणाम क्या होते हैं सभी को पता है। सभी इनसे बचना चाहते हैं। देश चलाने के लिए सभी देशों की अपनी-अपनी संविधान है। संविधान के दृष्टि से सभी मनुष्य एक समान है। सविधान सभी को समानता का अधिकार देती है। संविधान के द्वारा किसी को भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। पहले के समय में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थिति थी। संविधान सभी को प्रतिनिधित्व का मौका देता है। संविधान के बाहर कोई भी चीज नहीं होती। सविधान की व्यवस्था को बनाए रखने में ही संपूर्ण सिस्टम काम करती है। 

इतनी सारी सुविधाओं के बारे में यहां जो हमने चर्चा की। क्या निम्न स्तर के लोगों तक यह सभी चीजें पहुंच पाई है। क्या उन्हें इन सभी चीजों के बारे में जानकारी भी है। अगर नहीं है तो क्या कारण है। इसका जिम्मेदार कौन है। यह सभी चीजें निम्न तबके के लोगों के लिए किसी विलासिता से कम नहीं है।
इसका केवल और केवल एक ही कारण है और वह है गरीबी और अशिक्षा। जागरूकता की कमी। हमें अपनी स्थिति के लिए किसी दूसरे को दोष नहीं दे सकते। इसका जिम्मेवार हम खुद होते हैं। अपनी स्थिति को सुधारने के लिए अभी के समय में हमारे पास अभी चीजें उपलब्ध है। हमें उसका उपयोग करना होगा। काम करने के परंपरागत तौर तरीके को बदलना होगा। हमें ऑटोमेशन का उपयोग करना होगा। हमें शिक्षा पर ध्यान देना होगा। अगर जीवन जीने की उपयोगी स्किल सीखना हो तो सभी चीजें इंटरनेट में उपलब्ध है। बस हमें सीखने की ललक होनी चाहिए। कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। 

अभी के समय में अगर आप कुछ करना चाहते हैं और कुछ हासिल करना चाहते हैं तो उस मंजिल को हासिल करने में आपको कोई नहीं रोक सकता। कुछ नहीं करके हम समय को अपना दुश्मन बना लेते हैं। अभी के समय में करने को काम की कोई कमी नहीं है। और किसी भी काम को करने के लिए एक से बढ़कर एक हमारे काम को आसान कर देने वाली साधन उपलब्ध है। किसी भी चीज की जानकारी या स्किल्ड होने के लिए और इस स्किल को बताने वाले गुरुओं की कोई कमी नहीं है। हमें यह नहीं आता, यह हम से नहीं होगा, इस तरह की अनेकों बहाना लिए फिरते हैं। दरिद्रता अभाव और अशिक्षा का सबसे बड़ा कारण अगर कोई है तो वह खुद हम हैं। खुद हम अपने आपका दुश्मन बन बैठे हैं। अगर हमारे पास किसी चीज की कमी है तो यह कमी हमें यह बताती है कि हमें उस कमी को पूरा करने के लिए काम करना चाहिए। उसके बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहिए। और यथोचित काम करना चाहिए।

अभी के समय में हर चीज की जानकारी वेब में तैर रही है। जानकारी की भाषा की बाध्यता तो अब रही ही नहीं। हर तरह की जानकारी जनसामान्य की भाषा में उपलब्ध है। सिर्फ हमें यह डिसाइड करना है कि हमें चाहिए क्या। हमें वेब सर्चिंग करने का तरीका आना चाहिए। इसके लिए हमें टेक्निकली अवेयर होने की जरूरत है। इंटरनेट में हमें अपनी ही जरूरत की चीजों को खोजना आना चाहिए। इंटरनेट में हम 1 दिन में घंटों समय बिता देते हैं लेकिन अपने काम की कोई भी चीज नहीं सीखते या कहें कि हम सीखना ही नहीं चाहते। इंटरनेट में जानकारियों का अंबार है। अभी के समय के जैसा पहले कभी नहीं था। यहां पर सब उनके लिए एक ही प्रकार का जानकारी उपलब्ध है। उन जानकारियों को हासिल करने के लिए कोई आप को रोकता नहीं है और रोकेगा भी नहीं। फिर भी हम अपने आप को गुणवत्तापूर्ण या अपने स्किल को ठीक नहीं करते। ऐसे ही समय को फालतू की चीजों में बर्बाद करते रहते हैं।


इस लेख को लिखने का मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य था कि अगर आपको कोई भी चीज सीखने की ललक है तो उसे सीखने में आपको कोई नहीं रोक सकता और उस चीज से संबंधित सभी जानकारियां हमारे पास उपलब्ध है। इतनी सारी साधनों और जानकारियों के रहते हुए भी अगर हमने कुछ नहीं सीखा तो हम अपने आप के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इसीलिए मैं लास्ट में कहना चाहूंगा अगर अभी नहीं हुआ तो फिर कभी नहीं होगा।

धन्यवाद।

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